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झारखंडः बिरसा की मूर्तियों पर जितना खर्च हुआ उसका आधा भी उलिहातु पर खर्च होता तो बदल गई होती सूरत, उलिहातू में उपवास पर बैठे लेखक विकास झा

रांची। झारखंड के राजनीतिक दलों को तब तक ऑक्सीजन नहीं मिलती, जब तक वे 26 प्रतिशत आदिवासियों के भगवान,...
झारखंडः बिरसा की मूर्तियों पर जितना खर्च हुआ उसका आधा भी उलिहातु पर खर्च होता तो बदल गई होती सूरत, उलिहातू में उपवास पर बैठे लेखक विकास झा

रांची। झारखंड के राजनीतिक दलों को तब तक ऑक्सीजन नहीं मिलती, जब तक वे 26 प्रतिशत आदिवासियों के भगवान, भगवान बिरसा मुंडा का नाम नहीं लेते। इसके बावजूद आजादी के इतने सालों के बाद भी बिरसा के गांव उलिहतु की सूरत नहीं बदली। इन्हीं की जयंती  के मौके पर देश में आदिवासी स्वाभिमान दिवस की शुरुआत हुई। पिछले साल बिरसा जयंती पर 15 नवंबर को द्रौपदी मुर्मू बिरसा के गांव उलिहतु आई थीं, इस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आ रहे हैं।

देश के प्रख्‍यात लेखक और पत्रकार विकास कुमार झा ने आज 'धरती आबा' बिरसा मुंडा के गांव उलिहातु में उनके जन्‍म स्‍थल स्थित स्‍मारक पर एक दिवसीय उपवास किया। उनके उपवास का मुख्‍य मुद्दा था देश की आजादी के 76 वर्षों के बाद भी आजतक बिरसा भगवान के गांव का भयंकर पिछड़ापन और विकास तथा तरक्‍की के मामले में गांव का सबसे निचले पायदान पर होना।

बता दें कि विकास कुमार झा लंबे समय तक माया पत्रिका के बिहार के ब्‍यूरो चीफ और हिंदी दैनिक पाटलिपुत्र टाइम्‍स में सहायक संपादक रह चुके हैं। देश के एकमात्र एंग्‍लो इंडियन गांव पर उपन्‍यास 'मैकलुस्‍की गंज', वर्षावन की रूपकथा और बोधगया पर 'गयासुर संधान', देश के सबसे छोटे प्रांत गोवा पर 'राजा मोमो और पीली बुलबुल', उषा उत्‍थुप की जीवन गाथा 'उल्‍लास की नाव' तथा राजनीति का अपराधीकरण, सत्‍ता के सूत्रधार, कबिता संग्रह 'इस बारिश में', बिहार के बांग्‍ला भाषियों के जीवन पर चर्चित पुस्‍तक 'परिचय पत्र' आदि के लेखक हैं। उन्‍होंने कहा कि उलिहातु के महत्‍व और उसकी उपेक्षा को देखते हुए मन में टीस हुई और चला आया। अब यह मेरे एजेंडे पर है।

रविवार को उलिहातु के ग्रामीणों से बातचीत और संबोधन के क्रम में श्री झा ने कहा कि बीते 75-76 वर्षों से बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर के अवसर पर केंद्र से लेकर राज्‍य सरकार द्वारा बस नवंबर माह के पहले पखवारे तक उलिहातु के विकास के नाम पर घिनौना प्रहसन किया जाता रहा है लेकिन सर जमीन पर विकास का कतरा भी यहां मौजूद नहीं। साढ़े सात दशकों से यह गांव एक-एक बूंद पेयजल के लिए तड़प रहा है। उलिहातु बस्‍ती में पीने के पानी के नाम पर मात्र तीन चुआं हैं। पहले यह तीनों चुओं दस-दस फीट गहरा थे। पर वर्षों से जीर्णोद्धार के अभाव में ये तीनों चुआं भरते गये और अब यह मांत्र पांच-छह फीट गहरे रह गये हैं। गांव के मवेशी गांव के एकमात्र और सबसे गंदे तालाब से पानी पीकर अपनी प्‍यास बुझाते हैं।

वर्ष 2017 से उलिहातु में सशस्‍त्र सेना बल के 26 वें बटालियन का कैंप स्‍थापित है। कैंप के जवानों को भी पानी के संकट से जूझना पड़ता है। इसके चलते जवानों को बराबर पानी का टैंकर मंगवाना पड़ता है। उलिहातु स्थित बिरसा आवासीय उच्‍च विद्यालय के बहुत से बच्‍चे पानी के संकट के कारण विद्यालय छोड़कर जाने को विवश हो गये हैं। उलिहातु मेूं शिक्षा की स्थिति यह है कि यहां के एक जर्जर भवन में चलने वाला प्राथमिक विद्यालय हमेशा बंद पड़ा रहता है। उलिहातु में शिक्षा का दीप जलाया भी है तो सशस्‍त्र सेना बल के जवानों ने, जिन्‍होंने यहां के बच्‍चों को पढ़ाने की सार्थक पहल की है। जहां तक उलिहातु में चिकित्‍सा सुविधा का प्रश्‍न है तो वह शून्‍य है।

अबुआ झारखंड के सहयोजक विकास कुमार झा ने कहा कि झारखंड की राजधानी रांची से लेकर इस प्रांत के विभिन्‍न इलाकों और शहरों में अमर शहीद बिरसा मुंडा की जितनी मूर्तियां स्‍थापित हैं, अगर उन मूर्तियों की लागत की आधि राशि भी उलिहातु के विकास में लगा दी गई होती तो आज बिरसा मुंडा के गांव की यह बदहाली न रहती। उन्‍होंने कहा कि विकास के नाम पर इस गांव तक पहुंचने के लिए रांची से उलिहातु तक शानदार सड़क है और उलिहातु में हेलीपैड भी ताकि मौके-मौके पर यहां आने वाले वीआइपी लोगों को कोई असुविधा न हो। वर्ष 2022 के नवंबर में बिरसा जयंती पर देश की राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू यहां आयी थीं। उन्‍होंने उलिहातु में अपने भाषण में कहा कि उलिहातु को देश का एक आदर्श गांव बनाया जायेगा। पर आज इस बात को एक साल गुजरने को हैं, उलिहातु में कुछ भी नहीं हुआ। राष्‍ट्रपति बनने के पहले द्रौपदी मुर्मू झारखंड की ही राज्‍यपाल थीं।

अब 15 नवंबर में ज्‍यादा दिन नहीं है। इस बार बिरसा जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उलिहातु आ रहे हैं। जाहिर है उलिहातु में इस समय विकास की रस्‍मी कवायद फिर तेज है। गांव में जलापूर्ति के लिए उलिहातु और इसके आसपास के गांवमें अभी से सैकड़ों पाइपें गिरी हुई हैं पर उलिहातु के आदिवासियों में कहीं से भी उत्‍साह नहीं है। उन्‍हें पता है कि 15 नवंबर के बाद यह सब धरा का धरा रह जायेगा। उलिहातु गांव खूटी जिला के अंतर्गत है। खूंटी के डीसी ने हाल ही  एलान किया है कि उलिहातु में चीकू और ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत होगी। पर जो गांव पीने के पानी के लिए तरह रहा है वहां फलदार वृक्षों की बागवानी की घोषणा हकीकत में उलिहातु के लोग अच्‍छी तरह जानते हैं। अबुआ झारखंड के संयोजक विकास झा ने कहा कि उलिहातु के विकास की लड़ाई के लिए 'अबुआ झारखंड' नामक यह नवगठित मोर्चा सदैव सक्रिय रहेगा। उन्‍होंने देश के लोगों का आह्वान किया कि हस पिछड़े गांव, आदिवासी गांव के विकास के लिए जिनसे भी जो भी संभव हो मदद को आगे आयें क्‍योंकि उलिहातु गांव का विकास न तो केंद्र सरकार से संभव है न ही राज्‍य की वर्तमान सरकार से।

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