फिल्म पर उठे ताजा विवाद में जहां एक ओर समाज के एक वर्ग का कहना है कि फिल्म में निर्भया बलात्कार के आरोपी को बोलने के लिए मंच क्यों दिया गया है, उसे क्यों दिखाया गया, वहीं एक वर्ग तर्क दे रहा है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी है। आरोपी को भी अपनी बात कहने का हक है। इस मुद्दे पर बुधवार को संसद में भी हंगामा हुआ और सरकार की ओर से गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सफाई दी।
इसे कला की आजादी से जोड़कर भी देखा जा सकता है। हर माध्यम का समाज के सामने चीजें रखने का अपना एक तरीका है। लेसली की फिल्म के बहाने कम से कम यह तो सामने आया कि बलात्कार के बारे में भारतीय पुरुष कैसा सोचते हैं। यहां तक कि जघन्य अपराध को अंजाम देने के बाद सलाखों के पीछे भी उनकी मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया। उन्हें अपने किए पर कोई पश्चाताप नहीं।
इंडियाज डॉटर फिल्म ने पुरुष मानसिकता को तार-तार करके रख दिया है। द गार्डियन में छपी खबर के अनुसार भारत में औरतों से बलात्कार करने वाले पुरुषों के रवैये ने लेसली को झिंझोड़ दिया। उन्हें तिहाड़ जेल प्रशासन की ओर से भी अपराधी का इंटरव्यू करने के सिलसिले में नोटिस जारी किया गया है।
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http://www.theguardian.com/film/2015/mar/01/indias-daughter-documentary-rape-delhi-women-indian-men-attitudes?CMP=fb_gu