दिल्ली शराब घोटाला मामले में पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को फिलहाल कोई राहत नहीं मिलने वाली। दरअसल, शीर्ष न्यायालय ने इस मामले में सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई को एक महीने के लिए टाल दिया है। इसका अर्थ है कि मनीष सिसोदिया को अभी अंतरिम जमानत नहीं मिलेगी।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने शराब नीति अनियमितता मामले में आप नेता की जमानत याचिका पर सुनवाई चार सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी है। अदालत ने सिसोदिया की जमानत याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय को और समय दिया।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने सिसोदिया की पत्नी के मेडिकल रिकॉर्ड को देखने के बाद कहा कि वह "काफी स्थिर" हैं। पीठ ने आहे कहा कि वह मामलों में नियमित जमानत याचिकाओं के साथ-साथ पूर्व उपमुख्यमंत्री की अंतरिम जमानत याचिका पर भी विचार करेगी।
गौरतलब है कि सिसोदिया ने अपनी पत्नी की खराब सेहत का हवाला देकर अंतरिम जमानत की मांग की है। शीर्ष अदालत ने 14 जुलाई को मामलों में सिसोदिया की अंतरिम जमानत याचिका पर सीबीआई और ईडी से जवाब मांगा था। उपमुख्यमंत्री के रूप में उनके द्वारा संभाले गए कई कार्यों में से, सिसौदिया के पास उत्पाद शुल्क विभाग भी था।
मनीष सिसोदिया को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 26 फरवरी को "घोटाले" में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार कर लिया था। तभी से वह हिरासत में हैं। इसके बाद ईडी ने तिहाड़ जेल में उनसे पूछताछ के बाद 9 मार्च को सीबीआई की एफआईआर से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
सिसोदिया ने 28 फरवरी को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। उच्च न्यायालय ने 30 मई को सीबीआई मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उप मुख्यमंत्री और उत्पाद शुल्क मंत्री रहने के कारण वह एक "हाई-प्रोफाइल" व्यक्ति हैं, जिनमें गवाहों को प्रभावित करने जैसी क्षमता है।
इसके बाद 3 जुलाई को, उच्च न्यायालय ने सरकार की उत्पाद शुल्क नीति में कथित अनियमितताओं से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था, यह मानते हुए कि उनके खिलाफ आरोप "बहुत गंभीर प्रकृति" के हैं। 30 मई के अपने आदेश में, उच्च न्यायालय ने कहा था कि चूंकि कथित घोटाला होने के समय सिसोदिया "मामलों के शीर्ष पर" थे, इसलिए वह यह नहीं कह सकते कि उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
दो संघीय जांच एजेंसियों के अनुसार, उत्पाद शुल्क नीति को संशोधित करते समय अनियमितताएं की गईं और लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। बता दें कि दिल्ली सरकार ने 17 नवंबर, 2021 को नीति लागू की, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सितंबर 2022 के अंत में इसे रद्द कर दिया।