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इलाहाबाद के छात्रों को बताया बमबाज और कट्टाबाज, 'बिहार में का बा' फेम नेहा मुश्किल में

'बिहार में का..बा' गीत बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान काफी लोकप्रिय रहा। इसकी गायिका और यूट्यूबर नेहा...
इलाहाबाद के छात्रों को बताया बमबाज और कट्टाबाज, 'बिहार में का बा' फेम नेहा मुश्किल में

'बिहार में का..बा' गीत बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान काफी लोकप्रिय रहा। इसकी गायिका और यूट्यूबर नेहा सिंह राठौर ने खूब सुर्खियां बंटोरी मगर अब उनके नये गीत से ऐतिहासिक इलाहाबाद विश्वविद्यालय का अपमान करने का आरोप लगा है।

नेहा ने नया गीत लइके युनिवर्सिटी में एडमीशन लड़िहें छात्रसंघ के इलेक्शन..अपने सोशल साइट पर अपलोड किया है। जिसमें मुख्य रूप से इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र चुनाव संस्कृति को निशाना बनाया गया है। इलाहाबाद के छात्रों को बम, कट्टा, झगड़ा कर के कर्नल गंज से कटरा तक परेशान करने वाला बताया गया है। यही ही नहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने का कारण केवल चुनाव लड़ना ही गायिका की ओर से बताया।

इलाहाबाद के छात्र-छात्राओं ने नेहा के इस गीत का विरोध करना शुरू कर दिया है। नेहा के ट्वीटर और फेसबुक अकाउंट को रिपोर्ट करना शुरू कर कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, छात्रों ने चीफ प्रॉक्टर को ज्ञापन सौंपकर नेहा सिंह पर एफआइआर दर्ज कराने की मांग की है।वेे चाहते हैं कि नेहा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।

आलोचनाओं के बाद नेहा ने इस पर सफाई दी। उन्होंने ट्वीटर पर लिखा- आपको इतना भावुक होने की आवश्यकता नहीं है। क्यों बात-बात पर आहत हो जाते हैं? जिस इलाहाबाद विश्वविद्यालय की संस्कृति को अपमानित करने का आरोप आप मुझपर लगा रहे हैं, वो निश्चित रूप से महान हुआ करता था, विश्वविद्यालय को 'ऑक्सफ़ोर्ड ऑफ ईस्ट' भी कहा जाता था; पर अब ऐसा है क्या? एक ऐतिहासिक बुलंद इमारत में डिग्री कॉलेज बनकर रह गया है इलाहाबाद विश्वविद्यालय... और इसके जिम्मेदार हैं कुछ ऐसे 'समझदार' लोग, जो बिना बात, बात-बात पर आहत होने का स्वांग करते हैं, और विश्वविद्यालय के मूल्यों को नष्ट करते हैं। यूनिवर्सिटी स्टैंड्स फ़ॉर यूनिवर्सल आइडियाज के मूल को भूलकर, हर शाखा के एक वृक्ष बनने की क्षमता की काट-छाँट करने के बाद अगर आप उम्मीद करते हैं कि ये प्यारा विश्वविद्यालय अपनी खोई हुई गरिमा वापस पा सकेगा, तो भरोसा कीजिये, आप गलत सोच रहे हैं।  जिस तरह से राजनीतिज्ञों की आलोचना को संविधान की आलोचना नहीं माना जा सकता, उसी तरह से विश्वविद्यालय के मठाधीशों की आलोचना को विश्वविद्यालय की आलोचना नहीं समझा जाना चाहिए। बाकी आलोचना से बाहर तो हमारा संविधान भी नहीं है। 

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