सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिये समलैंगिक विवाह, गोद लेना और किराये की कोख जैसे अधिकारों की मांग के लिये दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है।
याचिका में एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिये समलैंगिक विवाह, गोद लेना और किराये की कोख जैसे नागरिक अधिकार देने का अनुरोध किया गया था। पीठ ने कहा कि यह पुनर्विचार याचिका 29 अक्टूबर, 2018 के उस आदेश के खिलाफ दायर की गयी है जिसमें नैयर की याचिका खारिज की गयी थी। हमने पुनर्विचार याचिका पर उसकी मेरिट पर विचार किया। हमारी राय में इनमें 29 अक्टूबर के आदेश पर पुनर्विचार का कोई मामला नहीं बनता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर, 2018 को तुषार नैयर की एक नयी याचिका खारिज कर दी थी। इस याचिका में एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों से संबंधित मुद्दे उठाते हुये कहा गया था कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ पहले ही समलैंगिकता के मामले में विचार कर चुकी है।
377 पर दिया था फैसला
कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुये कहा था कि नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत सरकार मामले में 6 सितंबर, 2018 के कोर्ट के फैसले के बाद हम इस पर विचार के इच्छुक नहीं है। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि परस्पर सहमति से वयस्कों के बीच एकांत में स्थापित होने वाले अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध नहीं है. इसके साथ ही कोर्ट ने परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन सबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी में रखने संबंधी आईपीसी की धारा 377 का प्रावधान निरस्त कर दिया था।