Advertisement

बच्चों में खसरा का बढ़ता खतरा

पिछले कुछ साल में महामारी ने हम सब के जीवन को बदल दिया है। हमारी दुनिया एक विशाल मुर्दा घरों में तब्दील...
बच्चों में खसरा का बढ़ता खतरा

पिछले कुछ साल में महामारी ने हम सब के जीवन को बदल दिया है। हमारी दुनिया एक विशाल मुर्दा घरों में तब्दील हो गई थी । शायद ये नया साल हमारे जीवन को भय, दुख, अमानवीयता और बीमारी के निष्ठुर हमले से बचा ले। हमें उन अंधेरों से निकल लें।

 

कोराना से हम सब ने एक हद तक निपट लिया है। पर हमारे बच्चे खसरा जैसे बीमारी की चपेट में आ गए हैं। दुनिया में फिर से खसरा जैसी बीमारी ने धावा बोला है। आज फिर दुनिया के बच्चों की जिन्दगी खतरे में है।

 

कोविड 19 के कारण दुनिया में जो हालत हुए उससे टीकाकरण अभियान पर गहरा असर पड़ा। दुनिया की सरकारों ने बच्चों के भविष्य को नजरंदाज किया। आंकड़े कहते हैं दुनिया भर में खसरा बीमारी का खतरा बढ़ गया है।

 

डब्ल्यूएचओ और सीडीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 में दुनिया भर में लगभग 90 लाख खसरे के संक्रमण के मामले सामने आए और इस दौरान 128,000 मौतें हुईं। डब्लूएचओ और सीडीसी ने कहा कि 20 से अधिक देशों में चल रहे प्रकोप के अलावा, टीकाकरण में लगातार गिरावट, निगरानी की कमी और कोविड-19 के कारण टीकारण में देरी ने दुनिया के हर क्षेत्र में खसरा बीमारी का फैलाव बढ़ गया।

 

क्या इन मौत की जिम्मेदारी किसी की बनती है? ये अभियान क्यों रुका क्या इसका आंकलन सरकार को करना चाहिए? क्या बच्चों के लिए इस जरूरी कदम को जारी रखना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए थी ? अगर सरकार गंभीर रहती तो दुनिया के 4 करोड़ बच्चे खसरे के टीके से वंचित नहीं होते। आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि टीकाकरण के मामले में कितनी चूक हुई।

 

डब्लूएचओ और सीडीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में दुनियाभर में लगभग 4 करोड़ बच्चे खसरे के टीके की खुराक नहीं ले सके। 2 करोड 50 लाख बच्चों ने अपनी पहली खुराक ही नहीं ली, जबकि 1 करोड़ 47 लाख बच्चों ने अपनी दूसरी खुराक मिस कर दी। इसका परिणाम ये हुआ है कि 22 देशों ने बड़े और भयंकर प्रकोप का सामना किया।

 

भारत जैसे देश में इस बीमारी का फिर लौटना हमारे बच्चों को गहरे खाई में धकेलना है। जो देश भूख, कुपोषण, गरीबी और अशिक्षा से जूझ रहा हो उस देश के बच्चों का स्वास्थ्य किसकी चिंता होगी? 

स्वास्थ्य मामलों के जानकार डॉक्टर ए.के गौड़ बताते हैं कि खसरा ज्यादातर सीधे संपर्क या हवा से फैलता है। खसरा होने पर बुखार, मांसपेशियों में दर्द और चेहरे और ऊपरी गर्दन पर त्वचा पर दाने जैसे लक्षण होते हैं। अधिकांश खसरे से संबंधित मौतें मस्तिष्क की सूजन और निर्जलीकरण सहित जटिलताओं के कारण होती हैं।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों और 30 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में गंभीर जटिलताएं सबसे गंभीर हैं। खसरे से होने वाली 95% से अधिक मौतें विकासशील देशों में होती हैं, इनमें ज्यादातर अफ्रीका और एशिया प्रमुख हैं। पहले , खसरे का प्रकोप हर दो से तीन साल में होता था और दुनिया भर में हर साल 26 लाख लोगों की मौत होती थी।

 

हाल में ही यूनिसेफ ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। यूनिसेफ की चिंता में आम लोगों का टीकाकरण पर घटता विश्वास है। उनका मानना है टीका के प्रति लोगों में फिर से विश्वास लाना होगा। उन्हें ये भरोसा देना होगा की इस बीमारी का एक मात्र इलाज टीका ही है। एमआर या एमएमआर का टीका लगाने का अभियान को और तेज करना होगा। ये इसलिए भी जरूरी है कि हम अपनी नस्लों को इस बीमारी से बचा सकें। आंकड़े बताते हैं कि देश के कई राज्यों में खसरा से बच्चों की मौत हुई है। महाराष्ट्र में खसरे के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हम जानते हैं कोरोना महामारी के दौरान दुनिया भर में कई चीजें रुक गई थीं। जिससे बच्चों की जिन्दगी खतरे में पड़ गई है। 

 

कई देश जो खसरा को खत्म करने के करीब थे अब वहां इसका बड़ा प्रकोप देखा जा रहा है. 2016 के मुकाबले 2017 में खसरा का केस दुनिया के लगभग हर क्षेत्र में 30% बढ़े और 2022 आते आते इसमें और इजाफा हो गया। तो फिर इससे मुकाबला का और क्या रास्ता है। डॉक्टर कहते हैं टीकाकरण ही वो रास्ता है जिसके जरिए हम अपने बच्चों को बचा सकते हैं।यदि टीका लगाया गया होता, तो बीमारी को आबादी में फैलने से रोका जा सकता है।

 

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार निजी हैं।)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad