जिन लोगों ने आजादी की लड़ाई में अपने खून का एक कतरा भी नहीं बहाया वो आज मुल्क के असली बाशिंदों से उनकी नागरिकता और देश भक्ति का सबूत मांग रहे हैं। हुकूमत दरअसल डूबती हुई अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी और मंहगाई जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए नागरिकता जैसे मुद्दे खड़ा कर रही है। यह विचार सामाजिक कार्यकर्त्ता और बुद्धिजीवी प्रोफेसर योगेंद्र यादव ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम में व्यक्त किए।
"डिफेंडिंग आईडिया ऑफ इण्डिया" विषय पर दूसरे कैप्टेन अब्बास अली मेमोरियल व्याख्यान में उन्होंने कहा कि इस वक्त पूरे मुल्क में नागरिक अधिकारों को लेकर प्रतिरोध और नवचेतना की जो लहर चल रही है ऐसा इतिहास में कभी कभार ही होता है। ये एक ऐसा आंदोलन है जिसमें पंजाब से पोंडिचेरी तक लोग कंधे से कन्धा मिलाकर खड़े हो गए हैं और एक बेहतरीन भारत का सपना देख रहे हैंं।
'दांव पर लगे हैं डेमोक्रेसी, डाइवर्सिटी और डेवलपमेंट'
योगेंद्र यादव ने कहा कि इस वक्त डेमोक्रेसी, डाइवर्सिटी और डेवलपमेंट तीनों दांव पर लगे हैं और ये लड़ाई मजहब, संस्कृति और कौमपरस्ती की मदद से लड़ी जा सकती है क्योंकि इन तीनो में असाधारण शक्ति है। समाजशास्त्री प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि प्रो. योगेंद्र यादव की बातें अँधेरे में रोशनी की किरण है।
'देश में अमन चैन चाहते थे कैप्टन अब्बास'
पत्रकार क़ुरबान अली ने कहा कि कैप्टेन अब्बास अली की ख्वाहिश इस मुल्क के आजाद होने के साथ साथ एक ऐसा हिंदुस्तान देखने की थी जहां अमीर-गरीब के बीच, जाति, धर्म, सम्प्रदाय और भाषा के नाम पर शोषण न हो। जहां जुल्म, ज्यादती, अन्याय और सांप्रदायिकता न हो और देश का हर नागरिक अपना सर ऊंचा करके चल सके। उन्होंने कहा कि आज उनके लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि देश में अमन चैन, आपसी भाई चारे तथा देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखा जा सके।
आजाद हिन्द फौज के सिपाही और मशहूर स्वतंत्रता सेनानी कैप्टेन अब्बास अली का जन्म 3 जनवरी 1920 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में हुआ था और यह उनका जन्मशती वर्ष है। इस जन्मशती समारोहों की शुरुआत दूसरे कैप्टेन अब्बास अली मेमोरियल व्याख्यान से हुई है जो अगले एक वर्ष तक चलेंगे।