न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी तथा न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने कहा, छात्र अक्तूबर, 2016 में लापता हुआ था। करीब चार महीने हो गए लेकिन किसी भी सुराग का पता नहीं चला है। अब हमने पॉलीग्राफ परीक्षण के लिए कहा है क्योंकि अन्य तरकीबों का कोई परिणाम नहीं निकला है।
पीठ मामले में संदिग्ध नौ छात्रों में से एक छात्र के आवेदन पर सुनवाई कर रही थी। आवेदन में उच्च न्यायालय के 14 दिसंबर और 22 दिसंबर 2016 के आदेशों को वापस लेने का आग्रह किया गया है।
आवेदन में कहा गया है कि इन दो आदेशों के जरिए अदालत जांच के तरीके को विनियमित कर रही है और इसलिए जांच पूर्वाग्रह युक्त हो गई तथा संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
छात्र ने दिल्ली पुलिस की एक नोटिस को भी चुनौती दी है जिसमें उसे लाई-डिटेक्टर टेस्ट के लिए अपनी सहमति देने के वास्ते आज अदालत में पेश होने को कहा गया है।
दिल्ली सरकार के स्थाई अधिवक्ता राहुल मेहरा ने आवेदन का विरोध किया और कहा कि इसी छात्र ने पूर्व में भी अन्य वकील के जरिए यही आवेदन दायर किया था और उच्च न्यायालय ने इसे यह कहकर निपटा दिया था कि छात्र को आगे आना चाहिए।
मेहरा ने कहा कि वर्तमान आवेदन अदालत की प्रक्रिया का घोर उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि पुलिस को उन क्षेत्रों में जाने को विवश किया जा रहा है जहां यह अब तक ऐसा नहीं कर पाई थी। उन्होंने कहा कि छात्रों को छात्रों की तरह व्यवहार करना चाहिए और वे कानून से ऊपर नहीं हैं।
छात्र के वकील ने कहा कि वह पुलिस के नोटिस में इस्तेमाल की गई भाषा से क्षुब्ध हैं जो आवश्यकता से अधिक प्रतिक्रिया प्रतीत होती है।
पीठ ने अधिवक्ता से कहा कि यदि छात्र लाई-डिटेक्टर परीक्षण नहीं चाहता तो वह इससे इनकार कर सकता है। लेकिन मौजूदा मामले में छात्रों को स्वयं आगे आकर और जांच में शामिल होकर पुलिस की मदद करनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि पुलिस नजीब के लापता होने के महीनों बाद भी छात्रों को थाने लेकर नहीं गई, जो कि आम तौर पर होता नहीं है। इस तरह क्या हम उस पर आवश्यकता से अधिक या आवश्यकता से कम प्रतिक्रिया का आरोप लगा सकते हैं।
इसने पूछा, यदि लापता छात्र के कमरे में रहने वाले छात्र के लाई डिटेक्टर परीक्षण के लिए कहा जा सकता है तो उन छात्रों से क्यों नहीं जिनसे उसका (नजीब का) झगड़ा हुआ था।