- ऋषभ
मई 2017 में गर्मी बहुत पड़ रही थी हिंदुस्तान में। ये गर्मी भारत सरकार के सबसे बड़े नेताओं में से एक अरुण जेटली के लिए और भी ज्यादा हो गई थी। क्योंकि DDCA के एक मामले में कोर्ट में उनको क्रुक कहा जा रहा था और ये हर पेशी पर कहा जा रहा था। कौन था ये आदमी जो जेटली तक को थका रहा था? बाकी लोग उस आदमी के खिलाफ बोलने से क्यों कतरा रहे थे?
ये आदमी कोई सिरफिरा नहीं था। बल्कि 17 की उम्र में लॉ पूरी कर 21 की उम्र में वकालत शुरू कर दी थी इस इंसान ने। कोर्ट से परमीशन लेकर। और 2017 में 94 साल की उम्र में भी बहस करने का वो जज्बा बरकरार था इस आदमी के अंदर। पिछले सप्ताह इन्होंने वकालत से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। आज उनका जन्मदिन है। नाम है राम जेठमलानी। भारत का सबसे मशहूर वकील। कोर्ट के अंदर अपने तर्कों की वजह से और कोर्ट के बाहर अपने बयानों की वजह से। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे और कुछ सालों बाद वाजपेयी के ही खिलाफ चुनाव भी लड़ा। नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर अलग प्रचार करते रहे और साल भर बाद खुलेआम कहा कि मोदी ने मुझे धोखा दिया। इनकी हर बात सुनने के लिए लोग कान खोलकर तैयार रहते हैं।
मोटा-मोटी इनकी कहानी बदलते भारत की कहानी है। वक्त वक्त पर लोगों को स्तब्ध कर देना अच्छा लगता है इनको।
कराची टू बंबई
राम जेठमलानी का जन्म 14 सितंबर 1923 को तत्कालीन बॉम्बे प्रेसिडेंसी के सिंध डिवीजन में हुआ था। सिंध अब पाकिस्तान में है। राम शुरू से ही मेधावी थे। 13 की उम्र में मैट्रिक कर लिया। कराची से 17 की उम्र में लॉ कर लिया और साल दो साल बाद ही दुर्गा से उनकी शादी भी हो गई। उस समय सिंधी लोगों में कई शादियों का प्रचलन था तो इन्होंने कुछ सालों बाद 1952 में दूसरी शादी भी कर ली। रत्ना साहनी के साथ। वो भी वकालत करती थीं। राम जेठमलानी सिंधी लोगों को इंडिया का अल्पसंख्यक मानते हैं और इसका प्रभाव उनके काम और बयानों पर भी पड़ता है।
युवा राम जेठमलानी, स्रोत: यू-ट्यूब डॉक्यूमेंट्री ग्रैब
राम ने कराची में ही अपनी लॉ फर्म शुरू कर दी। अपने सीनियर ए के ब्रोही के साथ पर 1947-48 में माहौल बड़ा खराब था। दंगे खूब होते थे। फरवरी 1948 में कराची में दंगे हुए तो राम बंबई चले आए। उनके मित्र ब्रोही बाद में पाकिस्तान के लॉ मिनिस्टर बने। राम भी बाद में इंडिया के लॉ मिनिस्टर बने थे। तो 1948 में ही राम की लॉ प्रैक्टिस शुरू हुई। यहीं पर रत्ना से उनकी मुलाकात हुई थी। रत्ना पहली महिला वकील थीं जिनसे राम मिले थे। पहली पत्नी दुर्गा से काफी अलग थीं रत्ना। शादी के लिए दोनों को दिल्ली आना पड़ा क्योंकि बंबई में वो दो शादियां नहीं कर सकते थे।
''स्मगलरों का वकील''
उस दौरान बंबई स्मगलरों का गढ़ था। इन पर काफी फिल्में भी बनी हैं। राम शुरुआत में उनके केस लड़ते थे। इनको स्मगलरों का वकील कहा जाने लगा था। हाजी मस्तान के लिए कई केस लड़े थे इन्होंने। इनके पूर्व जूनियर श्री जयसिंघानी ने कहा था कि एक वक्त पर राम की 90 प्रतिशत कमाई इसी तरह के केस से होती थी।
हाजी मस्तान मिर्जा
आलोचक तो अभी भी कह देते हैं पर राम का कहना है: जब भी मैं किसी को अपने ऑफिस में स्मगलिंग के पैसों से भरी जेब लेकर आते देखता तो मैं इसे अपना कर्तव्य मानता था कि अनैतिक पैसों से उस इंसान को मुक्ति दिलाई जाए। राम का करियर चल रहा था। एक चागड़ वकील के तौर पर। 1957 में इनको मौका मिला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने का। एक रिफ्यूजी मामले को लेकर। इसमें बॉम्बे लैंड रिक्विजिशन एक्ट की संवैधानिकता मापी गई थी।
राम का कहना है कि कानून में माइलस्टोन महान लोगों के केस से नहीं बनते बल्कि डिसरिप्यूटेबल लोगों के केस से ही बनते हैं।
नानावटी केस से आए सुर्खियों में
राम का वक्त आया 1959 में। एक सिंधी प्रेम कहानी के मार्फत। एक पारसी नेवी ऑफिसर कावस नानावटी की बीवी सिल्विया को एक सिंधी प्लेबॉय प्रेम आहूजा से इश्क हो गया। प्रेम को एक आर्मी ऑफिसर और एक एयरफोर्स ऑफिसर की बीवियों से भी इश्क था। ये राम ही बताते हैं एक किताब में। तो जब नानावटी को इस अफेयर के बारे में पता चला तो एक दिन वो बिना बताये अपने घर चला आया। वहां प्रेम को एक तौलिये में लिपटा पाकर उसने गोली मार दी। फिर पुलिस स्टेश जाकर आत्मसमर्पण कर दिया। उस वक्त न्याय का वर्तमान सिस्टम नहीं था बल्कि जूरी का सिस्टम था। राम उस वक्त पब्लिक प्रोसिक्यूटर सी एम त्रिवेदी के असिस्टेंट के तौर पर थे। कोर्ट में बैठे रहते थे। पर उस वक्त रूसी करंजिया की फेमस मैगजीन ब्लिट्ज इस केस को जोरदार तरीके से कवर कर रही थी। ये मैगजीन हैंडसम नानावटी के समर्थन में थी। माहौल सा बना दिया था। नानावटी अपनी नेवी की ड्रेस में कोर्ट आता। लड़कियां उसे लेटर लिखतीं। धोखा खाया हुआ हैंडसम चुप रहने वाला हसबैंड भारत के लोगों के लिए किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं था। कहा जाता है कि जूरी में बैठी एक लड़की ने नानावटी को आंख भी मारी थी।
नानावटी केस की रिपोर्ट, फोटो में कावस नानावटी
राम कहते हैं कि नानावटी ईमानदार आदमी था तब तक जब तक कि वो वकीलों से नहीं मिला। बहरहाल राम इस केस में काफी हाथ पैर मार रहे थे। मृतक की तरफ से। प्रेस ने इनको भी खूब कवर किया। राम ने त्रिवेदी को खूब सिखाया पढ़ाया। क्रॉस एग्जामिनेशन को एकदम नाटकीय बना दिया। अपोजिशन के तर्क को मटियामेट कर दिया कि जब प्रेम और नानावटी जूझे तो तौलिया क्यों नहीं गिरा, गोली ही कैसे चल गई। इस तर्क को प्रेस में खूब जगह मिली थी। कहा जा रहा था कि राम ही कठपुतलियां नचा रहे हैं कोर्ट में। पर भावनाओं के दबाव में जूरी ने नानावटी को माफ कर दिया। ट्रायल कोर्ट के जज ने मामला हाई कोर्ट में भेज दिया। यहां सरकारी वकील थे वाई वी चंद्रचूड़ जो बाद में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने। इनके बेटे अभी राइट टू प्राइवेसी मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच में थे। राम इनको असिस्ट कर रहे थे। राम ने यहां पर खूब खेला। जूरी के फैसले को चैलेंज करने के लिए तर्क पर तर्क दे दिए। हाई कोर्ट ने नानावटी को गिल्टी घोषित किया। उसको जेल हुई। पर बाद में मामला आगे गया। बहुत बातें हुईं। समझौते हुए। प्रेम आहूजा की बहन से बात करने राम ही जाते थे। नतीजन नानावटी को माफी मिल गई और वो सिल्विया के साथ कनाडा चला गया। इस कहानी पर अक्षय कुमार की फिल्म रुस्तम भी आई थी। जो भी हो, इतने हाई प्रोफाइल मामले में राम लगातार बने रहे थे और इस केस के मास्टरमाइंड के रूप में उनको जाना जाने लगा। अब ये वकील हाई प्रोफाइल हो चुका था। राम को इस सिस्टम से खेलना भी आता था।
नानावटी केस पर बनी फिल्म 'रुस्तम'
इंदिरा गांधी के कट्टर आलोचक
वकालत तो चलती रही, अब राम ने राजनीति में भी रुझान दिखाना शुरू किया या फिर यूं कहें कि राजनीति ने इनमें रुझान दिखाना शुरू किया। बंबई के उल्हासनगर से 1971 में इन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा। शिवसेना और जनसंघ दोनों ने सपोर्ट किया था। पर राम हार गये। बाद में वो बार एसोशिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन बन गए। उस दौरान ये तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कट्टर आलोचक थे। इमरजेंसी के दौर में भी इन्होंने ये बेबाकी बरकरार रखी। सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जनतंत्र अब ताबूत में जा चुका है। नतीजन केरल से इनके खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी हो गया और फिर बंबई हाई कोर्ट में 300 वकीलों के साथ नानी पालखीवाला इनका केस लड़ने के लिए आए। कोर्ट ने अरेस्ट पर स्टे लगा दिया। बाद में फिर स्टे हटा लिया गया। तब तक राम कनाडा चले गये। लौटे इमरजेंसी खत्म होने के बाद। कनाडा में ही रहते हुए उन्होंने बॉम्बे नॉर्थ वेस्ट लोकसभा से नॉमिनेशन भर दिया। जीत भी गये। कानून मंत्री एच आर गोखले को हराया था।
इंदिरा गांधी, फोटो- Rediff.com
मोरारजी देसाई को थी जेठमलानी के ड्रिंक करने से समस्या
इनको उम्मीद थी कि पीएम मोरारजी देसाई इनको लॉ मिनिस्टर बना देंगे। पर देसाई को इनके ड्रिंक करने से समस्या थी। देसाई ने नहीं बनाया। जब देसाई शराबबंदी प्रमोट कर रहे थे तब राम ने कहा था: You stick to your pissky and I'll stick to my whisky. कहा जाता है कि देसाई स्वमूत्र चिकित्सा में विश्वास रखते थे। ये राम का व्यंग्य था। देसाई के साथ ये तनातनी बनी रही। एक बार देसाई ब्रह्मचर्य पर भाषण दे रहे थे। बीच में ही राम ने कह दिया था: मोरारजीभाई, अगर मेरी बीवी गजराबेन ( देसाई की पत्नी) जैसी दिखती तो मैं 18 की उम्र में ही ब्रह्मचारी बन जाता। जेठमलानी ने किसी को छोड़ा नहीं है। उनकी बातों के रेजर से कोई नहीं बचा है, सबकी दाढ़ी छील दी है, जब मन किया तब। किसी को माफ नहीं किया। जमाने से नहीं डरते राम।
मोरारजी देसाई, फोटो साभार- मिड डे
किशोर कुमार की बीवी को किया किस
2015 में एक तस्वीर वायरल हुई थी। राम जेठमलानी लीना चंद्रावरकर को स्टेज पर किस कर रहे थे। लीना गायक किशोर कुमार की बीवी थीं। इस बात पर खूब हंगामा हुआ। लीना ने बाद में कहा कि वो स्टेज पर लड़खड़ा गई थीं। राम ने उन्हें संभाला था। बाद में पूछा कि क्या मैं आपको किस कर सकता हूं। लीना ने कहा कि मैं खुद उनकी बड़ी फैन हूं। मैंने कहा हां। राम ने लीना से कहा था कि जिंदगी में जो करना है कर लो, ये नहीं सोचना कि कौन क्या कहेगा।
जजों के बारे में
राम का ये तरीका सिर्फ उनकी जिंदगी में ही नहीं रहा है। कोर्ट में भी रहा है। उनके तर्क इसी अंदाज में रहते थे। अभी कुछ समय पहले ही एक केस के दौरान एक जज ने कहा कि इस केस के कुछ तथ्य समझा दें। राम ने तुरंत कहा कि समझा दूंगा, पर दुर्भाग्य से अब जजों ने पढ़ना छोड़ दिया है। राम जेठमलानी ने ये भी कहा था कि जज दो तरह के होते हैं। एक वो जो कानून जानते हैं, दूसरे जो कानून मंत्री को जानते हैं। पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज मार्कंडेय काटजू ने अपने ब्लॉग पर एक केस का जिक्र किया है। इसमें रेप का आरोपी 65 साल का था। उसके वकील ने कहा कि इतना बूढ़ा आदमी रेप कैसे कर सकता है। काटजू ने एक पुराने केस का हवाला देते हुए कहा कि एक सीनियर वकील ने बताया था कि सेक्स करने की इच्छा 30 से 80 साल की उम्र के बीच रहती है और इसी बीच खत्म होती है। काटजू ने ये भी कहा कि हमारे बीच राम भी हैं, जिनको काफी अनुभव है। 85 साल के राम ने तुरंत कहा: I plead guilty, My Lord.
जज को नाराज करना बहस करने का सबसे खराब तरीका है
राम जेठमलानी के कोर्ट में बहस करने का तरीका काफी अलग है। एक तो उनको सब लोग जानते हैं तो अलग ही माहौल बन जाता है। इसके अलावा वो बहुत कम पेपर ले के जाते हैं। जिस पर कुछ कुछ चीजें लिखी होती हैं। आम तौर पर वकील पेपर का गट्ठर ले जाने के लिए जाने जाते हैं। बहस करते वक्त राम एक विशेष कोण पर खड़े हो जाते हैं। पैर एक विशेष अंदाज में तिरछे टिका लेते हैं। जोर जोर से काफी साफ आवाज में बोलते हैं। पूरे कोर्ट में वो आवाज गूंजती है। बीच बीच में पानी की एक घूंट भी ले लेते हैं। कभी भी जल्दबाजी में नहीं रहते। जजों को नापते रहते भी हैं। कभी जिद नहीं करते। राम कहते हैं कि किसी बहस में जज को नाराज करना बहस करने का सबसे खराब तरीका है। इसका मतलब ये नहीं कि वो मेहनत नहीं करते। एक इंटरव्यू में उनसे एक युवा वकील ने कहा था सर मैं 12 घंटे मेहनत करता हूं, और क्या कर सकता हूं आगे बढ़ने के लिए। राम ने कहा कि 80-90 की उम्र में मैं 22 घंटे रोज मेहनत करता हूं। हालांकि एक दूसरे इंटरव्यू में राम अपने डिनर के बारे में कहते हैं कि दो ह्विस्की के पैग और कभी कभी आइसक्रीम। राम के बारे में जितना जानते जाइए, चकित होते जाएंगे।
जब रेपिस्ट को बताया प्रेमी
किताब ‘द रिबेल’ में राम के बारे में एक किस्सा है। रेप के आरोपी एक इंजीनियर को बचाने के बारे में वे बताते हैं। कहते हैं कि मूल रूप से वह व्यक्ति एक प्रेमी है। मैं उसे नीचा नहीं दिखा सकता। पूछा गया कि पर उसने तो रेप किया तो राम कहते हैं कि हां, पर वो प्रेम का रिजल्ट था। इसे रेप के समर्थन में ना समझें। ये एक वकील की भाषा है कि वो अपने पास आए व्यक्ति को बिना जज किये किस नजर से देखता है। क्या क्या तर्क प्रस्तुत करता है।
किताब 'द रिबेल' का कवर
जब लड़ा इंदिरा गांधी के हत्यारों का केस
जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो ये 'ओपन एंड शट केस था।' एक मारा गया था, दो लोग पकड़े गए थे। पर जेठमलानी थे इस मामले में दोनों हत्या के आरोपियों का केस लड़ रहे थे। बलबीर सिंह और केहर सिंह का। 2009 में आउटलुक को बताया था कि हमारे व्यवसाय में किसी की रिक्वेस्ट को आदेश के तौर पर लिया जाता है। मेरे पास उनके केस को लड़ने के अलावा कोई उपाय नहीं था।
फोटो साभार- इंडियन एक्सप्रेस आर्काइव
सिंधियों के अल्पसंख्यक होने की बात ऊपर कही गई है। राम अल्पसंख्यकों के अधिकारों के बड़े पक्षधर रहे हैं। राम ने बलबीर सिंह को बचा लिया। पर केहर सिंह को फांसी हुई। राम कहते हैं कि उसका केस तो और भी कमजोर था। राम को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। कांग्रेसी की विरोधी पार्टी भाजपा से उनको निकाल दिया गया। राज्यसभा में चिल्लाया गया कि इंदिरा गांधी के हत्यारों का वकील, उसको राज्यसभा में क्यों लाया।
राजीव गांधी की हत्या के आरोपी का केस लड़ा
जेठमलानी ने राजीव गांधी की हत्या के आरोपी मुरुगन का केस भी लड़ा। कहा कि मुरुगन का काम देश के खिलाफ षड़यंत्र नहीं था बल्कि एक प्रधानमंत्री से नाराजगी थी जो लिट्टे को मदद देने के अपने वादे से मुकर गया था। मुरुगन को उसके बॉस ने सिखाया था। उसने वही किया जो उससे कहा गया था। एक सिटिंग प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री के हत्या के आरोपियों का केस लड़ना सबके बस की बात नहीं थी। एक वकील के नजरिए से बस उसे अपना क्लाइंट दिख रहा था जिनके निर्दोष होने की वो वजहें खोज रहा था। कभी कभी ऐसा लगता है कि राम केस के सही गलत होने के बजाय आरोपियों को बचाने की अपनी क्षमता नापा करते थे, वरना ऐसे केस कौन लेता?
आडवाणी को जिताया केस
1992 में हर्षद मेहता स्कैम का खुलासा हुआ। बंबई के वकीलों की चांदी हो गई। मेहता के खिलाफ 70 से ऊपर केस थे। वकील जिस वक्त हर्षद से एक लाख रुपया फीस लेकर पार्टी मना रहे थे, राम 25 लाख रुपए लेते थे। इस केस पर कोई अंतिम फैसला कभी नहीं हुआ पर राम के स्टेटस में ये चार चांद लगा गया। उस वक्त जब भी राम का नाम कहीं आता, लोग सोचने लगते कि ये आदमी अब क्या करेगा। बाद में राम ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी का भी हवाला केस लड़ा। जिता भी दिया। 2015 में राम ने कहा कि सिर्फ मेरी ही वजह से लाल ये केस जीत पाए। आडवाणी ने कसम खाई थी कि ये केस क्लियर होने के बाद ही संसद में कदम रखूंगा। राम ने लाज रख ली थी।
लाल कृष्ण आडवाणी
क्लाइंट्स में लालू से लेकर अमित शाह, अफजल गुरू, आसाराम हैं शामिल
राम यहीं नहीं रुके। 1996 में चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव का नाम आया। राम ने ये केस भी लड़ा। बाद में जयललिता के ऊपर लगे आरोपों का केस भी लड़ा। 2जी स्कैम की आरोपी कणिमोझी का केस भी लड़ा। भाजपा नेता येदुरप्पा के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का केस भी लड़ा। 2006 में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में अमित शाह का भी केस लड़ा और 2001 के पार्लियामेंट अटैक के आरोपी अफजल गुरु की फांसी की सजा माफ कराने के लिए भी मांग की। रेप केस के आरोपी आसाराम बापू का केस भी लड़ा तो जेसिका लाल मर्डर केसे के आरोपी मनू शर्मा का केस भी लड़ा। रामलीला मैदान वाले मामले में बाबा रामदेव का भी केस लड़ा। तो सुब्रत रॉय की तरफ से भी केस लड़ा और सबसे ताजा अरुण जेटली के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की तरफ से भी केस लड़ा। फ्री में। बाद में नाराज हुए तो 2 करोड़ की मांग कर दी। यही नहीं 2011 में जब पाकिस्तान गए तो रेड कारपेट पर स्वागत उनका स्वागत हुआ। पाक की तत्कालीन विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार का मुंह लाल हो गया, जब राम ने वहीं कह दिया कि चीन भारत और पाकिस्तान दोनों का दुश्मन है।
राम जेठमलानी की राजनीतिक उठापटक
राम का पॉलिटिकल करियर भी इसी तरीके से चला है। 1977 के बाद वो 1980 के लोकसभा चुनाव में भी जीते पर 1985 के चुनाव में कांग्रेस के सुनील दत्त से हार गये। इसी दौरान उनको भाजपा से निकाल दिया गया था। 1988 में वो कर्नाटक से राज्यसभा पहुंचे। एक पार्टी बनाई पर तुरंत ही बंद भी कर दी। बाद में 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में लॉ मिनिस्टर बने। 1998 में मिनिस्टर ऑफ अर्बन अफेयर्स बने। बाद में 1999 में फिर वाजपेयी सरकार में लॉ मिनिस्टर बने। पर तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ए एस आनंद और अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी से असहमतियों के कारण इस्तीफा देना पड़ा। 1987 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा। 1995 में भारत मुक्ति मोर्चा के नाम की अपनी राजनीतिक पार्टी भी बना ली और फिर 2004 में लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ लिया। कांग्रेस ने उनके सपोर्ट में अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। फिर भी राम हार गए और 2010 में भाजपा ने ही उनको राजस्थान से राज्यसभा पहुंचा दिया। 2012 में राम ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को पत्र लिखा कि यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी चुप क्यों है। ये पत्र इंटरनेट पर आ गया। नतीजन 2013 में जेठमलानी को पार्टी से बाहर कर दिया गया। राम ने भाजपा पर 50 लाख रुपये की मानहानि का केस कर दिया क्योंकि भाजपा ने कहा था कि He was not a fit person to be member of the party.
भाजपा से खट्टे-मीठे रिश्ते
1980 के दौरान एक कार्यक्रम में अटल, आडवाणी के साथ, फोटो साभार- टाइम्स कंटेट
वाजपेयी सरकार में ही मंत्री रहने के दौरान अरुण जेटली से इनकी ठन गई थी। अस्सी के दशक में अरुण ने बतौर वकील राम को असिस्ट किया था। नुस्ली वाडिया के बॉम्बे डाइंग और अंबानी के रिलायंस इंडस्ट्रीज के मामले में। बाद में दोनों लोग वाजपेयी सरकार में मंत्री हुए। राम लॉ मिनिस्टर बने। जेटली भी बनना चाहते थे। बाद में राम को रिजाइन करना पड़ा था। राम के मुताबिक लॉ मिनिस्ट्री छिन जाने में अरुण का भी हाथ था तो अरविंद केजरीवाल वाले मामले में ऐसा माना जा रहा था कि अरुण जेटली पर तंज कसकर राम बदला निकाल रहे थे। अरुण के मानहानि के दावों पर राम ने पैसों और इज्जत को जोड़ते हुए व्यंग्य किया था। बार बार क्रुक कह रहे थे जेटली को हालांकि लॉ मिनिस्ट्री के छिनने में भारत के जुडिशियल सिस्टम की एक कमजोरी सामने आई थी। कानून मंत्री, सरकार के वकील अटार्नी जनरल और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बीच त्रिकोणीय मामला हो गया। श्रीकृष्ण कमीशन की रिपोर्ट को लेकर तीनों लोग आपस में भिड़ गए थे। यही नहीं, उस साल वकीलों ने हड़ताल की थी। कानून मंत्री जेठमलानी वकीलों से अच्छे से पेश नहीं आए थे। उनको बार एसोशिएशन से बाहर कर दिया गया था। कहा जाता है कि वाजपेयी इनको मंत्रिमंडल में नहीं चाहते थे, पर आडवाणी की जिद पर इनको लाया गया था। बाद में मामला इतना बिगड़ गया कि चीफ जस्टिस से तकरार के बाद हटाना ही पड़ा।
रिजाइन करना भी उतना ही नाटकीय रहा। उस दिन जेठमलानी पुणे में छात्रों को बतौर कानून मंत्री संबोधित करने जा रहे थे। रास्ते में ही पता चला कि पीएम ने इस्तीफा मांग लिया है। छात्रों को संबोधित करने से पहले राम ने सुनिश्चित किया कि इस्तीफा फैक्स हो। उसके बाद संबोधित करते हुए कहा: दोस्तों, माफ करना. मैं वो जेठमलानी नहीं हूं जिसको सुनने के लिए आप एकत्रित हुए हैं। आपने एक घंटा इंतजार किया कानून मंत्री को सुनने के लिए पर सॉरी अब मैं कानून मंत्री नहीं हूं।
बतौर क्रिमिनल लॉयर वो इंडिया के सबसे बड़े वकील हैं। वो कहते हैं कि लोग क्रिमिनल लॉयर को बिना किसी नैतिकता के समझते हैं पर इसको देखने का दूसरा नजरिया भी है। अपराधियों के केस लड़ता हुआ वो एक समाज सुधारक भी है जो सबके बराबर हितों के लिए लड़ता है। राम जेठमलानी की जिंदगी निस्संदेह तमाम फिल्मों और कथाओं को जन्म देगी।
(स्रोत: राम जेठमलानी की आत्मकथा- द रिबेल, आउटलुक, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे, taxtitans.com)