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आवरण कथा/ इंटरव्यू/अलख पांडे: मौलिकता खो रहे हैं शिक्षक

“अलख के यूट्यूब पर करीब 90 लाख, इंस्ट्राग्राम पर 10 लाख से अधिक सब्सक्राइबर” उत्तर प्रदेश के...
आवरण कथा/ इंटरव्यू/अलख पांडे: मौलिकता खो रहे हैं शिक्षक

“अलख के यूट्यूब पर करीब 90 लाख, इंस्ट्राग्राम पर 10 लाख से अधिक सब्सक्राइबर”

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के दक्षिण मलका में 2 अक्टूबर 1991 को जन्मे अलख पांडे पढ़ाने की अलग स्टाइल के लिए मशहूर हैं। बचपन में आर्थिक तंगी झेलने वाले पांडे इंटरनेशनल हुरुन रिचलिस्ट में शामिल हैं। कुछ दिन पहले  उनका स्टार्टअप ‘फिजिक्सवाला’ 8000 करोड़ रुपये की यूनिकॉर्न लिस्ट में शामिल हुआ है। पढ़ाई के दौरान आठवीं कक्षा में ही वे चौथी कक्षा के बच्चों को पढ़ाते थे। 11वीं में 9वीं के बच्चों को पढ़ाते थे। बीटेक की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले अलख ने 2015 में यूट्यूब पर पढ़ाना शुरू किया था। 

ऑनलाइन कोचिंग में चूंकि छात्र सीधे सवाल नहीं पूछ सकते, इसलिए वे ध्यान रखते हैं कि जिस टॉपिक पर वीडियो बनाएं, उससे जुड़ा छोटे-से छोटा सवाल भी छात्र के मन में न रह जाए। फिजिक्सवाला पर स्कूली बोर्ड के साथ नीट और जेई की भी तैयारी कराई जाती है। उनके यूट्यूब पर करीब 90 लाख, इंस्ट्राग्राम पर 10 लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैं। आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने उनसे ऑनलाइन शिक्षा, शिक्षकों के विवाद, शिक्षकों की भीड़ में सही विकल्प चुनने, जैसे सवालों पर बातचीत की। संपादित अंश:

इसका खयाल कैसे आया?

इसे खोलने का एक ही मकसद था,  जिन परेशानियों का सामना मैंने किया, वह दूसरे बच्चों को न करना पड़े। घर में आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए कक्षा आठ में ही मैंने पढ़ाना शुरू कर दिया था। बाद में, सरकारी कॉलेज में दाखिला तो हो गया। पर उतने पैसे नहीं थे कि मैं नीट की तैयारी कर सकूं। पैसे की तंगी से किसी की पढ़ाई न रुके, इसी मकसद से फिजिक्सवाला की शुरुआत हुई।

किस तरह की दिक्कतें पेश आईं?

पहली चुनौती तो यही थी कि गुणवत्तापूर्ण कंटेंट कैसे मुहैया कराया जाए। मैं कोटा गया और वहां से कुछ अच्छी किताबें खरीदीं। उस समय मेरी हालात यह थी कि वापस आते वक्त पैसे ही नहीं बचे थे। फिर  मैंने ऑनलाइन वीडियो देखकर सीखा कि नामी शिक्षक पढ़ाते कैसे हैं। दूसरी चुनौती टीम बनाने की थी। दूसरे कोचिंग वाले टीम तोड़ने में लग गए। उसके बावजूद मैंने 70 हजार रुपये में होने वाली नीट की कोचिंग फिजिक्सवाला से मात्र 4000 रुपये में कराई। शुरुआत में 50 हजार बच्चे जुड़े। तीसरी परेशानी यह थी, ऐसे लोगों को खोजना जो तकनीक की समझ रखते हों। इन्हें खोजना और संभाले कर रखना क्योंकि सिर्फ अच्छे टीचर से कुछ नहीं होता। तकनीकी टीम की बदौलत हमने सबसे बड़ा एजुकेशनल लाइव किया, जिसमें ऐप के जरिये करीब 1 लाख 23 हजार लोग जुड़े। हालांकि हम ऑनलाइन पढ़ाते हैं लेकिन हमारा तरीका ऑफलाइन का है।

आप अक्सर ‘मी टाइम’ पर जोर देते हैं। आज जब आपको इतनी ख्याति मिल चुकी है, टाइम मैनेजमेंट में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?

सामान्य घर से निकला हुआ लड़का, जिसे पढ़ाने के अलावा कुछ नहीं आता, उसके लिए कुछ भी आसान नहीं था। जब मेरी कंपनी यूनिकॉर्न बनी, तो इनवाइट्स की बाढ़-सी आ गई। मैं कई जगह इंटरव्यू देने जाता था। अभी हम लोग कुछ नया लॉन्च करने वाले हैं, इस वजह से मैंने कहीं भी आना-जाना छोड़ दिया है। अब ‘मी टाइम’ निकालना कुछ मुश्किल-सा हो गया है।

आजकल ऑनलाइन टीचिंग की खूब बात हो रही है। इस बदलते दौर में क्या हमने कुछ खो दिया है, वह क्या है?

कोई भी चीज जब पहली-पहली बार आती है तो उसमें खामियां होती हैं, लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ परफेक्ट हो जाता है। ऑनलाइन टीचिंग से बच्चों का बहुत टाइम बच जाता है। हालांकि अभी भी डाउट सॉल्विंग मेथड पर हम काम कर रहे हैं। हम इंटरैक्शन को भी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं ऑनलाइन एजुकेशन के पक्ष में हूं।

ऐसा नहीं लगता कि शिक्षा का व्यापारीकरण हो रहा है?

मुझे यह सब देखकर बहुत बुरा लगता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम पांच साल मेहनत करके इस मुकाम पर आए हैं। हमने बच्चों के लिए मेहनत की है, उन्हें मोटिवेट किया है। हमारे यहां अगर कोई टीचर कोड ऑफ कंडक्ट के खिलाफ काम करता है, तो उसे तुरंत फायर कर दिया जाता है। मैं शिक्षकों से यही निवेदन करूंगा कि बच्चों का दिल जीतने का कोशिश करें। वायरल होने के चक्कर में लोग ओरिजिनलिटी खो रहे हैं। सस्ता फेम पाने का तरीका शिक्षकों को छोड़ना होगा।

ऑनलाइन शिक्षकों का हुजूम खड़ा हो गया है। बच्चों को सही विकल्प चुनने में मुश्किल होती है। आपके हिसाब से बच्चा सही विकल्प कैसे चुने?

ऑफलाइन सही विकल्प चुनने में कठिनाइयां आती हैं, लेकिन ऑनलाइन सही विकल्प चुनना आसान है। पहला तरीका है कि शिक्षक जो पढ़ा रहा है उसके कमेंट सेक्शन में जाकर देखिये, बच्चे वहां रिव्यू करते नजर आ जाएंगे। उस कोचिंग की रेटिंग भी चेक की जा सकती है। यह भी हो सकता है कि किसी संस्थान की रेटिंग खराब है लेकिन शिक्षक अच्छा पढ़ाते हों। इसलिए उन टीचर्स की डेमो क्लास लीजिए। यह भी देखें कि स्टडी मैटेरियल मिल रहा है क्या? डाउट सॉल्विंग का तरीका क्या है? बच्चे अपने सीनियर्स से भी सलाह ले सकते हैं।

आजकल हर कोई चाह रहा है कि वह फेमस हो जाए, सेलिब्रिटी बन जाए। इस नए दौर को आप किस नजर से देखते हैं?

पहले शिक्षकों को वह दर्जा नहीं मिलता था जिसके वे हकदार हैं। पहले फेमस स्टैंड-अप कॉमेडियन होते थे लेकिन आज अगर शिक्षक सेलिब्रिटी बन रहे हैं तो इससे अच्छी बात क्या है? भारत में गुरु-शिष्य की समृद्ध परंपरा रही है, ऑनलाइन टीचिंग ने पुरानी परंपरा को नए तरीके से जागृत किया है। समाज वैसा ही बन जाता है, जिसे वह अपना आदर्श मानता है। शिक्षकों का आदर्श बनना खुशी की बात है।

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