उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से हाल ही में निजी विश्वविद्यालयों के लिए लाए गए अंब्रेला एक्ट का विरोध शुरू हो गया है। इस बारे में निजी विश्वविद्यालयों का मानना है कि सरकार निजी विश्वविद्यालयों की राह में रोड़ा अटकाने का काम कर रही है। इससे गुणवत्ता प्रभावित होगी और अनावश्यक निजी विश्वविद्यालयों के कार्यों में सरकारी अधिकारियों का हस्तक्षेप बढ़ेगा। उनका तर्क है कि अगर किसी निजी विश्वविद्यालय के खिलाफ शिकायत है तो सरकार कार्यवाही करे, इसके लिए सरकार के पास पर्याप्त अधिकार हैं। अलग से एक्ट लाने की जरूरत नहीं है। अंब्रेला एक्ट के कारण गधे और घोड़े को एक ही तराजू में तोलने की बात है।
निजी विश्वविद्यालयों की तमाम शिकायतों को संज्ञान में लेकर सरकार की ओर से अंब्रेला एक्ट की कार्यवाही शुरू होने के बाद से ही यूपी स्टेट प्राईवेट यूनिवर्सिटी एसोसिएशन मुखर हो गई थी। इस बाबत सरकार की ओर से एक्ट को लेकर निजी विश्वविद्यालयों से आपत्तियां भी मांगी गई थीं, जिन पर विचार करने के बाद सरकार की ओर से मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में एक्ट पर मुहर लगाई गई है। अभी एक्ट लागू नहीं हुआ है, लेकिन विधानसभा और विधान परिषद से पास होने के बाद जल्द लागू होने की संभावना है। नए एक्ट को लेकर निजी विश्वविद्यालय सशंकित हैं। उनका कहना है कि ब्यूरोक्रेट का हस्तक्षेप बढ़ने से दिक्कतें बढ़ जाती हैं। ऐसे में तब और समस्या आती है जब सरकार की ओर से किसी प्रकार का सहयोग ना हो। ये एक्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजी विश्वविद्यालयों में सरकार का कोई आदमी नहीं होना चाहिए। फिलहाल, इस मुद्दे पर यूपी स्टेट प्राईवेट यूनिवर्सिटी एसोसिएशन की जल्द होने वाली बैठक में आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा।
यूपी स्टेट प्राईवेट यूनिवर्सिटी एसोसिएशन के ज्वाइंट प्रेसिडेंट और शारदा यूनिवर्सिटी के चांसलर पीके गुप्ता का कहना है कि एक यूनिवर्सिटी को तैयार होने में 15 से 20 वर्षों का समय लगता है। आज भी यूपी के बच्चों को दक्षिण भारत में पढ़ने के लिए जाना पड़ता है। विश्व में जितनी नामी यूनिवर्सिटी हैं, वह स्वतंत्र हैं। अपने देश में भी जितने आईआईटी और आईआईएम हैं, वह भी स्वतंत्र हैं, तभी आज उनका नाम है। यूपी सरकार जो एक्ट लाई है, उसमें जो स्वतंत्रता पहले थी, वह अब नहीं है।
वह कहते हैं कि सरकार का हस्तक्षेप होने पर स्वतंत्रता में दिक्कत आती है। आल इंडिया डीम्ड यूनिवर्सिटी और दूसरे प्रदेशों की अन्य यूनिवर्सिटी को जो स्वतंत्रता मिली है और जिस तरह से वह काम करते हैं, उसको लेबल क्लीन नहीं किया, तो समस्या आती है। आज कोई भी बहुत बड़ी अच्छी यूनिवर्सिटी नहीं बन पाई है। सरकार का जब भी कोई अधिकारी बैठता है तो शोषण होता है। सरकार ईमानदार है, मंत्री ईमानदार हैं, लेकिन अधिकारी कर्मचारी तो वही हैं। उनका कहना है कि खराब यूनिवर्सिटी के लिए तो ठीक है, लेकिन अच्छा काम करने वाले भी सरकार की नजर में गधे, घोड़े बराबर हो जाते हैं। अगर यूपी को ग्लोबल मैप पर लेकर आना है तो इस एक्ट के कारण दिक्कतें आ सकती हैं। हालांकि इस बारे में डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा का कहना है कि सारे आरोप बेबुनियाद हैं। निजी विश्वविद्यालय एसोसिएशन ने खुद हमें अप्रिशिएशन पत्र दिया है। अगर किसी का व्यक्तिगत रूप से कोई मामला है तो वह विषय अलग है।