वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे के बाद से सियासत गरमाई हुई है। गुरुवार को आरएसएस प्रमुख ने ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर बोलते हुए कहा, "...हमें रोज़ एक नया मामला नहीं उठाना चाहिए। हम विवाद क्यों बढ़ाएँ? हमारी #ज्ञानवापी के प्रति भक्ति है और हम उसके अनुसार कुछ कर रहे हैं, यह ठीक है। लेकिन हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों करें? ..."
नागपुर में आरएसएस प्रमुख ने कहा कि ज्ञानवापी मामला चल रहा है। इतिहास नहीं बदल सकते। इसे न आज के हिंदुओं ने बनाया और न ही आज के मुसलमानों ने। यह उस समय हुआ था। इस्लाम हमलावरों के जरिए बाहर से आया था। हमलों में भारत की आजादी चाहने वालों का मनोबल गिराने के लिए देवस्थानों को तोड़ा गया।
उन्होंने कहा कि वह भी एक इबादत है, बाहर से आई है तो ठीक है लेकिन जिन मुसलमानों ने इसे अपनाया है उनका बाहर से कोई संबंध नहीं है। यह समझना चाहिए। अगर वे अपनी पूजा पद्धति को जारी रखना चाहते हैं, तो ठीक है। मोहन भागवत ने कहा कि हमें किसी भी प्रकार की पूजा का कोई विरोध नहीं है, हम उन सभी को स्वीकार करते हैं और सभी को पवित्र मानते हैं। उन्होंने पूजा का वह रूप अपनाया हो सकता है लेकिन वे हमारे ऋषियों, मुनियों, क्षत्रियों के वंशज हैं। हम एक ही पूर्वजों के वंशज हैं।
रूस यूक्रेन युद्ध का जिक्र करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि नीति न हो तो सत्ता विकार बन जाती है। हम देख सकते हैं कि अभी रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है। इसका विरोध किया जा रहा है लेकिन कोई भी यूक्रेन जाने और रूस को रोकने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि रूस के पास शक्ति है और यह धमकी देता है।
उऩ्होंने कहा कि यदि भारतीय पर्याप्त रूप से शक्तिशाली होते, तो युद्ध को रोक देते लेकिन ऐसा नहीं कर सकते - इसकी शक्ति अभी भी बढ़ रही है, लेकिन यह पूर्ण नहीं है। चीन उन्हें क्यों नहीं रोकता? क्योंकि उसे इस युद्ध में कुछ दिखाई दे सकता है। इस युद्ध ने हम जैसे देशों के लिए सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों को बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि हमें अपने प्रयासों को और मजबूत करना होगा, और हमें शक्तिशाली बनना होगा। अगर भारत के हाथ में इतनी ताकत होती तो दुनिया के सामने ऐसी घटना नहीं आती।
मोहन भागवत ने कहा कि क्या हम 'विश्वविजेता' बनना चाहते हैं? नहीं, हमारी ऐसी कोई आकांक्षा नहीं है। हमें किसी को जीतना नहीं है। हमें सबको जोड़ना है। संघ भी सबको जोड़ने का काम करता है जीतने के लिए नहीं। भारत किसी को जीतने के लिए नहीं बल्कि सभी को जोड़ने के लिए अस्तित्व में है।