उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में बादल फटने की घटना ने एक बार फिर हिमालयी क्षेत्र की नाज़ुकता और जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को सामने ला दिया है। रविवार देर रात डुंडा ब्लॉक के दो गांवों में बादल फटने से अचानक आई बाढ़ ने कई घर बहा दिए, जान-माल का भारी नुकसान हुआ और राहत एवं बचाव कार्य अब भी जारी हैं। इस इलाके में पहले भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं, लेकिन हालिया घटना ने एक बड़ी चिंता को जन्म दिया है कि क्या उत्तराखंड अब इन आपदाओं का स्थायी शिकार बनता जा रहा है?
विशेषज्ञों के अनुसार, उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति, तेज़ी से हो रहा शहरीकरण, बेतरतीब निर्माण और जलवायु परिवर्तन इस संकट को और गहरा बना रहे हैं। पूरा राज्य भूकंपीय जोन 4 और 5 में आता है और यहां नदियों के किनारे हो रहे अवैज्ञानिक निर्माण, जंगलों की कटाई, और बढ़ता पर्यटन पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं। इसके अलावा, ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना और मानसून की अनियमितता बादल फटने की घटनाओं को और बढ़ा रही हैं।
डुंडा की घटना में न केवल मकान बह गए, बल्कि लोग लापता भी हैं। बचाव दल NDRF और SDRF तैनात हैं, लेकिन दुर्गम इलाकों तक पहुंचना मुश्किल है। यह आपदा केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि मानवीय लापरवाही और नीति निर्धारण में कमी का परिणाम भी है। राज्य सरकार ने SDRF फंड से मुआवज़ा देने की घोषणा की है, लेकिन स्थायी समाधान की ओर कोई ठोस नीति नज़र नहीं आ रही।
उत्तराखंड की जनता आज हर बारिश को एक खतरे की तरह देख रही है। ज़रूरत है दीर्घकालिक पर्यावरणीय नीति, सख़्त निर्माण नियंत्रण, और लोकल लोगों को शामिल कर पुनर्विकास की योजनाओं की — वरना यह देवभूमि, 'आपदा भूमि' बनती जा रही है।U