सर्जिकल स्ट्राइक में अहम भूमिका निभाने वाले जनरल (रिटायर्ड) डीएस हुड्डा ने कहा है कि मुझे लगता है कि इसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया, जिसकी जरूरत नहीं थी। सैन्य अभियान जरूरी था और हमने ऐसा किया। लेकिन इसे राजनीतिक रंग देना ठीक नहीं है। बेहतर होता यदि ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक की जानकारी गोपनीय रखी जाती।
सैन्य साहित्य महोत्सव 2018 के पहले दिन शुक्रवार को 'सीमा पार अभियानों और सर्जिकल स्ट्राइक की भूमिका' विषय पर चर्चा में हुड्डा ने कहा कि यह सेना की बड़ी जीत थी। लोगों तक संदेश पहुंचना ठीक है, लेकिन इसका बहुत ज्यादा प्रचार ठीक नहीं है। अब इसका कितना राजनीतिकरण करना चाहिए था, जो सही हो या फिर गलत इसका जवाब नेताओं से पूछा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक से पहले सभी तरह की तैयारी की गई थी। टीम को स्पेशल ट्रेंनिग दी गई थी। अपने आप सर्विलांस जैसी उतनी एडवांस सुविधा नहीं थी। इन सब बातों को देखने के बाद ही सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला लिया गया।
'नियंत्रण रेखा पर सतर्क और सक्रिय रहना जरूरी है'
उन्होंने कहा कि नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से होने वाली उकसावे की कार्रवाई और निरंतर संघर्ष विराम उल्लंघन को देखते हुए सेना का सतर्क और सक्रिय रहना जरूरी है। जनरल हुड्डा ने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक करने का यह मतलब नहीं है कि आतंकवाद खत्म हो जाएगा। इसका मकसद पाकिस्तान को करारा जवाब देना था। सर्जिकल स्ट्राइक से यह समझना कि अब आतंक खत्म हो गया या पाकिस्तान बाज आ जाएगा, गलत है।
हुड्डा के शब्दों का सम्मान करता हूः सेनाध्यक्ष
वही, हुड्डा के बयान पर सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत बयान है और इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा, 'हड्डा इस ऑपरेशन को अंजाम देने वाले मुख्य व्यक्तियों में शामिल रहे हैं और मैं उनके शब्दों का सम्मान करता हूं।'
दो साल पहले उड़ी में की गई थी सर्जिकल स्ट्राइक
कश्मीर के उड़ी में दो साल पहले सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने नियंत्रण रेखा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक की थी और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकियों के कई लॉन्च पैड्स ध्वस्त कर दिए थे। सर्जिकल स्ट्राइक को देश भर में खूब प्रचारित-प्रसारित किया गया। केंद्र सरकार पर सेना की इस सफलता का श्रेय लेने की कोशिश का आरोप भी लगा।