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#MeToo: वरुण ग्रोवर का खुला खत, न्याय के इस अभियान का न्याय हमें छल नहीं सकता

सैक्रेड गेम्स के लेखक और गीतकार-स्टैंड अप कॉमेडियन वरुण ग्रोवर पर हाल ही में सोशल मीडिया पर अनाम...
#MeToo: वरुण ग्रोवर का खुला खत, न्याय के इस अभियान का न्याय हमें छल नहीं सकता

सैक्रेड गेम्स के लेखक और गीतकार-स्टैंड अप कॉमेडियन वरुण ग्रोवर पर हाल ही में सोशल मीडिया पर अनाम स्क्रीनशॉट से उनके कॉलेज के दिनों में एक महिला के साथ यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगा था। इस आरोप से आहत वरुण ग्रोवर ने इसे झुठलाया था और इसके खिलाफ अपनी सफाई ट्विटर पर भी लिखी थी। अब ‘मीडियम’ और ट्विटर पर वरुण ग्रोवर ने अपने पक्ष को दर्शाता एक लंबा लेख लिखा है। लेख अंग्रेजी और हिंदी में है। हिंदी वर्जन यहां वैसा ही पेश किया जा रहा है-

इंकलाब बहुत खूबसूरत होते हैं। मन का मैल धो देने वाले, शक्तिशाली, निहायत जरूरी और #मीटू अभियान की तरह अवश्यंभावी भी।

पर अवश्यंभावी रूप से इंकलाब अपने साथ कुछ अनचाही कुर्बानियाँ भी लाते हैं− कॉलेटरल डैमेज।

बीता हफ्ता मेरी जिन्दगी में एक चक्रवात की तरह गुजरा। उलझन और उदासी में डूबा। पर मैंने यह भी जाना कि कितने ही अजनबी एकजुटता में मेरे साथ आ खड़े हुए हैं। मेरे ऊपर एक ऐसा गुमनाम आरोप लगाया गया, जिसके बारे में मुझे पता है कि वो गलत है और बाकायदे मैं ये साबित कर सकता हूं। अब अगर तस्वीर का फ्रेम बड़ा कर देखें तो #मीटू की इस क्रांतिधारा की जरूरत और महत्व मेरे अकेले के शहीद हो जाने से कहीं बड़ा है। आखिर सदियों की पितृसत्ता और शोषणचक्र को शिष्ट तरीकों से नहीं गिराया जा सकता।

लेकिन मेरी पूरी दुनिया इस आरोप से दहल गयी है। मैं, मेरे दोस्त, मेरा परिवार सकते में हैं। मेरी दिमागी सेहत और पेशेवर कामकाज पर इसका सीधा असर है। इससे भी बुरा ये कि इसने मेरी नाइंसाफी के खिलाफ खड़े होने की और सामाजिक न्याय की हर आवाज में अपना स्वर मिलाने की कुव्वत को मुझसे छीन लिया है।

इसलिए, भले मेरे खिलाफ कोई औपचारिक शिकायत दर्ज ना की गयी हो, फिर भी मेरी ईमानदार कोशिश है कि मैं अपना पक्ष रखूं। यह कोशिश खुद मेरे मन की शांति के लिए जरूरी है।

आरोप

9 अक्टूबर 2018 की दोपहर को ट्विटर पर किसी अनाम खाते से दो स्क्रीनशॉट्स डाले गए। इनमें आरोप था कि मैंने साल 2001 में इस इंसान, जो उस वक्त कॉलेज (आईटी-बीएचयू, वाराणसी) में मेरी जूनियर थीं, का यौन शोषण किया है। सोशल मीडिया पर कुछ ही पलों में ये स्क्रीनशॉट वायरल की तरह फैले और अगले ही घंटे मेरा नाम तमाम न्यूज चैनल्स पर था, अन्य तमाम बड़े नामों के साथ ‘यौन उत्पीड़क’ वाले खाते में। मीडिया ने इसे रिपोर्ट करते हुए सामान्य सावधानी भी नहीं बरती। जिस तरह मेरे केस को अन्य गंभीर मामलों के साथ एक ही खांचे में डाल दिया गया, यह बहुत तकलीफ पहुंचाने वाला और निराशाजनक था। मेरे केस में यह आरोप एक अकेले अनाम खाते द्वारा लगाए गए थे, जबकि अन्य कई मामलों में आरोप लगाने वाली अनेक जानी-मानी महिलाएं थी। ऐसी महिलाएं जिनसे जरूरत पड़ने पर मीडिया सीधा संपर्क कर सकता था और उनकी टिप्पणी ले सकता था।

मेरा पक्ष

मैं इस आरोप को सिरे से गलत, बनावटी और पूरी तरह आधारहीन बता रहा हूं। पूरी जिन्दगी में मेरे साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई है। किसी के साथ नहीं, कभी नहीं।

मेरी बेगुनाही के सबूत

जैसा मैंने अपने शुरुआती बयान में भी कहा था, मैं किसी भी स्वतंत्र जांच के समक्ष प्रस्तुत होने और अपने हिस्से के तथ्य रखने को तैयार हूं, जिससे सच्चाई सबके सामने आ सके।

पर जब तक वो नहीं होता, मैं सिर्फ कुछ नए तथ्य आपके सामने रख सकता हूं। उम्मीद करता हूं कि इनसे मुझ पर लगाए गए आरोपों का खंडन हो सके।

कॉलेज में मेरी जूनियर, साल 2001

1) मैंने आईटी-बीएचयू में जुलाई 1999 में सिविल इंजीनियरिंग के चार साला स्नातक कोर्स में दाखिला लिया था। नया बैच वहां हर साल जुलाई में ही आता है। इस हिसाब से 2001 में मेरी यह अनाम जूनियर या तो 2000–2004 बैच से हो सकती है या 2001–2005 बैच से।

अधिकृत दस्तावेजों के आधार पर, 2000–2004 के स्नातक बैच में कुल 25 लड़कियों ने दाखिला लिया था, जबकि 2001–2005 के बैच के लिए यही संख्या 11 थी। इस तरह यही 36 लड़कियां ठहरती हैं जो कथित घटना के समय मेरी जूनियर थीं।

इन 36 लड़कियों में से सिर्फ 4 थीं, जिनके साथ संस्थान में रहने के दौरान हमारे थियेटर समूह ने काम किया। हमारी ये दोस्ती बाद में भी कायम रही। जब मेरे बारे में आरोप की यह खबर इन चारों तक पहुंची, तो चारों ने मुझसे सम्पर्क किया और मेरे साथ अपनी एकजुटता जाहिर की।

इसी एकजुटता के चलते इन चारों ने दुनियाभर में फैली अपनी बाकी 32 स्त्री सहपाठियों से सम्पर्क किया। घटना के समय मेरी जूनियर रही एक-एक लड़की से बात कर इस बात की पुष्टि हासिल की, कि ऐसी कोई घटना कभी हुई ही नहीं। किसी भी स्वतंत्र जांच में इस बात को वापस सत्यापित किया जा सकता है।

स्पष्ट है कि ट्विटर पर इन आरोपों को लगानेवाला व्यक्ति आरोप में उल्लेखित घटना के समय मेरे संस्थान का छात्र ही नहीं था।

2) यही बात जांचने का एक सीधा तरीका भी है। किसी भी स्वायत्त अधिकारी द्वारा इस व्यक्ति से ऐसा कोई भी पहचान पत्र (आईटी-बीएचयू से इंजिनियरिंग की डिग्री, किसी भी सेमेस्टर की अंक तालिका या कॉलेज का मूल पहचान पत्र) दिखाने को कहा जाये जो साबित कर सके कि इन्होंने 2000–2004 या 2001–2005 में से किसी बैच में आईटी-बीएचयू में पढ़ाई की है।

बात कहां अटकी है

बात को समझता हूं कि इन #मीटू की कहानियों के सामने आने के लिए गुमनाम रहकर अपनी आपबीती को अभिव्यक्त करने का रास्ता ज़रूरी है। मैं आज भी इसके साथ खड़ा हूं। हमारा पितृसत्तात्मक, पुरुषों के जहरीले व्यवहार में गले तक डूबा सामाजिक ढांचा स्त्रियों के लिए कोई और मंच या जगह छोड़ता भी कहां है अपने दर्द को बयां करने के लिए। ना घर उनका, ना समाज।

किसी भी आप बीती को इसलिए रौशनी में आने से नहीं रोका जा सकता कि उसे बयां करनेवाली अभी अपना नाम अंधेरे में रखना चाहती है। लेकिन जब आरोपित व्यक्ति तथ्यों के आधार पर उसकी बात को गलत साबित करे, तो खुद आन्दोलन को आगे बढ़कर तथ्यों की पुष्टि का कोई तरीका निकालना चाहिए। इससे आगे, अगर आरोप गलत पाये जायें तो कम से कम इसकी तो घोषणा की जाये कि इस इंसान का नाम ‘दागियों’ की सूची से हटाया जाता है। या किसी एक की बात साबित होने तक उसके आरोप के साथ ‘पुष्टि नहीं’ ही जोड़ दिया जाये।

बीते 5 दिन से मैं सोशल मीडिया पर यही विनती कर रहा हूं कि कम से कम आरोप में शामिल इन प्राथमिक तथ्यों की सत्यता तो जांच ली जाये− लेकिन मेरी बात को अनसुना किया जाता रहा। इस चुप्पी के चलते मैं कैसी मानसिक यंत्रणा से गुजरा, मैं ही जानता हूं।

मेरे शुभचिंतक लगातार सलाह देते रहे कि मुझे समाधान के लिए कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए, लेकिन मैं इस अभियान का और इसके सिपाहियों का सम्मान करता हूं। मैं उन तमाम महिलाओं का तहेदिल से सम्मान करता हूं जो आवाज उठा रही हैं (भले सामने आकर या अंधेरे में रहकर) और नहीं चाहता कि मेरी वजह से अभियान पर जरा सी भी आंच आए। हमारा एका और बढ़ेगा अगर हम साथ मिलकर किसी समाधान तक पहुंचेंगे।

मैं जानता हूं कि इस अभियान का प्रत्येक सिपाही और समर्थक हमारे इतिहास में आयी इस आत्मसाक्षात्कार की घड़ी को संभव बनाने के लिए कैसे जी-जान से जुटा है। मैं यह भी जानता हूं कि पुरुषों ने अपराधी साबित होने पर भी कभी कुछ नहीं खोया, जबकि इतिहास गवाह है कि स्त्री के चरित्र पर अफ़वाह भी हमेशा के लिए दाग लगा जाती है।

नहीं, मेरे जैसे कुछ तथ्य से परे मामले इस अभियान की वृहत्तर सफलता को रोकनेवाले नहीं हो सकते। मैं एक संख्या भर हूं। दुनिया के लिए अमूर्त विचार भर। लेकिन मैं खुद के लिए तो अमूर्त संकल्पना भर नहीं। मैं, मेरे परिवार वाले और दोस्त मेरे साथ यह नर्क भुगत रहे हैं। क्या उनका एक स्पष्टीकरण जितना भी हक नहीं बनता। न्याय के इस अभियान का न्याय हमें छल नहीं सकता।

समाधान

इस परिस्थिति में मैं जो कुछ कह सकता हूं, जो भी तथ्य अपनी ओर से सामने रख सकता हूं, रख रहा हूं। ऐसे तथ्य जो साफ़तौर पर आरोपों को गलत साबित करते हैं।

मेरा निवेदन है कि अगर अब भी किसी के मन में शक है तो वह ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ (NCW) या किसी भी अन्य स्वतंत्र जांचकर्ता समिति में औपचारिक शिकायत करे। मैं खुशी-खुशी अपना पक्ष रखूंगा।

और आखिर में

क्या मैं गुस्सा हूं? क्या मेरी दिमागी शांति चली गयी है? क्या मुझे रह-रहकर ये लगता है कि मुझे किसी योजना के तहत फंसाया गया? इन सभी सवालों का जवाब ‘हां’ है। पर आज भी मुझसे पूछा जाये कि क्या मैं “हर स्त्री पर भरोसा करो” का नारा लगाऊंगा? तो मेरा जवाब आज भी ‘हाँ’ होगा लेकिन यह नारा “हर स्क्रीनशॉट पर भरोसा करो” में ना बदल जाये, इसके लिए हमें जवाबदेही तय करनी ही होगी।

~ वरुण ग्रोवर


 

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