“एनसीआरबी की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा में बुजुर्गों की प्रताड़ना के 1056 मामले दर्ज हुए, पिछले वर्षों से इसमें भारी इजाफा”
एक पन्ने का यह सुसाइड नोट उम्र के 78वें पड़ाव पर मौत को गले लगाने को मजबूर हुए एक बेबस बाप का है। उसका भरा-पूरा रसूखदार परिवार है। पोता आइएएस अफसर है। बेटे के पास करोड़ों की संपत्ति है। फिर भी बुजुर्ग मां-बाप दर-दर की ठोकर खाते रहे, दो साल अनाथ आश्रम में गुजरे और जब सहनशक्ति जवाब दे गई तो ‘आखिरी सफर’ पर निकलने का फैसला कर लिया। जगदीश चंद्र आर्य ने 77 वर्षीय पत्नी भागली देवी के साथ 29 मार्च की देर रात बाढड़ा स्थित अपने निवास पर आत्महत्या कर ली। हरियाणा के चरखी दादरी के गांव गोपी में रहने वाले आर्य ने अपने जहर निगलने की जानकारी खुद पुलिस कंट्रोल रूम को दी। अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझते आखिरी पलों में इस बुजुर्ग दंपती ने पुलिस को सुसाइड नोट भी सौंपा। नोट में आखिरी इच्छा जताई कि सरकार बेटे-बहुओं को दंड दे। पुलिस की जांच जारी है और जांच पर दबाव की आंच है।
दिवंगत जगदीश चंद्र आर्य का पोता विवेक आर्य हरियाणा काडर का आइएएस अफसर है। करोड़ों की संपत्ति के मालिक इस रसूखदार परिवार में जहां हुकुम बजाने के लिए नौकर-चाकर हैं, उसी घर के एक कोने में बुजुर्ग मां-बाप को इज्जत के साथ दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हुई। सुसाइड नोट के मुताबिक बाढड़ा की शिव कॉलोनी में बड़े बेटे वीरेंद्र के घर से भी बुजुर्ग दंपती को बाहर निकाल दिया गया, जो आइएएस विवेक के पिता हैं। भरा-पूरा परिवार होते हुए उनके दो साल अनाथालय में गुजरे। बेबस बुजुर्ग मां-बाप की इस दर्दनाक दास्तान की परिणति भले ही आत्महत्या में हुई, पर हालात के मद्देनजर यह हत्या से कम नहीं है।
जगदीश चंद्र आर्य का सुसाइड नोट
इस मामले में पुलिस ने बड़े बेटे वीरेंद्र समेत दो पुत्र-वधुओं व भतीजे समेत चार लोगों पर मामला दर्ज किया है। अभी किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। चरखी दादरी के डीएसपी (हेडक्वार्टर) वीरेंद्र श्योराण के मुताबिक, “मृतक जगदीश चंद्र ने निजी अस्पताल में पुलिस के सामने लिखित में पत्र दिया है जिसे सुसाइड नोट भी माना जा सकता है। मृतक दंपती ने परिवार के लोगों पर परेशान करने का आरोप लगाते हुए जहर खाकर आत्महत्या की है। चार लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, जांच जारी है।” मामला आत्महत्या का बताकर पुलिस गिरफ्तारी से पल्ला झाड़ रही है क्योंकि बुजुर्ग मां-बाप की उपेक्षा संबंधी कानून में यह अपराध की श्रेणी से बाहर है। गौरतलब यह भी है कि परिवार रसूखदार है, पोता आइएएस अफसर है। इस मामले में कार्रवाई पर आउटलुक से हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा, “पहले दिन से ही मामला मेरे संज्ञान में है। पुलिस की जांच जारी है। आत्महत्या के लिए उकसाने या विवश करने के प्रमाण मिलने पर परिजनों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है। भले ही कोई कितना भी रसूखदार हो या कितने भी बड़े पद पर हो, बख्शा नहीं जाएगा।”
ऐसे मामलों को हत्या के मामले की तरह मंजूर करने की पैरवी करते हुए देश के एडीशनल सॉलिसिटर जनरल तथा पूर्व सांसद सत्यपाल जैन ने आउटलुक से कहा, “जब तक मेंटेनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजन एक्ट में संशोधन करके इसे सख्त नहीं बनाया जाएगा, बुजुर्ग मां-बाप के साथ अमानवीय व्यवहार की घटनाएं बढ़ती जाएंगी। केंद्र और राज्य सरकारों को इस पर संज्ञान लेना चाहिए। औलाद की उपेक्षा का शिकार होकर आत्मघाती कदम उठाने को मजबूर बुजुर्गों के मामले में आत्महत्या नहीं, बल्कि हत्या का प्रावधान होना चाहिए। इसके लिए सीधे जिम्मेदार औलाद पर हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।”
बेबस मां-बाप द्वारा आत्महत्या पर पश्चाताप के बजाय अपनी सफाई में जगदीश चंद्र के बड़े बेटे और आइएएस विवेक आर्य के पिता वीरेंद्र का कहना है, “उम्र के उस पड़ाव पर दोनों बीमारी के चलते परेशान थे जिसके कारण उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठाया है।” 2021 में जिस पोते विवेक के संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर आइएएस चुने जाने पर दादा की खुशियों का कोई ठिकाना न था, उस दादा की आइएएस पोते ने भी सुध न ली।
संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों के बिगड़ते हालात पर चिंता जताते हुए हरियाणा की पूर्व सामाजिक कल्याण एवं सशक्तीकरण मंत्री गीता भुक्कल का कहना है, “किसी आइएएस अफसर के दादा-दादी द्वारा चरखी दादरी में आत्महत्या का मामला कोई पहला नहीं है। गरीब ग्रामीण परिवारों की तुलना में शहरों के संभ्रांत परिवारों में बुजुर्गों की उपेक्षा के मामले कहीं अधिक हैं। शहरों के वृद्ध आश्रमों में शरण लेने वाले बुजुर्गों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। प्रदेश के 22 जिलों में करीब चार दर्जन वृद्ध आश्रम भी अब कम पड़ रहे हैं। गुड़ग़ांव, फरीदाबाद और दिल्ली एनसीआर से लगे अन्य इलाकों में बिखरते संयुक्त परिवारों के बुजुर्ग उपेक्षित और एकाकी जीवन जीने को मजबूर हैं पर इनमें से अधिकांश बुजुर्ग तो अपनी औलाद के खिलाफ पुलिस में शिकायत तक दर्ज नहीं कराते।”
पुलिस रिकॉर्ड में परिवारों के उत्पीड़न के शिकार बुजुर्गों के आंकड़े बढ़ रहे हैं पर अभी तक कोई बड़ी कारगर कार्रवाई सामने नहीं आई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, “हरियाणा में बुजुर्गों की प्रताड़ना के 1056 मामले पुलिस ने दर्ज किए थे जबकि 2020 में 680 और 2019 में ऐसे मामलों की संख्या 384 थी।” कोरोना काल में उन बीमार बुजुर्गों को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा जिन्हें उनके परिवारों ने त्याग दिया। हरियाणा के ही एक वरिष्ठ अधिकारी को तब बड़ा शर्मसार होना पड़ा जब कोरोना संकट के समय घर से प्रताडि़त होकर निकली मां करीब एक महीने बाद एक मंदिर की चौखट पर भिखारियों की पंक्ति में बैठी भीख मांगती दिखाई दी।
हरियाणा में करीब ऐसे 3600 बुजुर्गों की पहचान की गई है जिनका अपना कोई परिवार नहीं बचा। ऐसे लोगों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी सरकार उठाने जा रही है। निस्संदेह यह उन कथित रसूखदार परिवारों के लिए संदेश है जिनके घरों में पालतू जानवरों के रखरखाव और साज-संभाल पर ही महीने में हजारों रुपए खर्च हो रहे हैं जबकि बुजुर्ग मां-बाप के लिए इज्जत के साथ बासी रोटी भी भारी है।