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मियां-तियां कहना... सुप्रीम कोर्ट पहुंचा केस, जज ने कही ये बड़ी बात, शख्स को कर दिया बरी

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि दुर्भावना से कहे जाने के बावजूद किसी के लिये ‘‘मियां-तियां’’ और...
मियां-तियां कहना... सुप्रीम कोर्ट पहुंचा केस, जज ने कही ये बड़ी बात, शख्स को कर दिया बरी

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि दुर्भावना से कहे जाने के बावजूद किसी के लिये ‘‘मियां-तियां’’ और ‘‘पाकिस्तानी’’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं है। न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने झारखंड के चास स्थित अनुमंडल कार्यालय में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत एक उर्दू अनुवादक एवं कार्यवाहक लिपिक द्वारा दायर आपराधिक मामले में एक व्यक्ति को आरोपमुक्त कर दिया। 

न्यायालय के 11 फरवरी के आदेश में कहा गया, ‘‘अपीलकर्ता पर सूचनादाता को ‘‘मियां-तियां’’ और ‘‘पाकिस्तानी’’ कहकर उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप है। निस्संदेह, ये बातें दुर्भावना से कही गई हैं। हालांकि, यह सूचनादाता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के समान नहीं है। इसलिए, हमारा मानना है कि अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 298 के तहत भी बरी किया जाना चाहिए।’’ आईपीसी की धारा 298 धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर कहे गए शब्दों या इशारों से संबंधित है। 

रिकॉर्ड में यह बात सामने आई है कि आरोपी हरिनंदन सिंह ने अतिरिक्त समाहर्ता-सह-प्रथम अपीलीय प्राधिकारी, बोकारो से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी और सूचना उन्हें भेज दी गई थी। हालांकि, उन्होंने कथित तौर पर कार्यालय द्वारा पंजीकृत डाक के माध्यम से भेजे गए दस्तावेजों में हेरफेर करने और दस्तावेजों में हेरफेर के झूठे आरोप लगाने के बाद अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर की। अपीलीय प्राधिकार ने अनुवादक को व्यक्तिगत रूप से अपीलकर्ता को सूचना देने का निर्देश दिया। 

अनुमंडल कार्यालय, चास के अर्दली के साथ सूचनादाता 18 नवंबर, 2020 को सूचना देने के लिए आरोपी के घर पहुंचा। आरोपी ने पहले तो दस्तावेज लेने से इनकार कर दिया, लेकिन सूचनादाता के जोर देने पर उसे स्वीकार कर लिया। यह आरोप है कि आरोपी ने सूचनादाता के धर्म का जिक्र करते हुए उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग किया। इसके बाद अनुवादक ने आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। जांच के बाद निचली अदालत ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 353 (लोक सेवक पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और 504 (जानबूझकर अपमान) के तहत भी आरोप तय करने का आदेश दिया। 

झारखंड उच्च न्यायालय ने कार्यवाही रद्द करने के अनुरोध वाली आरोपी की याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय की पीठ ने उसे जानबूझकर अपमान करने के अपराध से मुक्त कर दिया और कहा कि धारा 353 के अलावा ‘‘उसकी ओर से ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया, जिससे शांति भंग हो सकती हो।’’ न्यायालय ने कहा, ‘‘हम उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते हैं, जिसमें निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा गया था। हम अपीलकर्ता द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार करते हैं तथा अपीलकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए तीनों आरोपों से मुक्त करते हैं।’’ 

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