फरवरी नैतिकता के अग्रदूत और बेजोड़ प्रतिभा के धनी न्यायविद् फली एस नरीमन न्यायपालिका के ‘भीष्म पितामह’ कहे जाते हैं जिन्होंने संविधान की आधारभूत संरचना से जुड़े ‘केशवानंद भारती’ मामले सहित अन्य मामलों में अहम योगदान देकर देश को गढ़ने का काम किया। न्यायपालिका में उल्लेखनीय योगदान के लिए कानूनी इतिहास में उन्हें याद किया जायेगा। नरीमन का बुधवार को निधन हो गया। वह 95 वर्ष के थे। वह हृदय संबंधित परेशानियों सहित कई बीमारियों से जूझ रहे थे।
नरीमन को जनवरी 1991 में पद्म भूषण और 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। वह एक मुखर व्यक्ति थे जो निसंकोच विभिन्न मुद्दों पर बेबाकी से अपनी बात रखते थे। दशकों तक वकीलों के लिए मार्गदर्शक रहे नरीमन के लिए यह मायने नहीं रखता था कि सत्ता में कौन है। नरीमन को मई 1972 में भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने 26 जून, 1975 को इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने के ठीक एक दिन बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
नरीमन ने अपने निधन से ठीक 12 दिन पहले नौ फरवरी को ‘आईपीआई-इंडिया’ समारोह को संबोधित करते हुए कहा था कि एक ‘‘असंतुष्ट प्रेस’’ एक ‘‘स्वतंत्र प्रेस’’ है और यह लोकतंत्र के लिए जरूरी है। उन्होंने प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंक में गिरावट को ‘‘लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय’’ बताया था। इसके एक सप्ताह बाद, 16 फरवरी को नरीमन ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को चुनावी बॉण्ड योजना मामले में उनकी जीत के लिए बधाई दी थी।
भूषण ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘इस महत्वपूर्ण समय में उनका निधन हमारे देश के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।’’ देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने कानूनविद् और वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन के निधन पर शोक व्यक्त किया और कहा कि वह ‘‘एक महान बुद्धिजीवी थे।’’ भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीन एनवी रमन्ना ने उन्हें ‘‘न्यायिक संस्थानों के लिए सच्चाई का रक्षक’’ बताया।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रमन्ना ने कहा, ‘‘फली एस नरीमन न्यायिक संस्थानों के लिए सच्चाई के रक्षक रहे। अदालत में अपने तर्कों, समाचारपत्रों में लेख, सार्वजनिक व्याख्यान, संसदीय हस्तक्षेप और टेलीविजन साक्षात्कारों के माध्यम से उन्होंने कानूनी पेशेवरों और सामान्य लोगों की पीढ़ियों को समान रूप से शिक्षित किया है।’’ नरीमन समाचार एजेंसी ‘पीटीआई’ के निदेशक मंडल में भी शामिल रहे थे।
नरीमन का जन्म रंगून (अब यांगून) में एक संपन्न कारोबारी परिवार में 10 जनवरी 1929 को हुआ था। नवंबर 1950 में उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय से वकालत शुरू की और 1961 में उन्हें वरिष्ठ वकील का दर्जा हासिल हुआ। उन्होंने शुरुआत में बम्बई में वकालत शुरू की और 1972 तक वहीं रहे और फिर उच्चतम न्यायालय में वकालत करने के लिए दिल्ली आ गये। उनका लंबा और शानदार कानूनी करियर रहा। नरीमन ने स्वतंत्र भारत के सबसे महत्वपूर्ण ‘केशवानंद भारती’ मामले में नानाभाई पालकीवाला की सहायता की थी। वर्ष 1973 का यह फैसला संविधान की आधारभूत संरचना के सिद्धांत से जुड़ा हुआ था।
अपने लंबे और शानदार कानूनी करियर में नरीमन ने भोपाल गैस त्रासदी मामला, टीएमए पाई मामला, जयललिता के आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति का मामला और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त आयोग के चर्चित मामले समेत कई अहम मुकदमों की पैरवी की।उन्होंने नर्मदा पुनर्वास मामले में गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन ईसाई समुदाय पर हमलों और बाइबिल की प्रतियां जलाने की खबरों के बाद इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा वह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के चर्चित मामले से भी जुड़े रहे। इस आयोग को उच्चतम न्यायालय ने भंग कर दिया था।
नरीमन ने ‘द स्टेट ऑफ द नेशन’, ‘इंडियाज लीगल सिस्टम: कैन इट बी सेव्ड?’ और ‘गॉड सेव द ऑनर्बेल सुप्रीम कोर्ट’ जैसी पुस्तकें भी लिखीं। नरीमन को नवंबर 1999 में राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया था। नरीमन के बेटे रोहिंटन नरीमन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रहे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उनके निधन से न सिर्फ कानूनी जगत ने बल्कि देश ने एक ऐसी विशाल शख्सियत को खो दिया है, जिसकी बुद्धिमत्ता का हर कोई लोहा मानता था।