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" संकट और सकारात्मक सोच"

कोरोना जैसी महामारी के बीच मैं इससे संबंधित विभिन्न विशेषज्ञों के विचारों को लगातार सुनने और समझने का...

कोरोना जैसी महामारी के बीच मैं इससे संबंधित विभिन्न विशेषज्ञों के विचारों को लगातार सुनने और समझने का प्रयास कर रहा हूँ। हाल ही में आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के निदेशक डॉ गुलेरिया साहब को भी सुनने का मौका मिला, जहाँ मुझे सकारात्मक और उपयोगी बातें पता चलीं। दरअसल, मैं इसलिए आपसे इस बात को साझा करना चाहता हूँ क्यूंकि हम पिछले कुछ समय से केवल कोरोना के नकारात्मक पक्ष को ही देख और सुन रहे हैं। आज मैं आपका ध्यान इस तरफ आकर्षित करना चाह रहा हूँ कि इस बीमारी में ज़्यादातर लोग ठीक हो रहे हैं। डॉ गुलेरिया कहते हैं कि 95 प्रतिशत से अधिक लोग कोरोना को हराकर घर लौट रहे हैं और 5 प्रतिशत में से ऐसे भी लोग हैं जो सफाई और परहेज़ के बिना पर ठीक हो रहे हैं। इसलिए नकारात्मकता के बजाय आज समय सकारात्मक विचारों में जीने का है। 

 

आप में से अधिकांश लोग सोशल मीडिया पर वीडिओज़ को एक जगह से दूसरे जगह केवल बांटने का काम कर रहे हैं, उनमें अधिकांश वीडियो केवल नकारात्मक होते हैं और कुछ लोग अनावश्यक रूप में ऐसे लोगों की लिस्ट बना रहे हैं जिनकी मृत्यु इस बीमारी से हो चुकी है हालांकि ऐसे लोग उनको बिल्कुल भी नही जानते। इसमें कोई संदेह नहीं कि सोशल मीडिया समाचारों का एक बहुत बड़ा माध्यम है, लेकिन यहां पर बहुत सी ऐसी भ्रांतियां भी हैं जिससे समाज गुमराह और विचलित हो रहा है। जब तक ऐसी किसी वीडियो का वेरिफिकेशन न हो जाये तब तक हमें उसको कहीं भी आगे नहीं बढ़ाना चाहिए और न ही इसकी कोई ज़रूरत है। मेरे विचार से ऐसे संकट के समय में सोशल मीडिया का सदुपयोग होना चाहिए। आज हमारे समाज को इस बात की आवश्यकता भी है कि इस प्लेटफॉर्म से सकारात्मक खबरों को आगे पहुंचाया जाए। ऐसा भी देखने को मिल रहा है कि लोग गलत खबरों से न केवल विचलित हो रहे हैं बल्कि मानसिक रूप से कमज़ोर पड़ रहे हैं। समय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए मानसिक रूप से मजबूत रहना सबसे ज़रूरी है। एक बहुत गंभीर बात की तरफ मैं आपको ले चलना चाहता हूँ कि अक्सर परिस्थितियां ही हमें समाज में रहने का गुण सिखाती हैं, विश्व में हमेशा से ऐसा रहा है कि लगभग एक शताब्दी के पश्चात कोई न कोई ऐसी घातक महामारी, बीमारी या आपदा ज़रूर आती है जिससे पूरा संसार डगमगा जाता है और जो लोग आस्तिक हैं वो कहते भी हैं कि जब इस पृथ्वी पर धर्म के नाम पर अत्याचार, भेद-भाव, बंटवारा, तरह-तरह के पाप, तरह-तरह के अत्यचार हो रहे होते हैं, जहां मानवता को गहरी चोट पहुंच रही होती है, इंसानियत शर्मशार हो रही होती है और पृथ्वी पर अन्याय हो रहा होता है तो ऐसी स्थिति में कोई बड़ी आपदा इस संसार में आती है और एक बड़ी त्रासदी को जन्म देकर चली जाती है। भयावह मंज़र होता है, बुरे दौर का इतिहास बनता है और इंसानियत शर्मसार होती है। मेरा इशारा यह कदापि नहीं है कि किसी के मन में कोई भय या नकारात्मकता का भाव पैदा किया जाए।

परिस्थितियां ही हमें जीना सिखाती हैं, परिस्थितियां ही हमें बुरे समय और हालात से लड़ना सिखाती हैं। मेरा यह विचार है कि ऐसे समय में जब पूरा देश और विश्व एक बड़े संकट से जूझ रहा है। ऐसी स्थिति में हमें इस बात की तरफ सोचना चाहिए और गंभीर चिंतन भी करना चाहिए कि आखिर वे कौन सी बेहतर और मानवीय स्थितियां हैं जिससे हमारा समाज सही और सकारात्मक रास्ते पर चल सके।

मनुष्य को अपनी जिंदगी में प्रत्येक स्तर पर सकारात्मक होना चाहिए और सकारात्मकता के लिए खालीपन का अभाव होना चाहिए। आज जिस तरह से हमारे समक्ष लॉकडाउन जैसी गंभीर व्यवस्था कोरोना से बचने के लिए सरकार और समाज की तरफ से रखी गई है, उससे भी हमें लड़ना और सीखना चाहिए। ऐसे समय में जब हम अपने परिवार के साथ हैं और नहीं भी हैं, तो यह हमारा प्रयास होना चाहिए कि किसी भी छड़ अकेलेपन से दूर रहें। ऐसे में हम वो हर चीज करें जो हमें अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा प्यारी और रोचक हो।सकारात्मकता की तरफ जाने के लिए अच्छे खाने, अच्छी फिल्में, अच्छी सोच और अपने उन दोस्तों और रिश्तेदारों से बात करना चाहिए, जो निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते रहे हैं और हमारी जिंदगी को प्रोत्साहित करते रहे हैं। यह समय कोरोना से जंग जीतने का है न कि कोरोना वायरस से हारने का। मैं ऐसे बहुत अच्छे डॉ और कोरोना विशेषज्ञ को सुन रहा हूँ जिससे मुझे इस बात का ज्ञान हो रहा है कि इस वायरस से समाज का एक बहुत बड़ा भाग लगभग 95% अस्पतालों से और कुछ अपने घर के इलाज से भी ठीक हो रहा है। यह स्थिति और समय घबराने का नहीं है बल्कि हमें इस समाज में 95% से अधिक ठीक होने वाले मरीजों की तरफ हमारा ध्यान जाना चाहिए जिससे हमें बल मिलेगा और हमारे अंदर सकारात्मकता का संचार होगा और हमारे मनोवैज्ञानिक स्तर में आत्मविश्वास की बढ़ोत्तरी भी होगी। सरकार निरंतर जनता के लिए काम कर रही है लोग एक दूसरे की मदद कर रहे हैं। यही वह देश है जहां जब-जब विकट परिस्थितियां आती रही हैं तब-तब लोग एकजुट होकर लड़ने का प्रयास करते रहे हैं और ऐसे दुश्मन को परास्त करने का काम भारत के लोग और यहां की साझा मानवीय संस्कृति ने किया है। यह समय है कोरोना जैसी बीमारी को हराने का, विचारों से सकारात्मक रहने का, अपने उन दोस्तों के साथ विचार विमर्श करने का जिससे हमारी उर्जा सकारात्मक हो और हम अपने आप को जितना भी व्यस्त रख सकें सकारात्मकता के इर्द-गिर्द, वही बेहतर होगा। यह समय ऐसा है जो बहुत जल्दी बीत जाएगा और हम लोग फिर मिलेंगे एक नई सुबह के साथ। आप सभी जानते हैं कि हमेशा रात के बाद दिन होता है और दिन में उजाला होता है और उजाले में रोशनी होती है और रोशनी में जीत होती है। हमें आज उन लोगों का दिल से शुक्रिया अदा करना चाहिए जो लोग हमारे समाज में कोरोना वारियर्स के रूप में काम कर रहे हैं। सिर्फ डॉक्टर ही नहीं, सिर्फ पैरामेडिकल स्टाफ ही नहीं बल्कि हमारे समाज का वह बड़ा तबका जो दिन रात एक दूसरे की मदद कर रहा है।

उनमें से आप भी हैं जो दिन रात ऑक्सीजन पहुंचाने का काम कर कर रहे हैं। सराहनीय योगदान मीडिया का है। मीडिया के माध्यम से लोग व्यक्तिगत स्तर पर और कुछ लोग टेलीफोन के माध्यम से, ट्विटर के माध्यम से और पूरी सोशल मीडिया के माध्यम से मदद कर रहे हैं ।

भारत अपनी साझा संस्कृति के लिए जाना जाता है और हमारी संस्कृति एकता के लिए जानी जाती है। अब वह समय आ गया है जब हम एक नई सुबह में कदम रखेंगे और कदम रखते ही दिन होगा और दिन के उजाले में हमारी विजय होगी और कोरोना पर हम जीत हासिल करेंगे। सकारात्मक रहिए और एक दूसरे की मदद करते रहिए। नई सुबह नई किरणों के साथ होगी। फिर मिलेंगे, फिर बात करेंगे, विचार विमर्श करेंगे, अच्छे और स्वस्थ भारत का निर्माण करेंगे। यही मेरी कामना है और मानवीय इच्छा भी।

(व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। ये जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)

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