अरण्येर दिन रात्रि सन 1969 में बनी थी। सत्यजीत रे की फिल्मोग्राफी की यह 14वीं फिल्म है। बांग्ला के प्रसिद्ध कथाकार सुनील गंगोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित यह एक रोड मूवी है। अपू त्रयी के बाद विदेश में यह रे की सबसे ज्यादा देखी-सराही गई फिल्म है। हमारे यहां इसकी खास चर्चा नहीं होती।
खुद रे ने कहा था कि उनकी इस फिल्म को भारत में सबसे कम समझा गया। ऐसा क्यों? रिवाइविंग इमेजरी में इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश है। इस फिल्म में दादा साहब फाल्के पुरस्कार पा चुके अभिनेता सौमित्र चटर्जी, शर्मिला टैगोर और सिम्मी ग्रेवाल जैसे सितारे मुख्य भूमिका में थे। कभी बिहार राज्य का अंग रहे पलामू और इसके एक डाक बंगले में रे ने यह पूरी फिल्म शूट की थी।
कुल 65 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री में सत्यजीत रे की फिल्म यात्रा समेत उनकी फिल्मोग्राफी में अरण्येर दिन रात्रि के महत्व को स्थापित करते हुए पलामू के इतिहास तथा दशा-दिशा पर श्याम बेनेगल, गौतम घोष और टीनू आनंद जैसे दिग्गज फिल्मकारों ने बात की है। फिल्म निर्मात्री पूर्णिमा दत्ता ने शूटिंग की कुछ अहम बातों पर से इस वृत्तचित्र में पर्दा उठाया है।
झारखंड में इसके प्रर्दशन के वक्त वहां के स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी मुख्य अतिथि थे। टीनू आनंद और पूर्णिमा दत्ता विशिष्ट अतिथि थे। यह वृत्तचित्र अरण्येर दिन रात्रि के निर्माण की कहानी कहते हुए आज उस डाक बंगले की दयनीय हालत दिखाता है जहां रे ने फिल्म शूट की थी। पलामू के मूल निवासी आशुतोष पाठक ने इस वृत्तचित्र का शोध/निर्माण और श्रीवास नायडु ने निर्देशन किया है। वृत्तचित्र का लेखन रवि बुले ने किया है।