स्वामी चिन्मयानंद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दोनों ही पक्षों (चिन्मयानंद और पीड़िता छात्रा) ने अपनी मर्यादा लांघी हैं, ऐसे में यह निर्णय करना बहुत मुश्किल है कि किसने किसका शोषण किया, वास्तव में दोनों ने एक-दूसरे का इस्तेमाल किया है।
जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने छात्रा के यौन शोषण के मामले में सोमवार को चिन्मयानंद को सशर्त जमानत दी थी। इससे पूर्व शिकायतकर्ता के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस चतुर्वेदी ने 16 नवंबर को चिन्मयानंद की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा, "फिरौती के मामले में छात्रा को इस अदालत की एक समन्वय पीठ द्वारा पहले ही जमानत दी जा चुकी है और याची चिन्मयानंद की जमानत खारिज करने का कोई न्यायसंगत कारण नहीं बनता।"
'यह आपसी लाभ का मामला है'
अदालत ने कहा, "यह दिख रहा है कि पीड़ित छात्रा के परिजन आरोपी व्यक्ति के उदार व्यवहार से लाभान्वित हुए। वहीं, यहां कोई भी ऐसी चीज रिकॉर्ड में नहीं है, जिससे यह साबित हो कि छात्रा पर कथित उत्पीड़न की अवधि के दौरान, उसने अपने परिजनों से इसका जिक्र भी किया हो। इस पर अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि यह मामला पूरी तरह से 'किसी लाभ के बदले कुछ काम करने' का है।"
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सौंपी गई थी एसआईटी को जांच
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पिछले साल सितंबर में चिन्मयानंद की गिरफ्तारी हुई थी। एसआईटी ने यूपी पुलिस के साथ मिलकर चिन्मयानंद को मुमुक्षु आश्रम से गिरफ्तार किया था। चिन्मयानंद पर उनके ही कॉलेज में पढ़ने वाली एलएलएम की एक छात्रा ने दुष्कर्म और ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो सदस्यीय विशेष पीठ गठित कर पूरे मामले की जांच एसआईटी को सौंपने का निर्देश दिया था। मामले में पीड़िता एलएलए छात्रा को चार दिसंबर को अदालत से जमानत मिल चुकी है।