भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता और दलित स्कॉलर आनंद तेलतुंबड़े को पुणे सेशंस कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया है। पुणे पुलिस ने उन्हें शनिवार सुबह मुंबई एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया था। उन पर नक्सलियों के साथ संबंध होने का शक है।
इससे पहले शुक्रवार को पुणे सेशंस कोर्ट ने तेलतुंबड़े की अग्रिम जमानत की याचिका रद्द कर दी थी जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी की गई है। उनकी अग्रिम जमानत रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा था कि जांच अधिकारियों के पास तेलतुंबड़े के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। इसके अलावा आरोपी के बारे में जांच बहुत महत्वपूर्ण चरण में है।
इस मामले में पुणे पुलिस पहले ही वरवरा राव, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और वेरनोन गोंजाल्विज जैसे कुछ वामपंथी विचारकों को पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है।
ये है भीमा कोरेगांव लड़ाई
भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 को कोरेगांव भीमा में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा सेना के बीच लड़ी गई थी। इस लड़ाई की खासियत यह थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी के झंडे तले 500 महार सैनिकों ने पेशवा बाजीराव-2 की 25 हजार सैनिकों की टुकड़ी से लोहा लिया था। उन्हें पेशवा अपनी टुकड़ी में शामिल नहीं करते थे क्योंकि उस समय महार अछूत जाति मानी जाती थी। महारों ने पेशवा से कहा था कि वे उनकी तरफ से लड़ना चाहते हैं लेकिन पेशवा ने उनका आग्रह ठुकरा दिया था। बाद में अंग्रेजों और महारों ने मिलकर पेशवा के खिलाफ यह लड़ाई लड़ी थी और पेशवा को हराया था।
सालगिरह पर हुआ था कार्यक्रम
बाद में अंग्रेजों ने कोरेगांव में अपनी जीत की याद में जयस्तंभ का निर्माण कराया था। आगे चलकर यह दलितों का प्रतीक बन गया। लड़ाई की 200वीं सालगिरह के मौके पर दलित संगठनों ने 31 दिसंबर 2017 को कार्यक्रम का आयोजन किया था। इसमें कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी जिसके अगले दिन भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क गई जिसमें एक युवक की मौत हो गई और 50 से ज्यादा गाड़ियां फूंक दी गईं।