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वो बाहुबली जिसके लिए यूपी और पंजाब में छिड़ गई जंग, है 40 से ज्यादा मुकदमे, योगी सरकार को था 2 साल से इंतजार

पूर्वांचल के माफिया डॉन और बसपा के बाहुबली विधायक मुख्यार अंसारी को लेकर यूपी औरं पंजाब के बीच सियासी...
वो बाहुबली जिसके लिए यूपी और पंजाब में छिड़ गई जंग, है 40 से ज्यादा मुकदमे, योगी सरकार को था 2 साल से इंतजार

पूर्वांचल के माफिया डॉन और बसपा के बाहुबली विधायक मुख्यार अंसारी को लेकर यूपी औरं पंजाब के बीच सियासी तथा कानूनी जंग पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। पूर्वांचल का एक सच भी है, वह है अपराध और राजनीति का गठजोड़ और इसी गठजोड़ की बदौलत पूर्वांचल के कई माफियाओं ने विधानसभा से लेकर संसद तक का सफर तय किया। अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखने वालों की फेहरिस्त में एक अहम नाम है मुख्तार अंसारी। 

मुख्तार अंसारी पर 40 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं। लेकिन पूर्वांचल की राजनति में इसका सिक्का लगातार कायम है। चाहे भाई अफजाल की सियासी पारी हो या बेटे का सियासत में पहला कदम, दोनों को जो भी जीत मिली, उसमें मुख्तार का ही योगदान माना जाता है। आज मुख्तार अंसारी चर्चा में इसलिए है, क्योंकि उन्हें कोर्ट ने 2005 में बीजेपी के कद्दावर विधायक कृष्णानंद राय की हत्याकांड मामले में बरी कर दिया है, मुख्तार अंसारी पर आरोप था कि उसने 2005 में जेल में रहते हुए कृष्णानंद राय की हत्या की साजिश रची थी।

यूपी के गाजीपुर जिले में जन्मे मुख्तार अंसारी को. राजनीति मुख्तार अंसारी को विरासत में मिली। उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे जबकि उनके पिता एक कम्युनिस्ट नेता थे। कॉलेज में ही पढ़ाई लिखाई में ठीक मुख्तार ने अपने लिए अलग राह चुनी।1970 का वो दौर जब पूर्वांचल के विकास के लिए सरकार ने योजनाएं शुरू की। 90 का दशक आते-आते मुख्तार ने जमीन कब्जाने के लिए अपना गैंग शुरू कर लिया। उनके सामने सबसे बड़े दुश्मन की तरह खड़े थे बृजेश सिंह. यहीं से मुख्तार और बृजेश के बीच गैंगवार शुरू हुई।

पहली बार 1988 में हत्या के एक मामले में मुख्तार का नाम आया था। हालांकि उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत पुलिस नहीं जुटा पाई लेकिन इस बात को लेकर वह चर्चाओं में आ गया। 1990 का दशक में मुख्तार अंसारी जमीनी कारोबार और ठेकों की वजह से अपराध की दुनिया में कदम रख चुका था। पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में उनके नाम का सिक्का चलने लगा था।

अंसारी ने 1995 में राजनीति की मुख्यधारा में कदम रखा। 1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधान सभा के लिए चुने गए। उसके बाद से ही उन्होंने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया। 2002 आते-आते इन दोनों के गैंग ही पूर्वांचल के सबसे बड़े गिरोह बन गए। इसी दौरान मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला हुआ। दोनों तरफ से गोलीबारी हुई इस हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गए. खबर आई कि ब्रजेश सिंह इस हमले में घायल हो गया। उसके मारे जाने की अफवाह भी उड़ी और मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में अकेले गैंग लीडर बनकर उभरे।

गैंगवार में ब्रजेश सिंह जिंदा पाए गए और फिर से दोनों के बीच संघर्ष शुरू हो गया। अंसारी के राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए ब्रजेश सिंह ने भाजपा नेता कृष्णानंद राय के चुनाव अभियान का समर्थन किया। राय ने 2002 में यूपी विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद से मुख्तार अंसारी के भाई और पांच बार के विधायक अफजल अंसारी को हराया था। बाद में मुख्तार अंसारी ने दावा किया कि कृष्णानंद राय ने ब्रजेश सिंह के गिरोह को सरकारी ठेके दिलाने के लिए अपने राजनीतिक कार्यालय का इस्तेमाल किया और उन्हें खत्म करने की योजना बनाई।

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को पंजाब से यूपी वापस भेजने का आदेश दिया है। यूपी ने शिकायत की थी कि 2 साल पहले एक पेशी के लिए पंजाब ले जाए गए मुख्तार को पंजाब सरकार वापस नहीं भेज रही इससे राज्य में लंबित संगीन अपराध के मुकदमे प्रभावित हो रहे हैं। वहीं, मुख्तार ने यूपी में अपनी जान को खतरा बताते हुए गुहार की थी कि उसे वहां न भेजा जाए। आज कोर्ट ने पंजाब सरकार और मुख्तार की दलीलों को खारिज कर दिया।

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