मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन कृषि कानूनों पर रोक लगाए जाने से किसान संगठन संतुष्ट नहीं हैं। दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 48 दिन से डटे किसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का कृषि कानूनों पर फिलहाल रोक का फैसला आने के बाद भी आंदोलन जारी रखने का अल्टीमेटम दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आंदोलन का स्थल बदला जा सकता है पर दिल्ली और इसके आस पास से किसान हटने वाले नहीं हैं। किसानों का कहना है कि जब तक तीनों कानून रद्द नहीं होंगे तब तक आंदोलन जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की चार सदस्यीय कमेटी को लेकर भी किसानों में निराशा है क्योंकि इस कमेटी में तीन कृषि विशेषज्ञों के अलावा भारतीय किसान यूनियन के जिस किसान नेता भूपेंद्र सिंह मान को शामिल किया गया है, वह आंदोलनरत 40 किसान संगठनों में शामिल नहीं हैं। हांलाकि कमेटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि यह कोई राजनीतिक कमेटी नहीं है। यह कमेटी कानूनों की समीक्षा के साथ किसानों से परामर्श के बाद कोर्ट को रिपोर्ट करेगी। इस कमेटी से किसान संगठन अपनी बात रख सकते हैं। कमेटी को किसी तरह का फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं हैं।
बीकेयू(उगरांह) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने कहा कि आंदोलरत 40 जत्थेबंदियां और उनके साथ जुड़े देशभर के 500 से अधिक किसान संगठनों में से एक भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी का हिस्सा नहीं है। जिस कथित किसान नेता को कमेटी में शामिल किया गया है वह कहीं भी सक्रिय नहीं है। क्रांतिकारी किसान यूनियन(केकेयू) के अध्यक्ष डॉक्टर दर्शन पाल ने कहा, 'हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं और इस बात का स्वागत करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों को लागू करने पर रोक लगाने की बात कही है लेकिन हमने पहले ही कोर्ट द्वारा सुझाई गई कमेटी का हिस्सा न बनने का फैसला कर लिया था। उन्होंने कहा कि आठ दौर की बातचीत के दौरान सरकार का जो रवैया रहा है, उसे देखते हुए हमने ये फैसला पहले की कर लिया था कि हम अब किसी कमेटी की कार्यवाही में भी हिस्सा नहीं लेंगे।' हालांकि किसानों से बातचीत केे लिए सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यीय कमेटी का मंगलवार को गठन किया है पर सुप्रीम कोर्ट में किसानों के वकील दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण, कॉलिन गान्साल्वेज़ और एचएस फूलका से मुलाकात के बाद किसान नेताओं ने यह फैसला लिया है।
आंदोलन के आगामी स्वरूप के बारे में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी कहते हैं, 'कानूनों पर अगर अस्थायी रोक है इसलिए आंदोलन जारी रहेगा। कानूनों के पूरी तरह रद्द होने से पहले हम लोग वापस लौटने को तैयार नहीं है। अस्थाई रोक और चार सदस्यों की कमेटी के बहाने हम आंदोलन वापस नहीं लेने जा रहे। हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन कानूनों के रद्द होने से पहले आंदोलन में कोई बदलाव नहीं आएगा। चढूनी कहते हैं, 'हम लोग अपनी मर्जी से बॉर्डर पर नहीं बैठे थे। हम तो रामलीला मैदान ही आना चाहते थे लेकिन सरकार ने हमें दिल्ली में घुसने नहीं दिया। इसलिए अब हम भी यहीं बैठे रहेंगे। आंदोलन अपने तरीके से जारी रहेगा और जब तक कानून वापसी नहीं होती तब तक हमारी घर वापसी भी नहीं होगी।'
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी आंदोलन जारी रखने की बात किसान नेता हरपाल सिंह लक्खोवाल ने भी कही है, 'सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला हमारा नहीं था। हम लोग तो वहां पार्टी तक नहीं हैं। ये हमारी सरकार से सीधी लड़ाई है। हम जो भी मांग रहे हैं सीधे उस सरकार से मांग रहे हैं जो ये कानून लेकर आई है। 'सरकार से होने वाली सभी बैठकों में शामिल रहे किसान नेता रूलदु सिंह मानसा इस बारे में कहते हैं, 'सुप्रीम कोर्ट को अगर किसानों से हमदर्दी है तो उन्हें इन कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने के आदेश करने चाहिए।' आंदोलन के स्वरूप को लेकर भी किसान नेता किसी समझौते को तैयार नहीं हैं। कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह भी बात हुई थी कि क्या किसान दिल्ली के बॉर्डर से उठकर रामलीला मैदान या वोट क्लब आने को तैयार हो सकते हैं?