'कोल्हान टाइगर' के नाम से लोकप्रिय चंपई सोरेन का झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के एक प्रमुख नेता से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने तक का सफर कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा है।
किसी समय झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के करीबी सहयोगी रहे चंपई सोरेन को अब झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में पैर जमाने के भाजपा के प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जहां कुल मतदाताओं में से लगभग 26 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों से हैं।
चंपई सोरेन का जन्म सरायकेला-खरसावां जिले के सुदूर गांव जिलिंगगोड़ा में हुआ था। किसी समय अपने पिता के साथ खेतों में हल चलाने वाले चंपई सोरेन राजनीति में एक लंबा सफर तय करके दो फरवरी को झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री बने। झामुमो नेता हेमंत सोरेन ने धनशोधन मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किये जाने से पहले राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद चंपई सोरेन ने मुख्यमंत्री पद संभाला था।
सरकार का नेतृत्व करने के लिए हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना की बजाय चंपई सोरेन को तरजीह दी गई थी लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा।
चंपई सोरेन का कहना है कि मुख्यमंत्री पद पर पांच महीने रहने के बाद, उन्हें उस पार्टी से "अपमान" के कारण इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो उनके लिए बेहद करीब थी।
हेमंत सोरेन की 28 जून को जेल से रिहायी के बाद चंपई सोरेन ने तीन जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। हेमंत सोरेन ने चार जुलाई को झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
एक अलग राज्य के निर्माण से जुड़े आंदोलन के दौरान 1990 के दशक में अपनी भूमिका के लिए 'झारखंड टाइगर' का उपनाम अर्जित कर चुके चंपई सोरेन ने 18 अगस्त को सोशल मीडिया पर अपनी निराशा व्यक्त की।
उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया था, ‘‘इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने के लिए मजबूर हो गया। क्या लोकतंत्र में इससे अधिक अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? बैठक (तीन जुलाई को विधायक दल की बैठक) के दौरान, मुझे इस्तीफा देने के लिए कहा गया। मैं हैरान रह गया। चूंकि मुझे सत्ता की कोई इच्छा नहीं थी, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया। हालांकि, मेरे स्वाभिमान को बहुत ठेस पहुंची।"
चंपई ने साथ ही अपने पोस्ट में यह उल्लेख भी किया गया कि वह अपने आंसुओं को मुश्किल से रोक पा रहे हैं।
चंपई सोरेन ने कहा, ‘‘लेकिन उन्हें (मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम लिये बिना उनकी ओर इशारा करते हुए) सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिसके लिए हमने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।’’
मंगलवार को सोरेन ने भाजपा में शामिल होने के अपने फ़ैसले की घोषणा करते हुए कहा कि उन्हें संघर्षों की आदत है और वे अपने राज्य के हित में ऐसा कर रहे हैं।
सरकारी स्कूल से मैट्रिक पास सोरेन ने 1991 में अविभाजित बिहार की सरायकेला सीट से उपचुनाव के जरिये निर्दलीय विधायक चुने जाने के साथ ही अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।
चार साल बाद उन्होंने झामुमो के टिकट पर इस सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा और भाजपा के पंचू टुडू को हरा दिया। 2000 में विधानसभा चुनाव में उन्हें इसी सीट से भाजपा के अनंत राम टुडू ने हराया।
उन्होंने वर्ष 2005 में भाजपा उम्मीदवार को केवल 880 मतों के अंतर से हराकर सीट फिर से जीत हासिल की और 2009, 2014 और 2019 के बाद के चुनावों में इसे बरकरार रखा।
उन्होंने सितंबर, 2010 से जनवरी, 2013 के बीच अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया, जब भाजपा ने झामुमो के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई थी।
जब हेमंत सोरेन ने 2019 में राज्य में अपनी दूसरी सरकार बनाई, तो चंपई सोरेन खाद्य और नागरिक आपूर्ति और परिवहन मंत्री बने।
चंपई सोरेन का विवाह कम आयु में हो गया था और उनके चार बेटे और तीन बेटियां हैं। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी पांच सीट पर हार का सामना करना पड़ा, जबकि 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी राज्य की 28 आरक्षित सीट में से केवल दो ही जीत सकी।