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हेमंत कैबिनेट का फैसलाः केंद्रीय एजेंसी के समन पर सीधे हाजिर नहीं होंगे अधिकारी, ईडी के हस्तक्षेप पर लगाम की कवायद

रांची। सीबीआई की प्रदेश में सीधी एंट्री पर रोक के बाद ईडी की गतिविधियों से हलकान हेमंत सरकार ने ईडी...
हेमंत कैबिनेट का फैसलाः केंद्रीय एजेंसी के समन पर सीधे हाजिर नहीं होंगे अधिकारी, ईडी के हस्तक्षेप पर लगाम की कवायद

रांची। सीबीआई की प्रदेश में सीधी एंट्री पर रोक के बाद ईडी की गतिविधियों से हलकान हेमंत सरकार ने ईडी सहित केंद्रीय एजेंसियों की गतिविधियों पर ब्रेक लगाने का फैसला किया है। अब ईडी या किसी अन्य केंद्रीय एजेंसी के समन पर अधिकारी सीधे हाजिर नहीं होंगे न ही उसे दस्तावेज सौंपेंगे। कैबिनेट डिपार्टमेंट की मंजूरी के बाद ही राज्य के अधिकारी समन पर कोई कदम उठाएंगे। मंगलवार को राज्य कैबिनेट की बैठक में इसे मंजूरी दे दी गई।

दरअसल माइनिंग घोटाला, जमीन घोटाला और मनी लांड्रिंग के मामलों को लेकर ईडी के समन ने हेमंत सरकार की नाक में दम कर रखा है। अफसरों से पूछताछ और हासिल सूचनाओं की आंच खुद हेमंत सोरेन तक जा पहुंची है। खनन घोटाला में हेमंत सोरेन से लंबी पूछताछ के बाद रांची जमीन घोटाला मामले में सात बार ईडी हेमंत सोरेन को समन भेज चुका है। इसपर राजनीतिक बवाल जगजाहिर है। हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम हो, कांग्रेस या आरजेडी, जेडीयू, वामपंथी या भाजपा विरोधी पार्टियां केंद्रीय एजेंसियों को विपक्ष के खिलाफ इस्तेमाल का टूल बताकर केंद्र पर हमला करती रही हैं। अब समन पर ब्रेक के ताजा फैसले से केंद्र से  टकराव का नया मोर्चा खुल सकता है। हेमंत जब सत्ता में आए थे कुछ गैर भाजपा सरकारों की तरह प्रदेश में सीबीआई की सीधी एंट्री पर रोक लगा दी।

कैबिनेट के निर्णय के अनुसार अब केंद्रीय एजेंसियों के समन पर पूछताछ के लिए हाजिर होने से पहले अधिकारियों को संबंधित विभाग के माध्यम से कैबिनेट डिपार्टमेंट को सूचित करना होगा। फिर कैबिनेट तय करेगा कि हाजिर होना है या नहीं।

इस आशय के पत्र जिसे कैबिनेट की स्वीकृति मिली है में सरकार ने कहा कि हमारे संज्ञान में कई ऐसे मामले आए जब राज्य के बाहर की जांच एजेंसियों ने राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकार को सूचित किए बिना अधिकारियों को समन जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया। कई बार एजेंसियां सरकारी दस्तावेज या अभिलेखों की मांग भी करती है। पदाधिकारी अपने वरीय अधिकारी या विभागीय प्रधान (सचिव, निदेशक) को सूचित किए बिना ही सरकारी दस्तावेज या अभिलेख एजेंसी को सौंप देते हैं जो नियमानुकूल नहीं है। इससे संबंधित विभाग में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। सरकारी काम बाधित होता है। इसकी संभावना भी रहतीहै कि जो सूचना उपलब्ध कराई गई है वह अपूर्ण या असंगत हो। यह तालमेल को भी प्रभावित करता है। ऐसे में एक निश्चित प्रक्रिया की जरूरत है।

राज्य में भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित कार्रवाई के लिए भ्रष्टाचार निरोध ब्यूरो है। जिसका प्रशासनिक नियंत्रक मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग है। अब विधिसम्मत कार्रवाई में सहयोग के लिए मंत्रिमंडल सचिवालय और निगरानी विभाग को राज्य सरकार नोडल विभाग नामित किया जाना चाहिए। अब किसी पदाधिकारी को समन होता है तो वे विभागीय प्रधान को सूचित करेंगे। विभागीय प्रधान नोडल विभाग को इसकी जानकारी देंगे। मंत्रिमंडल सचिवालय और निगरानी विभाग विधिक परामर्श करेंगे। इसके बाद ही कोई फैसला किया जाएगा। इसके बाद एजेंसी को जांच में सहयोग करेंगे।

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