हालांकि तीन न्यायाधीशों यूयू ललित, एके गोयल और डीवाई चंद्रचूड़ का अल्पमत यह था कि उसका धर्म का अभिप्राय सिर्फ उम्मीदवार के धर्म से है। न्यायाधीशों के बीच बहुमत यह था कि ऐसे मुद्दों को देखते समय धर्मनिरपेक्षता का ख्याल रखा जाना चाहिए। बहुमत में शामिल चार न्यायाधीशों में एमबी लोकुर, एसए बोबडे और एलएन राव शामिल थे।
धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर वोट मांगना या मतदाताओं से मतदान नहीं करने के लिए कहना भ्रष्ट तरीका है या नहीं, इससे संबंधित चुनावी कानून के प्रावधान के दायरे पर फैसला शीर्ष न्यायालय ने 27 अक्टूबर को सुरक्षित रख लिया था। पहले के फैसले में कहा गया था कि भ्रष्ट तरीके से संबंधित मामलों को देखने वाली जनप्रतिनिधि कानून की धारा 123 (3) में इस्तेमाल शब्द उसका धर्म का अभिप्राय सिर्फ उम्मीदवारों के धर्म से है।
जनप्रतिनिधि कानून की धारा 123 (3) कहती है कि किसी उम्मीदवार या उसके एजेंट द्वारा या उम्मीदवार की सहमति से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या उसके चुनावी एजेंट द्वारा किसी व्यक्ति के धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर उसे वोट करने या वोट नहीं करने के लिए अपील करना या किसी उम्मीदवार के निर्वाचन की संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए या प्रभावित करने के लिए धार्मिक प्रतीकों या राष्ट्रीय प्रतीकों का इस्तेमाल करना भ्रष्ट तरीका माना जाएगा।
पीठ ने कहा था कि धर्म को मानने और प्रसारित करने की स्वतंत्राता है लेकिन पीठ ने यह पूछा था कि क्या इसका (धर्म का) इस्तेमाल चुनावी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है? (एजेंसी)