शिक्षाविदो ने देश के प्रवासी मजदूरों की मौजूदा हालत पर चिंता व्यक्त की है तथा इसे अमानवीय करार दिया है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से मांग की है कि सरकार उन्हें घर पहुंचाने के लिए मानवीय तरीके से परिवहन व्यवस्था मुहैया कराए। साथ ही इसे आपातकाल मानते हुए सेना की मदद लेने का भी सुझाव दिया है।
शिक्षाविदो के इस समूह में डॉ. राजेश टंडन, डॉ शीला पटेल, डॉ जगदानंद, बिनोय आचार्य, रवि श्रीवास्तव, अमीरुल्लाह खान, डॉ योगेश कुमार और प्रो अमिताभ कुंडू शामिल हैं। शिक्षाविदो ने एक बयान में कहा है कि प्रवासी मजदूर अपने गांव या कस्बों तक पहुंचने के लिए परिवहन के किसी भी साधन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, कुछ लोग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने या साइकिल चलाने का विकल्प चुनकर अपने परिवार और अपने परिवार के सदस्यों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। शहरों में फंसे लाखों प्रवासी मजदूरों की नाराजगी ने एक ऐसी विस्फोटक स्थिति पैदा कर दी है जो देश में एक गंभीर कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा कर सकती है।
60 से 80 लाख मजदूर अभी भी फंसे हैं
उन्होंने कहा कि उन्हें मुंबई, पुणे, सूरत, अहमदाबाद, दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई, लखनऊ, इंदौर और कई अन्य शहरों से रिपोर्ट प्राप्त हो रही है, जिसने लॉकडाउन के 42 दिनों ने प्रवासी श्रमिकों को घर लौटने के लिए चिंतित कर दिया है। पिछली जनगणना, एनएसएस के डेटा और जमीनी स्तर की जानकारी के आधार पर अनुमान है कि उनमें से करीब 60 से 80 लाख मजदूर अभी भी फंसे हुए हैं और घर जाने के लिए बेताब हैं। उनमें से कई भूखे और बिना आश्रय के हैं। शहरों में अस्थायी और जबरन आश्रय घरों में उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा हैI वे पैसा खर्च कर रहे हैं, जो भी पैसे उनके पास बचे हैं, उससे वे मोबाइल चार्ज करा रहे हैं। कई ने सड़क मार्ग से बस या टेम्पो या ट्रक से यात्रा करने की कोशिश की है, लेकिन अन्तर्राजीय सीमाओं को पार करना एक बुरे स्वप्न जैसा है। राज्यों में सुरक्षा एजेंसियों के बीच व्यापक भ्रम है। उन्हें पुलिस द्वारा मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने के लिए कहा जाता है, जिसके लिए उन्हें अनैतिक क्लीनिकों द्वारा लूटा जा रहा है।
इच्छा के खिलाफ बंधक बनाकर नही रखा जा सकता
शिक्षाविदों का कहना है कि मजदूरों को राज्यों के भीतर रखने की सलाह दी गई है लेकिन उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें इस तरह बंधक बनाकर रखने का कोई तर्क नहीं हो सकता है। डर, अनिश्चितता, संकट और स्थानीय अधिकारियों और पुलिस द्वारा अमानवीय व्यवहार के परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति पैदा हुई है जहां कभी भी व्यापक अशांति और हिंसा हो सकती है उन्हें केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह रेल विभाग से आग्रह करें कि मजदूरों के उत्पीड़न और भगदड़ के बिना एक क्रमबद्ध तरीके से उन्हें पहुंचाएं। गर्भवती महिलाओं, छोटे बच्चों आदि का विशेष ध्यान रखते हुए उनके लिए परिवहन व्यवस्था को एक गरिमामय और मानवीय तरीके से आयोजित किया जाना चाहिए। राज्य सरकारें स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का पालन करते हुए उन्हें स्वीकार करने की जिम्मेदारी ले सकती हैं। सरकार इस मामले में सेना से मदद लेने पर विचार कर सकती हैI उन्होंने इस मामले को आपातकाल मानते हुए तत्काल फैसला लेने की मांग की है।