भारत में 2015 तक छह साल के दौरान उत्तरी राज्यों में मानव हत्याओं में वृद्धि हुई है। हालांकि इस दौरान पूरे देश में हत्याएं दस फीसदी कम हुई हैं। यूएन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) की मानव हत्या 2019 पर प्रकाशित ग्लोबल स्टडी में यह जानकारी दी गई है। रिपोर्ट यह भी खुलासा हुआ है कि भारत में इस दौरान पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाओं की हत्याएं की गई हैं।
हत्याओं में क्षेत्रीय स्तर पर दिखा अलग ट्रेंड
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2016 के दौरान हत्याओं के कुल शिकार व्यक्तियों में पुरुषों का अनुपात 20 फीसदी से कम था। 2009 से 2015 के दौरान भारत में हत्याओं का अनुपात दस फीसदी कम हो गया। प्रति एक लाख आबादी पर हत्याओं का अनुपात 3.8 था जो 2015 में घटकर 3.4 रह गया। हालांकि इसी अवधि में क्षेत्रीय स्तर पर अलग ट्रेंड दिखाई दिया है। देश के कुछ उत्तरी राज्यों में हत्याओं की दर बढ़ी है। जबकि आंध्र प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में हत्याओं में गिरावट आई है।
मुंबई में हत्याएं एशिया में सबसे कम
स्टडी से पता चला है कि 1.80 करोड़ आबादी वाले मुंबई में हत्याओं की दर एशिया के महानगरों में सबसे कम महज 0.9 की रही। दक्षिण एशिया में हत्याओं की दर घटने का रुख दिखाई दिया है। भारत और पाकिस्तान में भी यही ट्रेंड रहा।
महिलाओं की हत्या का मुख्य कारण दहेज
रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं की हत्याओं के पीछे सबसे बड़ी वजह दहेज से जुड़े अपराध रहे। देश में महिलाओं की कुल हत्याओं में दहेज से जुड़ी वारदातों का अनुपात करीब 40-50 फीसदी रहा। 1999 से 2016 के दौरान यही ट्रेंड बना हुआ है। सरकार द्वारा दहेज के लेनदेन पर प्रतिबंध लगाने और इसे अपराध घोषित किए जाने के बावजूद इसके कारण हत्याएं हो रही हैं। पूरे देश में दहेज के कारण हत्याएं बदस्तूर जारी हैं। महिलाओं की हत्याओं में यही सबसे बड़ा कारण है।
अंधविश्वास अभी भी देश में अभिशाप
जादू-टोने के आरोप भी देश में महिलाओं की हत्याओं के मुख्य कारणों में से एक है। भारत में हत्याओं के आंकड़ों से पता चलता है कि जादू-टोने का आरोपों के कारण भी हत्याएं हो रही हैं। इनका अनुपात कम है लेकिन इस अंधविश्वास के कारण हिंसा हो रही है। हालांकि हत्याओं के आंकड़े लिंग आधार पर विभाजित नहीं हैं लेकिन इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि जादू-टोने के कारण मरने वालों में महिलाओं का अनुपात काफी ज्यादा है।
बेटे की चाहत में बेटियों की बेकद्री
रिपोर्ट के अनुसार भारतीय समाज में बेटे की चाहत अभी भी बरकरार है। इसके कारण आशंका रहती है कि माता-पिता नवजात बच्चियों की बेकद्री करने लगें। कई बार तो बच्चियों की हत्या किए जाने का भी अंदेशा होता है।