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सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज फातिमा बीवी का 96 साल की उम्र में निधन, ये हैं उनकी उपलब्धियां

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त होने वाली पहली महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी का...
सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज फातिमा बीवी का 96 साल की उम्र में निधन, ये हैं उनकी उपलब्धियां

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त होने वाली पहली महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी का गुरुवार को 96 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह किसी भी उच्च न्यायपालिका में नियुक्त होने वाली पहली मुस्लिम महिला न्यायाधीश भी थीं। गौरतलब है कि फातिमा बीवी का जन्म 30 अप्रैल, 1927 को केरल में हुआ था और उनके पिता ने उन्हें कानून की पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया था। 1950 में, उन्होंने बार काउंसिल परीक्षा में टॉप किया और बार काउंसिल स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं।

उन्होंने केरल में एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया और 1974 में जिला और सत्र न्यायाधीश बनने तक काम किया। 1980 में, वह आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण में शामिल हुईं और 1983 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं। इसके बाद 1989 में, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाली पहली महिला बनकर इतिहास रच दिया। इस पद पर वह 29 अप्रैल, 1992 को अपनी सेवानिवृत्ति तक रहीं। अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, नियुक्त होने से पहले, उन्होंने पहली बार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य के रूप में कार्य किया और इसके बाद तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में अपनी सेवा दीं।

हालांकि, राजीव गांधी हत्या मामले में चार दोषी कैदियों द्वारा दायर दया याचिकाओं को खारिज करने के बाद उन्होंने तमिलनाडु के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया। बता दें कि 26 जनवरी 1950 लो अस्तित्व में आए सुप्रीम कोर्ट में बहुत महिला जज नियुक्त हुई हैं। 71 से अधिक वर्षों में, 1989 में एम फातिमा बीवी से शुरू करके, अभी तक केवल आठ महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है।

शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। उन्होंने अनुसूचित जाति और कमजोर वर्ग कल्याण संघ बनाम कर्नाटक राज्य (1991) मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वैधानिक शक्ति, नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों और कानून के शासन की एक्ससेप्टीबिलिटी पर सीमाओं के मुद्दे से निपटा। इस मामले में कर्नाटक में अनुसूचित जाति और समाज के कमजोर वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाला कल्याण संघ शामिल था, जिसने कर्नाटक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (नियुक्तियों का आरक्षण) अधिनियम के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति फातिमा बीवी भी मामले की सुनवाई कर रही पीठ का हिस्सा थीं। उन्होंने भारतीय संवैधानिक प्रणाली के मौलिक नियम पर जोर दिया जो प्रत्येक नागरिक को राज्य या उसके अधिकारियों द्वारा अधिकार के मनमाने प्रयोग से बचाता है।

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