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लॉकडाउन के बीच यूपी में उद्योगों का संकट, मजदूर-कर्मचारी की उपलब्धता बड़ी समस्या

लॉकडाउन की वजह से उत्तर प्रदेश के अधिकतर उद्योगों का काम ठप हो चुका है। लेकिन सरकारी आदेश के बावजूद...
लॉकडाउन के बीच यूपी में उद्योगों का संकट, मजदूर-कर्मचारी की उपलब्धता बड़ी समस्या

लॉकडाउन की वजह से उत्तर प्रदेश के अधिकतर उद्योगों का काम ठप हो चुका है। लेकिन सरकारी आदेश के बावजूद दैनिक उपयोग के उत्पाद और दवाएं बनाने वाले छोटे-मझोले उद्योग कठिन चुनौतियों का मुकाबला कर रहे हैं। उनके सामने न केवल कामगारों की कमी है बल्कि उत्पादन के लिए जरूरी कच्चा माल मंगाने से लेकर तैयार माल को उपभोक्ताओं तक भेजने के लिए परिवहन की व्यवस्था एक की कड़ी चुनौती है। विभागीय तालमेल के अभाव में उद्योग मंत्रालय के सहयोग के बावजूद उत्पादन एक बड़ी समस्या बनी हुई है।

आईआईए के एमएसएमई स्टडी एंड रिसर्च कमेटी के अध्यक्ष रजत मेहरा कहते हैं, “लॉकडाउन की घोषणा के पहले से उद्योगों के सामने आने वाली दिक्कतों का आकलन नहीं किया गया। अगर उद्योगों के सामने पहले ही ये बातें साफ होती कि किन-किन उद्योगों को पूर्ण रूप से अपना काम बंद रखना पड़ेगा और किन उद्योगों को काम करना पड़ेगा तो इतनी बड़ी मुश्किल पेश नहीं आती।” अधिकतर उद्योगों में काम करने वाले लोग शहर छोड़ गांव जा चुके हैं। जो शहर में बचे हैं और फैक्टरियों या दफ्तरों में काम करने आना चाहते हैं उनके सामने व्यवस्थागत दिक्कतें हैं। आत्मविश्वास की कमी है। पुलिस प्रताड़ना के केस सामने आने के बाद लोग कहीं भी आने-जाने से डर रहे हैं।

रजत कहते हैं, “अगर जरूरी सामानों और दवाओं की सप्लाई को प्रभावित होने से बचाना है तो उससे जुड़े उद्योगों के लिए स्थिति साफ रहनी चाहिए थी। जनता कर्फ्यू की कामयाबी के बाद लॉकडाउन की घोषणा को लेकर अधिक सावधानी बरतने की जरूरत थी। क्या खुला रहेगा और क्या बंद इसको लेकर स्पष्टता नहीं थी और लोगों में इतनी हड़बड़ी थी कि स्थितियों को नियंत्रित करने में समय लग रहा है। उद्योग विभाग ने कामगारों के लिए पास तो जारी कर दिए हैं लेकिन कई दूसरी समस्याओं की वजह से काम करना आसान नहीं रह गया है।”

खाद्य और दवाओं के उद्योग को इस लॉकडाउन से अलग रखा गया है, लेकिन मजदूर और कर्मचारी की उपलब्धता बड़ी समस्या है। लोगों के लिए दफ्तर या फैक्टरी जाकर काम करना आसान नहीं रह गया है। पास होने के बावजूद इतनी परेशानी है कि लोग काम पर आना नहीं चाहते हैं। खुद एक केमिकल इंडस्ट्री के मालिक रजत मेहरा का कहना है कि तमाम आश्वासन के बाद हम आधे से भी कम लोगों के साथ काम कर रहे हैं। रजत केमिकल इंडस्ट्री के नाम से एक फैक्टरी चलाने वाले रजत मेहरा पोटैसियम साल्ट बनाते हैं। इसका इस्तेमाल हार्लिंक्स और ऐसी ही पौष्टिक उत्पाद बनाने वाली कंपनियां करती हैं।

फैक्टरियों में केवल मजदूरों की दिक्कत नहीं है। कच्चे माल की आवाजाही भी आज बड़ी समस्या बन गई है। ट्रांसपोर्टर के लिए एक से दूसरे राज्य में ट्रक और वाहन भेजना तो दूर की बात है एक शहर से दूसरे शहर में सामानों की आवाजाही आसान नहीं रह गई है। उद्योग महकमे की तमाम कोशिशों के बावजूद इस काम को सुचारु रूप से चलाने के लिए दूसरे महकमों के बीच उचित तालमेल नहीं है।

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