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सरहद पर बैठे दुश्मनों को ताकत दिखाने के बजाय हम आपस में लड़ रहे हैं: आरएसएस प्रमुख

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि देश की सीमाओं पर दुश्मनों को...
सरहद पर बैठे दुश्मनों को ताकत दिखाने के बजाय हम आपस में लड़ रहे हैं: आरएसएस प्रमुख

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि देश की सीमाओं पर दुश्मनों को अपनी ताकत दिखाने के बजाय हम आपस में लड़ रहे हैं।

संघ शिक्षा वर्ग (आरएसएस कैडरों के लिए अधिकारी प्रशिक्षण शिविर) के विदाई समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत के प्रत्येक नागरिक को देश की एकता और अखंडता को बढ़ाने के लिए प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैश्विक आर्थिक संकट और बाद में कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने सभी देशों के बीच अच्छा प्रदर्शन किया।

भागवत ने कहा कि हमारे समाज में धर्म और पंथ से जुड़े कई विवाद हैं। “हम सीमा पर बैठे दुश्मनों को अपनी ताकत नहीं दिखा रहे हैं, लेकिन हम आपस में लड़ रहे हैं। हम भूल रहे हैं कि हम एक देश हैं। “सभी को भारत की एकता और अखंडता (बढ़ाने) के लिए प्रयास करना चाहिए। और अगर कोई कमी है तो हम सभी को उन पर काम करना चाहिए।'

भागवत ने कहा, कुछ धर्म भारत के बाहर के थे और "हमारे उनके साथ युद्ध हुए थे।" लेकिन बाहर वाले तो चले गए। अब तो सब भीतर हैं। फिर भी यहां (बाहरी लोगों के) प्रभाव में लोग हैं और वे हमारे लोग हैं...यह समझना होगा। अगर उनकी सोच में कोई कमी है तो सुधार (उन्हें) हमारी जिम्मेदारी है।

भागवत ने कहा कि पूरी दुनिया में इस्लाम का आक्रमण हुआ, स्पेन से मंगोलिया तक छा गया। धीरे-धीरे वहां के लोग जागे, उन्होंने आक्रमणकारियों को परस्त किया। तो अपने कार्य क्षेत्र में इस्लाम सिकुड़ गया। सबने सब बदल दिया। अब विदेशी तो यहां से चले गए लेकिन इस्लाम की पूजा कहां सुरक्षित चलती है, यहीं सुरक्षित चलती है। कितने शतक हुए यह सह जीवन चल रहा है। इसको न पहचानते हुए आपस के भेदों को ही बरकरार रखने वाली नीति चलाना, ऐसा करेंगे तो कैसे होगा।

कुछ लोग इस धारणा का समर्थन करते हैं कि अतीत में भारत में कोई जातिगत भेदभाव नहीं था, भागवत ने कहा, यह स्वीकार करना होगा कि "हमारे देश में (जाति व्यवस्था के कारण) अन्याय हुआ है।" संघ प्रमुख ने कहा, 'हम अपने पूर्वजों का गौरव लेकर चलते हैं, लेकिन हमें कर्ज (उनकी गलतियों का) भी चुकाना है।'

मोहन भागवत ने कहा कि जैसे गर्मी में वर्षा कि बौछारे सुखद लगती है वैसे ही स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद इस प्रकार कि सुखद भावनाओं का अनुभव हम जैसे कर रहे है, वैसे चिंतित करने वाला दृश्य भी हमें परिस्थिति मे मिल रहा है। इसी समय देश में कितने जगह कितने प्रकार के कलह मचे है, भाषा, पंथ, संप्रदायों, मिलने वाली सहुलियतों के लिये विवाद और केवल विवाद ही नहीं बल्कि इसका इस हद तक बढ़ना कि हम आपस में ही हिंसा करने लगे।

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