पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राज्य के निवासियों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले 2020 के हरियाणा सरकार के कानून को रद्द कर दिया। फैसला जस्टिस जीएस संधावालिया और हरप्रीत कौर जीवन ने सुनाया। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। यह फैसला ऐसे समय आया है जब हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने में एक साल से भी कम समय बचा है। इस फैसले को मनोहर लाल खट्टर की सरकार के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अक्षय भान ने कहा कि पीठ ने पूरे अधिनियम को रद्द कर दिया। याचिकाकर्ताओं के वकीलों में से एक, भान ने कहा कि यह तर्क दिया गया था कि हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार अधिनियम, 2020 संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करता है।
अदालत ने राज्य के उम्मीदवारों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले अधिनियम के कार्यान्वयन के खिलाफ कई याचिकाएं स्वीकार की थीं। इसमें अधिकतम सकल मासिक वेतन या 30,000 रुपये तक की मजदूरी देने वाली नौकरियां शामिल थीं। इसके लिए अधिवास प्रमाण पत्र जरूरी किया गया था। अधिवास की आवश्यकता को 15 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया था.