युवाओं को सिर्फ किसान के तौर पर जोड़ने की बचाए वैल्यू चेन डेवलपर के रूप में जोड़ा जाना चाहिए। इससे उन्हें बेहतर आर्थिक अवसर मिलेंगे। इसके लिए सरकार को दीर्घकालिक निवेश, आसान एवं सस्ता कर्ज, उद्यमियों को सब्सिडी, जमीन, पानी और बाजार से जुड़ी नीतियों में सुधार, ग्रामीण इलाकों में युवाओं द्वारा किए जाने वाले वैल्यू एडिशन पर टैक्स में छूट के लिए नीतियों में बदलाव करना चाहिए। यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के पूर्व महानिदेशक और ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज के चेयरमैन डॉ. आर.एस. परोदा ने ऑल इंडिया एग्रीकल्चर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में कही।
उन्होंने कहा कि टिकाऊ खेती, सूचना के प्रभावी प्रसार, तकनीकी सहयोग, एग्रीबिजनेस का नए मॉडल विकसित करने और आंत्रप्रेन्योरशिप तथा वैल्यू चेन डेवलपमेंट के लिए नेशनल मिशन ऑन यूथ इन एग्रीकल्चर का गठन किया जाना चाहिए। इसके अलावा युवाओं को ई-नैम, स्टार्टअप, स्टैंडअप जैसी योजनाओं, एग्रीबिजनेस उद्यमों और एफपीओ आदि से जोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कृषि से जुड़े युवा नौकरी देने वाले हों, नौकरी मांगने वाले नहीं। उन्होंने हर जिले में एग्री क्लीनिक मॉडल को प्रमोट करने की बात भी कही।
हाइब्रिड टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को बढ़ावा
डॉक्टर परोदा ने मक्का, बाजरा, सोर्घम और चावल में हाइब्रिड टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल, सोयाबीन, सरसों, मक्का और बैगन की जीएम फसलों की खेती, माइक्रो इरिगेशन को बढ़ावा और फ्लड इरिगेशन को हतोत्साहित करने, बायोएनर्जी/ बायोफ्यूल के इस्तेमाल को बढ़ावा देने तथा बायोफोर्टीफाइड फसलों (अच्छी क्वालिटी के प्रोटीन वाले मक्के, आयरन और जिंक युक्त चावल, आयरन युक्त बाजरा, जिंक युक्त गेहूं) पर जोर दिया।
कृषि आयातक से इसका निर्यातक बना भारत
उन्होंने कहा, एक समय था जब हमें कृषि उत्पादों के आयात पर काफी हद तक निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन आज हम न सिर्फ आत्मनिर्भर हैं, बल्कि इनका निर्यात भी करते हैं। हर साल 40 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के कृषि उत्पादों का निर्यात होता है। हमने दुनिया को दिखाया कि हम न सिर्फ 137 करोड़ देशवासियों का ख्याल रख सकते हैं, बल्कि दूसरे विकासशील देशों की जरूरतें भी पूरी कर सकते हैं। हरित, श्वेत और नील क्रांति से यह संभव हो सका है। सिर्फ अनाज का ही दो करोड़ टन का निर्यात होता है। आज हमारे पास पांच करोड़ टन से अधिक का बफर स्टॉक है। अनाज उत्पादन पांच करोड़ टन से छह गुना बढ़कर 29.5 करोड़ टन और बागवानी उत्पादन 32 करोड़ टन पहुंच गया। इस दौरान आबादी में चार गुना बढ़ोतरी हुई। कृषि के अच्छे प्रदर्शन के कारण गरीबी दर 70 फीसदी से घटकर 20 फीसदी पर आ गई है। जीवन प्रत्याशा भी 32 वर्ष से बढ़कर 68 वर्ष हो गई है।
देश आत्मनिर्भर होने के बावजूद किसानों की आमदनी कम
उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादन में इतनी बढ़ोतरी के बावजूद किसानों की आमदनी कम हो गई है। देश के 80 फीसदी किसान छोटी जोत वाले हैं, उनके पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है। भारतीय कषि के पुनर्विकास की जरूरत है क्योंकि यहां किसान कम आमदनी से जूझ रहे हैं, युवा कृषि में रुचि नहीं ले रहे और किसानों को नीतिगत समर्थन भी नहीं मिल रहा है। टिकाऊ और मुनाफे वाली खेती के लिए नए सिरे से सोचने की जरूरत है। इसके लिए विविधीकरण के साथ-साथ उत्पादन के बाद प्रोसेसिंग जैसे कार्यों पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
भारत को मिलेगा युवा आबादी का फायदा
जहां तक खेती में युवाओं के महत्व की बात है तो 2050 तक दुनिया की आबादी 900 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है, जिसमें युवा करीब 20 फ़ीसदी होंगे। भारत के फायदे की स्थिति में है क्योंकि यहां 10 से 24 साल के आयु वर्ग के 35.6 करोड़ युवा हैं, जिनमें से 20 करोड़ ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। चीन और इंडोनेशिया की तुलना में भारत की आबादी ज्यादा लंबे समय तक युवा रहने की उम्मीद है। भारतीयों की औसत उम्र 30 साल है जबकि अमेरिकियों की 40, यूरोप वासियों की 46 और जापानियों की 47 वर्ष है।
युवाओं की चुनौतियों का समाधान जरूरी
हालांकि युवाओं के सामने चुनौतियां भी हैं। सूचना तक उनकी पहुंच नहीं होने के कारण वे नए कदम नहीं उठा पाते हैं। उनके पास जमीन भी कम होती है, वित्तीय संसाधनों का अभाव होता है, बाजार के साथ जुड़ने में कठिनाइयां हैं, फैसले लेने की प्रक्रिया में उनका कोई दखल नहीं है। इसके अलावा कृषि को लेकर समाज का नजरिया भी ठीक नहीं और ग्रामीण इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव है। आगे बढ़ने का तरीका यही है कि हम सोच तो वैश्विक रखें लेकिन काम करें स्थानीय। 2006 में ग्लोबल फोरम ऑन एग्रीकल्चर रिसर्च एंड इनोवेशन (जीएफएआर) द्वारा आयोजित वैश्विक सम्मेलन में कृषि में युवाओं को जोड़े रखने की समस्या पर पहली बार चर्चा हुई थी। इसके बाद जीएफएआर के तत्वावधान में ही यंग प्रोफेशनल्स फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट का गठन किया गया। बाद के वर्षों में कई मंचों पर कृषि में युवाओं के महत्व पर चर्चा हुई।