भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर 13 जुलाई 2025 से चीन की तीन दिन की यात्रा पर जा रहे हैं। यह 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद उनकी पहली चीन यात्रा है। इस यात्रा से पहले चीन ने कहा है कि तिब्बत से जुड़े मुद्दे, खासकर दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने का मामला, भारत और चीन के बीच संबंधों में एक बड़ा कांटा है।
चीन के दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने कहा कि तिब्बत का मुद्दा भारत के लिए बोझ बन गया है। उन्होंने तिब्बत को "शिजांग" कहकर संबोधित किया, जो चीन में इसका आधिकारिक नाम है। यू जिंग ने दावा किया कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनना पूरी तरह चीन का आंतरिक मामला है और इसमें किसी बाहरी देश को दखल नहीं देना चाहिए।
हाल ही में दलाई लामा ने अपने 90वें जन्मदिन पर कहा था कि उनका उत्तराधिकारी उनके द्वारा बनाए गए ट्रस्ट द्वारा चुना जाएगा, न कि चीन द्वारा। इस बयान से चीन नाराज है। भारत के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कहा था कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार केवल उनके ट्रस्ट को है, जिससे चीन और भड़क गया।
जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में हिस्सा लेने तियानजिन जा रहे हैं और वहां अपने चीनी समकक्ष वांग यी से भी मुलाकात करेंगे। यह यात्रा भारत-चीन संबंधों को बेहतर करने की कोशिश का हिस्सा है, जो 2020 की झड़प के बाद खराब हो गए थे। हाल के महीनों में दोनों देशों ने तनाव कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे डेपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी।
चीन ने भारत को चेतावनी दी कि तिब्बत के मुद्दे पर सावधानी बरतें, वरना संबंधों को नुकसान हो सकता है। वहीं, भारत का कहना है कि दलाई लामा 1959 से भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं और उनकी मौजूदगी भारत को चीन के खिलाफ रणनीतिक लाभ देती है।