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भारत में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने वाली कामिनी रॉय, जानिए इनके बारे में

आज कामिनी रॉय की 155वीं जयंती है। कामिनी रॉय एक बांग्ला कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। इतना ही...
भारत में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने वाली कामिनी रॉय, जानिए इनके बारे में

आज कामिनी रॉय की 155वीं जयंती है। कामिनी रॉय एक बांग्ला कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। इतना ही नहीं कामिनी भारत के इतिहास में ग्रैजुएट होने वाली पहली महिला भी थीं। कामिनी ने ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1886 में ऑनर्स की डिग्री हासिल की यानी आजादी से भी पहले ग्रैजुएट होने वाली कामिनी रॉय पहली महिला  थीं। कामिनी ने बेथुन कॉलेज से संस्कृत में बीए ऑनर्स किया और उसी कॉलेज में शिक्षिका के रूप में कार्य करने लगीं।

भारत में जिस समय ना आजादी थी और ना ही अधिकार थे, उस समय कामिनी रॉय ने यानी किसी भारतीय महिला ने इतनी शिक्षा प्राप्त करके इतिहास रचा था। उन्होंने शिक्षा की इस रुचि को आगे बढ़ाया और समाज में शिक्षित होने के लिए महिलाओं को प्रेरित किया। कामिनी रॉय ने ही महिलाओं को वोट का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किए और 1926 में पहली बार महिलाओं को वोट डालने का अधिकार मिला. लेकिन साल 27 सितंबर 1933 में कामिनी रॉय का देहांत हो गया।

हर महिला को समाज में बराबर अधिकार मिले

कामिनी रॉय का जन्म 12 अक्टूबर 1864 में बंगाल के बसंदा गांव में हुआ था। वह बंगाल के एक अमीर परिवार से थीं। उनके पिता चंडी चरण सेन जज और लेखक थे, निशीथ चंद्र सेन उनके भाई कलकत्ता हाई कोर्ट में एक बैरिस्टर थे और बहन जैमिनी नेपाल के शाही परिवार में डॉक्टर थीं। उन्होंने 1894 केदार नाथ रॉय से शादी की। साल 1905 में पति के देहांत के बाद कामिनी रॉय ने अपना पूरा जीवन महिलाओं को शिक्षित कर उन्हें अधिकार दिलाने में बिताया। वह चाहती थीं कि हर महिला को समाज में बराबर अधिकार मिले।

महिलाओं को दिलाया वोट का अधिकार

1909 में उनके पति केदारनाथ रॉय का निधन हो गया। पति के देहांत के बाद वह पुरी तरह से महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई में जुट गई। कामिनी ने अपनी कविताओं के जरिए महिलाओं को उनके अधिकारियों के लिए जागरुक किया। इसी का साथ महिलाओ को मतदान का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने एक लंबा आंदोलन चलाया। आखिरकार, 1926 में महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला और 1933 में कामिनी हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गईं।

लिखीं महिला अधिकारियों से जुड़ी कविताएं

जैसे ही कामिनी रॉय की शिक्षा पूरी हुई उसके बाद उसी विश्वविद्यालय में उन्हें पढ़ाने का मौका मिला। उन्होंने महिला अधिकारियों से जुड़ी कविताएं लिखना शुरू किया। इसी के साथ उनकी पहचान का दायरा बढ़ा। कामिनी अपनी एक सहपाठी अबला बोस से काफी प्रभावित थी। उनसे मिली प्रेरणा से ही उन्होंने समाज सेवा का कार्य शुरू किया और महिलाओं के अधिकारों के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया।

समाज सेवा करने के साथ ही उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलनों में भी भाग लिया। 1883 में वायसराय लॉर्ड रिपन के कार्यकाल के वक्त  इल्बर्ट बिल गया, जिसके अनुसार, भारतीय न्यायाधीशों को ऐसे मामलों की सुनवाई करने का अधिकार दिया गया जिनमें यूरोपीय नागरिक शामिल होते थे। यरोपीय समुदाय ने इसका विरोध किया था लेकिन भारतीयों ने इसका समर्थन किया उन्ही में से कामिनी रॉ भी एक थीं।

गणित के बाद संस्कृत में बढ़ी रुची

कामिनी रॉय कवि रवींद्रनाथ टैगोर से काफी प्रभावित थीं। उन्होंने अपने जीवन में कई रचनाएं लिखीं। पहले उन्हें गणित बहुत पसंद था, लेकिन बाद में संस्कृत की तरफ उनकी रुचि बढ़ी। कामिनी रॉय ने 1889 में छन्दों का पहला संग्रह आलो छैया और उसके बाद दो और किताबें लिखीं। वह 1930 में बांग्ला साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष थीं।

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