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मॉब लिंचिंग पर सिख विरोधी दंगों का जिक्र कर जवाबदेही से बच नहीं सकती मोदी सरकार

राजस्थान के अलवर जिले में एक बार फिर से गौ-तस्करी के शक में एक व्यक्ति की हत्या का मामला सामने आया है।...
मॉब लिंचिंग पर सिख विरोधी दंगों का जिक्र कर जवाबदेही से बच नहीं सकती मोदी सरकार

राजस्थान के अलवर जिले में एक बार फिर से गौ-तस्करी के शक में एक व्यक्ति की हत्या का मामला सामने आया है। मामला अलवर जिले के रामगढ़ का है, जहां गौ-तस्करी के शक में व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। बताया जा रहा है कि मृतक का नाम अकबर है। ये घटना तब हुई जब अकबर और असलम गाय लेकर जा रहे थे, तभी भीड़ ने उन पर हमला कर दिया, जिसमें अकबर की मौत हो गई। यह घटना शुक्रवार देर रात की है। मामले की जानकारी मिलते ही मौके पर पहुंची पुलिस जांच में जुट गई है।

पहलू खान के बाद अलवर में यह गौरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग का दूसरा मामला है। 'कड़ी निंदा' और 'कठोर कार्रवाई' जैसे औपचारिक शब्द फिर से हवा में तैरने लगे हैं। यह सब तब हो रहा है जब सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग को लेकर हाल ही में सख्त रुख अपनाते हुए कहा था कि भीड़ को कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने संसद से इसे लेकर कानून बनाने को भी कहा है।

लेकिन एक चीज सरकार के मंत्रियों की तरफ से लगातार कही जा रही है कि सबसे बड़ी मॉब लिंचिंग कांग्रेस के समय में 1984 के सिख दंगों में हुई थी। ऐसी बातें व्हाट्सएप के गलियारों में भी खूब घूमती हैं। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भी इसी बात का जिक्र करते नजर आए।

केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अलवर की हालिया मॉब लिंचिंग पर कहा, ‘हम मॉब लिचिंग की निंदा करते हैं लेकिन यह कोई पहली घटना नहीं है। इसे आप इतिहास में भी देख सकते हैं। क्यों ऐसा होता है? किसे इसको खत्म करना चाहिए? 1984 में सिखों के साथ जो हुआ वह देश के इतिहास में मॉब लिचिंग की सबसे बड़ी घटना है।‘

यह बड़ा अजीब तर्क है। सांप्रदायिक दंगों का किस तरह राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर जवाबदेही से बचा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद खुले आम कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई जा रही है। केंद्रीय मंत्री मॉब लिंचिग के दोषियों को माला पहनाकर स्वागत करते दिख रहे हैं। सत्ता पक्ष के लोगों की तरफ से आश्वासन और कार्रवाई की बात कौन कहे, उल्टे दूसरों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जा रहा है।

विकास के तमाम दावों के बीच क्या एक लोकतंत्र के तौर पर हम यहां पहुंच चुके हैं कि कभी बच्चा चोरी के शक में, कभी गौतस्करी के शक में (ध्यान दें सिर्फ शक के आधार पर) किसी को भी मौत के घाट उतार दिया जाएगा। सरकारें भी अगर सुरक्षा की गारंटी देने की बजाय आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलेंगी और व्हाट्सएप पर चलने वाले हल्के तर्कों का इस्तेमाल करेंगी तो अपनी जान बचाने के लिए आम आदमी कहां जाएगा?

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