मशहूर नाटककार, अभिनेता और निर्देशक गिरीश कर्नाड का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को बेंगलुरु में उनके आवास पर निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे। वह पिछली काफी समय से बीमार चल रहे थे और उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मशहूर कन्नड़ साहित्याकार, रंगकर्मी, एक्टर गिरीश कर्नाड ने 81 साल में आखिरी सांसें ली। उनके निधन की वजह कि मल्टीपल ऑर्गेन का फेल होना बताया जा रहा है। उन्हें भारत के जाने-माने समकालीन लेखक, अभिनेता, फिल्म निर्देशक और नाटककार के तौर पर भी जाना जाता था।
कर्नाटक की सरकार ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। सीएम एचडी कुमारस्वामी ने दिग्गज साहित्यकार के निधन के बाद राजकीय शोक की घोषणा की। सरकार ने एक दिन के पब्लिक हॉलिडे की भी घोषणा की है। गिरीश कर्नाड का आज ही राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा।
अभिनय के अलावा नाटक, स्क्रिप्ट राइटिंग और निर्देशन में दिया ज्यादा समय
गिरीश कर्नाड ने फिल्मों में अभिनय के अलावा नाटक, स्क्रिप्ट राइटिंग और निर्देशन में ज्यादातर समय दिया। उनका जन्म 19 मई, 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था। उनको बचपन से ही नाटकों में दिलचस्पी थी। उन्होंने स्कूल के समय से ही थियेटर में काम करना शुरू कर दिया था। गिरीश कर्नाड ने 1970 में कन्नड़ फिल्म संस्कार से बतौर स्क्रिप्ट राइटर अपने करियर की शुरूआत की थी।
पीएम मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गिरीश कर्नाड के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने कहा कि गिरीश कर्नाड अपनी विविध अभिनय क्षमता के लिए याद किए जाएंगे। वो हमेशा अपने दिल के करीब के मुद्दों पर खुल कर बोलते थे। उनके काम को आने वाले दिनों में याद किया जाएगा, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
पहला नाटक कन्नड़ में लिखा
गिरीश कर्नाड की कन्नड़ और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं भाषाओं में एक जैसी पकड़ थी। उनका पहला नाटक कन्नड़ में था, जिसे बाद में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। उनके नाटकों में 'ययाति', 'तुगलक', 'हयवदन', 'अंजु मल्लिगे', 'अग्निमतु माले', 'नागमंडल' और 'अग्नि और बरखा' काफी चर्चित हैं।
फिल्म 'भूमिका' के लिए नेशनल अवॉर्ड
गिरीश कर्नाड को 1978 में आई फिल्म 'भूमिका' के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था। उन्हें 1998 में साहित्य के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ अवॉर्ड से नवाजा गया था। गिरीश कर्नाड ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने कर्मशियल सिनेमा के साथ समानांतर सिनेमा के लिए भी जमकर काम किया।
टीवी धारावाहिकों में ‘मालगुडी डेज' शामिल हैं जिसमें उन्होंने स्वामी के पिता की भूमिका निभाई। वह 90 के दशक की शुरुआत में दूरदर्शन पर विज्ञान पत्रिका ‘टर्निंग प्वाइंट' के प्रस्तोता भी थे।
कई पुरस्कारों से हो चुके हैं सम्मानित
- 1972: संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
- 1974: पद्मश्री
- 1992: पद्मभूषण
- 1992: कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1994: साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1998: ज्ञानपीठ पुरस्कार
इसके अलावा गिरीश कर्नाड को कालीदास सम्मान, टाटा लिटरेचर लाइव लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार और सिनेमा के क्षेत्र में भी ढेर सारे पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं।
गिरीश का फिल्मी सफर
हाल के वर्षों में गिरीश कर्नाड ने सलमान खान की फिल्म ‘एक था टाइगर' और ‘टाइगर जिंदा है' में भी काम किया था। टाइगर जिंदा है बॉलीवुड की उनकी अखिरी फिल्म थी। इसमें उन्होंने डॉ. शेनॉय का किरदार निभाया था। गिरीश ने कन्नड़ फिल्म संस्कार (1970) से एक्टिंग और स्क्रीन राइटिंग कॅरियर शुरू किया था। इसके लिए उन्हें कन्नड़ सिनेमा का पहला प्रेसिडेंट गोल्डन लोटस अवार्ड जीता था। बॉलीवुड में उनकी पहली फिल्म 1974 में आयी ‘जादू का शंख’ थी। इसके बाद फिल्म ‘निशांत’ (1975), ‘शिवाय’ और ‘चॉक एन डस्टर’ में भी काम किया था।
सिनेमा और साहित्य जगत में शोक की लहर
कर्नाड के निधन से सिनेमा और साहित्य जगत में शोक की लहर है। अभिनेता मनोज वाजपेयी ने इस खबर को सुनते ही ट्विटर पर लिखा कि साहित्य, सिनेमा और रंगमंच की दुनिया के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। कला की दुनिया हमेशा उनकी ऋणी रहेगी। हमने अपनी प्रेरणा को खोया है।
वहीं, अभिनेता कमल हासन ने गिरीश कर्नाड के जाने पर दुख प्रकट किया। अपने ट्विटर अकाउंट पर उन्होंने लिखा कि गिरीश कर्नाड के काम से वो प्रभावित भी रहते थे और प्रेरणा भी लेते थे। गिरीश अपने पीछे कई लेखकों को छोड़ गए हैं जो उनके काम से प्रेरणा लेते हैं। इन नए लेखकों के काम से हमें गिरीश की कमी थोड़ी कम खलेगी लेकिन इस कमी को कभी पूरा नहीं किया जा सकता।