सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की गिरफ्तारी पर रोक 15 अक्टूबर तक के लिए बढ़ा दी है। साथ ही महाराष्ट्र पुलिस को मामले से जुड़े दस्तावेज पेश करने का आदेश दिया है। वहीं, महाराष्ट्र सरकार ने मामले में फैसले से पहले उसका पक्ष भी सुनने की अपील की है।
गौतम नवलखा ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर खारिज करने के लिए मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। नवलखा की इस याचिका को हाईकोर्ट ने 13 सितंबर को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए विस्तृत जांच की जरूरत है। इसके बाद हाईकोर्ट ने नवलखा की गिरफ्तारी पर तीन सप्ताह की रोक लगा दी थी ताकि वह सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उसके फैसले को चुनौती दे सकें।
पांच जज मामले से खुद को कर चुके हैं अलग
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रविंद्र भट ने गुरुवार को इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उनसे पहले सुप्रीम कोर्ट के चार और जज नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर चुके थे। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने 30 सितंबर को मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया था। इसके बाद एक अक्टूबर को जस्टिस एनवी रमन, आर. सुभाष रेड्डी और बीआर गवई ने भी इस मामले की सुनवाई कर रही बेंच से खुद को अलग कर लिया था। किसी ने भी इस मामले की सुनवाई से अलग होने का कारण नहीं बताया है।
ये है मामला
31 दिसंबर, 2017 को यलगार परिषद के कार्यक्रम के अगले दिन पहली जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क गई थी। इसके बाद पुणे पुलिस ने नवलखा, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस और सुधा भारद्वाज के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।
महाराष्ट्र पुलिस ने आरोप लगाया था कि नवलखा और अन्य के माओवादियों से संबंध हैं। ये सभी आरोपी सरकार को अस्थिर करने के लिए काम कर रहे हैं। सभी आरोपियों के खिलाफ गरै-कानूनी गतिविधि निषेध कानून और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। कोर्ट में नवलखा ने कहा था कि मेरा किसी भी प्रतिबंधित संगठन से कोई संबंध नहीं है। मैं केवल नागरिक अधिकारों के लिए आवाज उठाता हूं। पूरा मामला दस्तावेजों और सह-अभियुक्तों के बयानों के आधार पर है।