बॉलीवुड की अभिनेत्री शेफाली शाह ने अपनी मेडिकल थ्रिलर ड्रामा 'ह्यूमन' पर आउटलुक से बात की। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि ओटीटी प्लेटफॉर्म सिनेमा के छात्रों, सिनेमा के प्रेमियों के लिए एक बाइबिल की तरह है और सभी रचनात्मक लोगों के लिए यह एक वरदान है। उन्होंने कहा कि ओटीटी पर रिलीज होने वाली सीरीज लोगों को घंटों समय दे रही हैं, जिसके जरिये वो कैरेक्टर्स में शामिल होकर, उन्हें एक्सप्लोर कर पा रहे हैं। उन्हें लगता है कि 'डॉ गौरी नाथ' का रोल सबसे अलग है। उनके अनुसार, वास्तविक जीवन में ऐसे किरदारों से वो ना ही कभी मिल पाई, ना ही कभी देख पाई और ना ही कभी उन्हें सुन पाई हैं।
साक्षात्कार के अंश:
फ़िल्म में आपने जो रोल किया हैं, वो भावनात्मक रूप से बहुत थकाऊ लग रहा है। इस रोल को निभाने की तैयारी आपने कैसे की?
किसी भी रोल की तैयारी निर्देशकों और लेखकों के सहयोग के साथ ही होती है। मैं हमेशा अपने नोट्स बनाती हूं और मेरा अपना एक नजरिया होता है। मैं कहे गए हर शब्द के बारे में सोचती हूं, क्योंकि एक समय के बाद जब आप रोल करना शुरू करते हैं, तो आप यह समझने लगते हैं कि 'डॉ गौरी नाथ' का जो किरदार मैं निभा रही हूं, वह इस भाषा का यूज नहीं करेगा। मुझे बहुत सारी तकनीकी जानकारी और मेडिकल लिंगो को समझना था, जो कि स्क्रिप्ट में था। मैं जानना चाहती थी कि शब्दावली का वास्तव में क्या मतलब है। जब हम सर्जरी सीक्वेंस कर रहे थे, तो वहां एक न्यूरोसर्जन मौजूद थे, जो मेरा मार्गदर्शन कर रहे थे। वह इसका तकनीकी अध्ययन था। लेकिन भावनात्मक और मानसिक रूप से, विशेष रूप से गौरी नाथ जैसे चरित्र को बनाने में क्या जाता है, मैं समझा नहीं सकती हूँ। ये रोल सबसे अलग है। ऐसे किरदार से मैं वास्तविक जीवन में कभी मिली, देखी या सुनी नहीं हूँ। ये रोल बहुत ही अप्रत्याशित है और ऐसा रोल मैंने पहले कभी नहीं किया। वह मेरे अंदर ही बढ़ा है। जब हमने शुरुआत की थी तो एक मुख्य बात यह थी कि गौरी का चरित्र एक निश्चित तरीके से लिखा गया है।
वह एक शेरनी की तरह लिखी गई थी। मुझे याद है कि निर्देशक विपुल अमृतलाल शाह और मोजेज सिंह के साथ यह चर्चा हुई, मैंने सुझाव दिया कि गौरी नाथ की भूमिका निभाने के लिए मेरा एक बहुत अलग दृष्टिकोण है। तो उन्होंने पूछा कि मुझे क्या चाहिए? मैंने कहा कि वह शेरनी की तरह लिखी गई है, लेकिन मैं उसे हिरण की तरह निभाना चाहती हूं। हां, वह कौन है, इसमें बहुत ताकत और जटिलताएं हैं। लेकिन क्या होगा अगर वह एक शालीन, नाजुक और कमजोर व्यक्ति थी। यह एक मौका है जिसे मैं ले रही हूं और एक चीज यह है कि एक अभिनेता होने के नाते मेरा एक बहुत मजबूत हिस्सा मेरी आवाज है। लेकिन मैं शो में बहुत अलग तरीके से बात करती हूं। उसकी वॉल्यूम और बात करने की गति बहुत अलग है। लेकिन यह एक जोखिम है, जो मैंने लिया है और मुझे पता है कि अगर मैंने उसे शेरनी की तरह खेला होता, तो मैं सुरक्षित रहती। लेकिन मुझे लगा कि सुरक्षित रहने की क्या बात है और सौभाग्य से निर्देशकों ने इसके लिए हामी भर दी।
क्या आपको लगता है कि वेब सीरीज फॉर्मेट मनोरंजन का भविष्य बनने जा रहा है?
मुझे ऐसा नहीं लगता क्योंकि अपने परिवार और दोस्तों के साथ सिनेमा जाना, समोसा खाना और फिल्म देखना हमारे देश में एक परंपरा है और मुझे नहीं लगता कि यह कभी खत्म होने वाली है। ओटीटी के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि यह कॉन्टेंट और कैरेक्टर-ड्रिवेन है और इसने सभी कलाकारों को मिलने वाले मौकों को व्यापक बनाया है और नए राह भी खोले हैं। यह सिनेमा के छात्रों, सिनेमा प्रेमियों के लिए एक बाइबिल और सभी रचनात्मक लोगों के लिए एक वरदान है। यह केवल बढ़ेगा ही नहीं, बल्कि यह रहने वाला भी है क्योंकि आप इसे अपने घर पर रहते हुए आराम से देख सकते हैं, भले ही महामारी का दौर चल रहा हो। यह बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से निर्धारित नहीं होता है। ऐसा नहीं है कि अगर कोई फिल्म शुक्रवार या शनिवार को अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है, तो वो चली जाती है। जो काम हो रहा है वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है। स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म की पहुंच अद्भुत है। जब 'दिल्ली क्राइम' ओटीटी पर आई तो यह एक बार में 191 देशों तक पहुँच गई।
ओटीटी पर कोई हीरो या हीरोइन नहीं होता, इस बारे में आपका क्या कहना है?
ओटीटी पर वे सभी पात्र हैं और अभिनेताओं द्वारा निभाई गई सभी भूमिकाएँ मजबूत हैं। यहां हर किरदार अपने जगह पर हीरो या हीरोइन होता है। 'दिल्ली क्राइम' में हां, इसका नेतृत्व वर्तिका ने किया था, लेकिन भूपिंदर, नीति या सुभाष या जयराज की बात करें तो ये सभी किरदार अपनी-अपनी जगह हीरो हैं।
सिनेमाघरों के खुलने और बंद होने से क्या आपको लगता है कि लोगों को सिनेमाघरों में जाने की आदत छूटने वाली है?
मैं वास्तव में उम्मीद कर रही हूं कि यह महामारी खत्म हो जाए ताकि हम अपने सामान्य जीवन में वापस जा सकें। मैं थिएटर जाने का इंतजार नहीं कर सकती हूँ और जैसा मैंने कहा, मुझे नहीं लगता कि थिएटर में जाने वाली संस्कृति खत्म हो जाएगी और इसे खत्म भी नहीं होना चाहिए। हर चीज के लिए एक जगह होती है। टेलीविजन शो, 'सास बहू' वाली धारावाहिकों और फिल्मों के लिए एक जगह है, जो अभी भी जारी है। ओटीटी, सिनेमा के विकास के लिए एक एडिशन है।
मनोरंजन उद्योग में एजिस्म (आयुवाद) के बारे में आपका क्या कहना है? क्या ओटीटी इसे दूर करने में सक्षम है?
बिल्कुल, ओटीटी ने वास्तव में इसे मेरे लिए बदल दिया है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कुछ सबसे बड़े शो महिला ओरिएंटेड हैं। ओटीटी ने हमें बहुत सारा कंटेंट दिया है और यह मेरे लिए बहुत रोमांचित करने वाला है। ऐसा लगता है कि मैं इस युग की शिल्पकार हूं। ओटीटी पर आने वाले सीरीज के प्रारूप आपको प्रयोग करने में, चीजों को एक्सप्लोर करने में और चरित्र में शामिल होने के लिए घंटों का समय देते हैं। ओटीटी के साथ अभिनेताओं को देखने का पूरा नजरिया बदल गया है। इसमें लीड रोल जैसा कुछ नहीं है। यह एक आयु वर्ग के बारे में नहीं है, यहाँ हर किरदार दमदार है।
सही तरह की भूमिकाएं निभाने पर…
इसके लिए तो जैसे सौ साल लग गए। यह उस तरह का काम है जो मैं करना चाहती थी और मेरे प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव 'दिल्ली क्राइम' मेरे रोल के बाद आया है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि इंडस्ट्री को मेरे काम से प्यार नहीं था, लेकिन अब आखिरकार उस तरह के रोल मिलने शुरू हो गए हैं जो मैं करना चाहती हूं। अब जो ऑफर मेरे पास आते हैं, चाहे वह लीड हों या समानांतर लीड, वे सिर्फ उस तरह की एक्टिंग हैं, जिसके लिए मैं तरस रही हूं। 'दिल्ली क्राइम' ने मेरे करियर के ग्राफ को बदल दिया और फाइनली अब ऐसी स्क्रिप्ट और भूमिकाएं हैं, जो मुझे ध्यान में रखकर लिखी गई हैं।
शो 'ह्यूमन' से सबसे चुनौतीपूर्ण बिट क्या है?
पूरा शो एक कठिन बॉक्स है और हर पल कुछ न कुछ हो रहा है। इस किरदार को जीने के बाद, मुझे अब भी लगता है कि इस शो की पूरी कॉन्सेप्ट में इतनी गहराई है और यह इतना विशाल है कि इसे समझना बहुत मुश्किल है। तो, कोई खास दृश्य या क्षण नहीं बल्कि पूरा शो शुरू से अंत तक चुनौतीपूर्ण था।