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समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने को लेकर केंद्र का विरोध, सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर दाखिल किया जवाबी हलफनामा

केंद्र सरकार ने देश में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए...
समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने को लेकर केंद्र का विरोध, सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर दाखिल किया जवाबी हलफनामा

केंद्र सरकार ने देश में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दायर किया है।

केंद्र ने कहा, "आईपीसी की धारा 377 का गैर-अपराधीकरण समलैंगिक विवाह के लिए मान्यता प्राप्त करने के दावे को जन्म नहीं दे सकता है।" केंद्र ने कहा कि समान सेक्स संबंध की तुलना भारतीय परिवार की पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों के सिंद्धात से नहीं की जा सकती है। विवाह की धारणा विपरीत सेक्स के मेल को मानती है। शुरू में ही विवाह की धारणा अनिवार्य रूप से विपरीत सेक्स के दो व्यक्तियों के बीच एक मिलन को मानती है।

केंद्र ने कहा कि विषमलैंगिक विवाह को दिए गए विशेष दर्जे को अनुच्छेद 15(1) के तहत समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव या विषमलैंगिकता के विशेषाधिकार के रूप में नहीं माना जा सकता है। "हालांकि यह निश्चित रूप से सच है कि सभी नागरिकों को अनुच्छेद 19 के तहत संघ बनाने का अधिकार है, कोई सहवर्ती अधिकार नहीं है कि ऐसे संघों को आवश्यक रूप से राज्य द्वारा कानूनी मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।"

समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट कल सुनवाई करेगा। शीर्ष अदालत ने 6 जनवरी को, दिल्ली उच्च न्यायालय सहित देश के सभी उच्च न्यायालयों में लंबित समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं को एक साथ सम्बद्ध करते हुए अपने पास स्थानांतरित कर लिया था। कोर्टने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित दो याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित करने के संबंध में 14 दिसंबर, 2022 को केन्द्र सरकार से जवाब मांगा था।

कोर्ट ने कहा था कि केन्द्र की ओर से पेश हो रहे वकील तथा याचिका दायर करने वालों की अधिवक्ता अरुंधति काटजू साथ मिलकर सभी लिखित सूचनाओं, दस्तावेजों और पुराने उदाहरणों को एकत्र करें, जिनके आधार पर सुनवाई आगे बढ़ेगी।

बता दें कि 2018 में आपसी सहमति से किए गए समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाने वाले उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ भी शामिल थे। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने पिछले साल नवंबर में केन्द्र को इस संबंध में नोटिस जारी किया था और याचिकाओं के संबंध में महाधिवक्ता आर. वेंकटरमणी की मदद मांगी थी। शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने छह सितंबर, 2018 को सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए देश में वयस्कों के बीच आपसी सहमति से निजी स्थान पर बनने वाले समलैंगिक या विपरीत लिंग के लोगों के बीच यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।

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