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केले के किसानों को फाइबर उद्योग के साथ जोड़ने की मुहिम, रोजगारमुखी है परियोजना

गुजरात। केले की खेती करने वाले किसानों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसलिए विभिन्न...
केले के किसानों को फाइबर उद्योग के साथ जोड़ने की मुहिम, रोजगारमुखी है परियोजना

गुजरात। केले की खेती करने वाले किसानों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसलिए विभिन्न सहकारी संस्थाओं के माध्यम से केले की खेती करने वाले किसानों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक बनाने और उन्हें फाइबर उद्योग के साथ जोड़ने के हर संभव प्रयास सरकार द्वारा किए जा रहे हैं। सरकार की फाईबर परियोजना रोजगारमुखी और आर्थिक लाभ पहुंचाने वाली योजना है।

असल में बनाना फाइबर केले के पौधे से छील कर निकाला गया रेशा है जो जूट या सन की तरह होता है। यह तना फसल प्राप्त करने के बाद बचा हुआ अवशेष होता है जो पहले उपयोग में नही आता था और खेतो के किनारे सड़ता रहता था। नतीजतन, किसानों को अपने खेतों से तने को हटाने में ही अपनी जेब से बारह से पंद्रह हजार रुपए तक खर्च करने पड़ते थे। लेकिन सरकार की फाइबर परियोजना की वजह से यह लागत बहुत कम रह गई है। फाईबर उद्योग की वजह से केले के तने का पूरा इस्तेमाल हो पा रहा है वही इससे निकलने वाले कचरे पर नियंत्रण रखने में भी सफलता मिल रही है। केले के किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस मुहिम की शुरुआत उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उस समय गुजरात के कृषि मंत्री के पद पर कार्यरत दिलीप भाई संघानी द्वारा किया गया था। गुजरात के कृषि और मत्स्य विभाग सहित अनेकों विभागों के मंत्री रह चुके दिलीप संघानी चार बार सांसद भी रह चुके हैं।

इस तरह बनाना फाइबर हेतु केले का तना कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है। इस पूरी प्रक्रिया में केले के तने को मशीन द्वारा चार भागो में काट कर अलग-अलग कर लिया जाता है। इसके बाद मशीन में डालकर बनाना फाइबर तैयार किया जाता है तथा इसे धुल कर एवं सुखाकर संरक्षित कर लिया जाता है। इस बनाना फाइबर का इस्तेमाल इको फ्रेंडली यानी पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद जैसे हैण्डबैग, चटाई, बेल्ट, कपडे़, साड़ी, सोफा-कवर, दरी, फैन्सी कोटी इत्यादि बनाने में कच्चे माल की तरह किया जाता है।

गुजरात राज्य सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (गुजकोमासोल) के अध्यक्ष एवं सह इफको के अध्यक्ष दिलीप भाई संघानी ने इस विषय में बताया कि," केला उत्पादन में गुजरात भारत में तीसरे स्थान पर है और सिर्फ गुजरात राज्य में लगभग 64.70 हजार हेक्टेयर भूमि पर केला उत्पादन होता है। भरुच और आसपास के इलाकों में भी बड़े पैमाने पर केले की खेती की जा रही है। केले की खेती में केले का गूदा निकालने के बाद बचे तने का इस्तेमाल सबसे जरुरी है ताकि पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान ना पहुंचे और किसानों को फाईबर उद्योग से जुड़ कर बहुत लाभ हो रहा है।"

उन्होंने आगे बताया कि केले के तने से निकलने वाले प्राकृतिक तरल से तरल खाद और ठोस अपशिष्ट से खाद के उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों ने भी अपने शोध में पाया है कि इस प्रकार से तैयार खाद के इस्तेमाल से खेतों को कई तरह के फायदे हुए औऱ सभी तरह के पोषक तत्व भी मिट्टी को मिल पाए। दिलीप संघानी का दावा है कि इस प्रकार से तैयार उर्वरक के खेतों में इस्तेमाल से ना केवल किसानों की फसल बेहतर होगी और उपज बढेगी बल्कि खेतों की उवर्रता में भी आशातीत सुधार होगा।

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