लद्दाख की गलवन घाटी में पिछले 15 जून को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ हिंसक टकराव के बाद से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हजारों की तादाद में अतिरिक्त भारतीय कुमुक भेजी गई है। भीषण गर्मी वाले और उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों से बड़ी संख्या में वहां पहुंचे सैनिकों को लद्दाख के शून्य से नीचे तापमान वाले माहौल के अनुरूप ढलने का भी समय नहीं मिल पाया, क्योंकि उन्हें स्नो-बूट पहनकर दुनिया की छत पर हड़बड़ी में पहुंचना पड़ा। हड्डियां जमा देने वाले ठंड और दुर्गम इलाके में सैनिकों से मिलने और तैयारियों का जायजा लेने के लिए थल सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवाणे 23 जून को वहां पहुंचे। उन्हें कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने चीन के मेजर जनरल लियू लिन के साथ चल रही बातचीत की विस्तृत जानकारी दी गई। सरकारी सूत्रों ने दावा किया कि 11 घंटे तक चली बातचीत सकारात्मक रही और पूर्वी लद्दाख के सभी टकराव वाले क्षेत्रों में पीछे हटने पर परस्पर सहमति बनी, लेकिन इसकी प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में कुछ समय लगने की संभावना है।
तय है कि प्रक्रिया लंबी होगी, खासकर पैंगोंग त्सो के मामले में, जहां चीनी फौज ‘फिंगर-4’ तक पहुंच गई है और एक बंकर सहित कई ढांचे बना लिए हैं। शीर्ष सरकारी सूत्र मानते हैं कि “पीछे हटने के लिए पारस्परिक सहमति” में पैंगोंग त्सो शामिल नहीं है, क्योंकि, चीन ने इस पर बात करने में भी दिलचस्पी नहीं दिखाई।
सैन्य स्तर पर बातचीत के अलावा दोनों देशों ने एलएसी पर तनाव को लेकर वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टेंशन ऐंड कोऑर्डिनेशन ऑन इंडिया-चायना बॉर्डर अफेयर्स (डब्ल्यूएमसीसी) के माध्यम से वर्चुअल मीटिंग के जरिए संयुक्त सचिव स्तर की वार्ता भी शुरू कर दी है। हालांकि लंबे समय से अलग रहे डिप्लोमेसी रणनीतिकारों को इन उपायों से बहुत उम्मीद नहीं है। उनका मानना है कि नई चीन नीति बनाने का समय आ गया है।
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल कहते हैं कि दोनों देशों के बीच वार्ता का स्थापित तंत्र शायद कारगर नहीं रहा है। 2012 में डब्ल्यूएमसीसी तंत्र की स्थापना के बाद से 14 बार संयुक्त सचिव स्तर की वार्ताएं हो चुकी हैं। 2003 के बाद से दोनों पड़ोसी देशों के बीच विशेष प्रतिनिधि स्तर की 22 बार वार्ताएं हो चुकी हैं। आखिरी बार विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता अपने-अपने देश के प्रतिनिधि बनाए गए भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच पिछले दिसंबर में हुई थी। सिब्बल ने आउटलुक को बताया, “लगता है, इन बैठकों का कुछ खास नतीजा नहीं निकला।”
हालांकि, चीन भारतीय क्षेत्र में बार-बार घुसपैठ करता रहा है, लेकिन सिब्बल के मुताबिक इस बार बड़ी योजना दिखती है। सिब्बल कहते हैं, “चीन ने विस्तृत योजना बनाए बगैर यह नहीं किया होगा। उसे भारत की क्षमताओं का पूरा एहसास है और उसने भारत की भावी प्रतिक्रिया का भी अंदाजा लगा लिया होगा। लेकिन शायद उन्हें बड़े टकराव का अंदाजा नहीं होगा। वह कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गया। हालात बदतर ही हो सकते हैं।”
उनके अनुसार, स्थिति बेहद चिंताजनक है क्योंकि चीन ने पैंगोंग त्सो में मजबूत मोर्चेबंदी कर ली है। गलवन नदी घाटी और हॉट स्प्रिंग्स में दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट सकती हैं लेकिन पैंगोंग त्सो समस्या बनी रह सकती है। वे कहते हैं, “वहां से चीन की सेना को वापस भेजना आसान नहीं होगा। सवाल है कि क्या चीन फिंगर-8 तक पीछे हटने को तैयार है और अगर वह ऐसा करता है, तो भारत से क्या मांग करेगा। इसका आसान जवाब नहीं है।”