गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में एडल्टरी यानी विवाहेत्तर संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। शीर्ष कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 में एडल्टरी को अपराध बताने वाले प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया। आज इस मामले पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस इंदु मल्होत्रा, जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस आरएफ नरीमन की पांच जजों की बेंच ने एकमत से फैसला सुनाया।
केरल के मूल निवासी जोसेफ शाइन ने सबसे पहले उठाया था ये मुद्दा
अब तक आइपीसी की धारा 497 के तहत व्यभिचार के मामले में महज पुरुषों को ही आरोपी बनाया जाता रहा, जबकि महिला के लिए कोई सजा नहीं मुकर्रर थी। महिलाओं और पुरुषों को लेकर अलग मानक वाले इस केस को गलत मानते हुए सबसे पहले केरल के मूल निवासी जोसेफ शाइन ने इस मुद्दे को उठाया था।
‘पहली नजर में धारा 497 असंवैधानिक है’
10 अक्टूबर, 2017 को इन दिनों इटली में बतौर एनआरआइ रहने वाले जोसेफ शाइन ने कोर्ट में याचिका दायर कर आईपीसी की धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। याचिका में शाइन ने कहा कि पहली नजर में धारा 497 असंवैधानिक है क्योंकि वह पुरुषों और महिलाओं में भेदभाव करता है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है।
8 दिसंबर, 2017 को कोर्ट ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने पर हामी भरी। 5 जनवरी, 2018 को कोर्ट ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा। केंद्र सरकार ने 11 जुलाई, 2018 को कोर्ट में दलील दी कि धारा 497 को निरस्त करने से वैवाहित संस्था नष्ट हो जाएगी।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता केरल के एनआरआई जोसेफ शाइन के वकील कालीश्वरम राज ने कहा था कि वह आईपीसी की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 (2) को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।
आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, 158 साल पुराने कानून को तोड़ा
जोसेफ शाइन की इस याचिका पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 158 साल पुराने कानून को तोड़ दिया। भारतीय सामाजिक व्यवस्था के लिहाज से समलैंगिकता के बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया यह दूसरा बड़ा मामला है।
जानें जोसेफ ने क्या कहा था अपनी याचिका में
शाइन एक भारतीय हैं, जो इटली में रह रहे हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि आइपीसी की धारा 497 के तहत पुरुषों के साथ भेदभाव होता है। अगर यौन संबंध दोनों की सहमति से बनता है तो फिर महिलाओं को सजा से अलग रखना और पुरुषों को दंडित करने का क्या औचित्य है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ये हैं मुख्य बातें
- व्यभिचार कानून की वैधता (एडल्टरी अंडर सेक्शन 497) की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसे प्रावधान असंवैधानिक हैं, जो भेदभाव करता हो।
- सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने नौ अगस्त को व्यभिचार की धारा आईपीसी 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था। पीठ के सामने मसला उठा था कि आइपीसी की धारा 497 अंसवैधानिक है या नहीं, क्योंकि इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं।
- सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पति महिला का मालिक नहीं होता है। किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं करार दिया जा सकता।
- कोर्ट ने कहा कि चीन, जापान, ब्राजील में भी ये अपराध नहीं रहा। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया।
- चीफ जस्टिस ने कहा कि व्यभिचार कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है। हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है, मगर यह अपराध नहीं हो सकता।
अब तक क्या था कानून
आईपीसी की धारा 497 के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले तक अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी और शादीशुदा महिला के साथ सहमति से संबंध बनाता है, तो पुरुष के खिलाफ एडल्टरी का केस दर्ज हो सकता था, लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ केस नहीं हो सकता था।
आईपीसी की धारा 497 कहती थी कि जो भी कोई ऐसी महिला के साथ, जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह विश्वास पूर्वक जानता है, बिना उसके पति की सहमति या उपेक्षा के शारीरिक संबंध बनाता है जो तो बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता, वह व्यभिचार के अपराध का दोषी होगा और उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे पांच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या आर्थिक दंड या दोनों से दंडित किया जाएगा। ऐसे मामले में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दण्डनीय नहीं होगी।