भारतीय सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने और कमांड पोस्ट में उनकी तैनाती के संबंध में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सेना में सभी सेवारत एसएससी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के अपने फैसले को लागू करने के लिए केंद्र को एक और महीना का समय दिया।
जस्टिस डी वाइ चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्र को कोर्ट के फैसले में दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना होगा। कोर्ट का यह निर्देश केंद्र द्वारा दायर एक आवेदन पर आया, जिसमें कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी का हवाला देते हुए फैसले को लागू करने के लिए छह महीने का समय मांगा गया था।
केंद्र ने पीठ को बताया कि इस मुद्दे पर निर्णय अंतिम चरण में है और केवल औपचारिक आदेश जारी किए जाने बाकी हैं। केंद्र ने कहा कि अदालत के फैसले का अनुपालन पत्र और भावना से किया जाएगा।
गौरतलब है कि 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर सेना में स्थायी कमीशन देने को कहा था, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं। केंद्र ने इस दौरान अपने दलील में महिलाओं को कमांड पोस्ट न देने के पीछे शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मानदंडों का हवाला दिया था।
महिलाओं को लेकर सेना में सच्ची समानता लानी होगी
कोर्ट ने इसे लेकर कहा था कि महिलाओं को लेकर मानसिकता बदलनी चाहिए और सेना में सच्ची समानता लानी होगी। पुरुषों के साथ महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं। कोर्ट ने कहा था कि शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के तहत 14 साल से कम या उससे अधिक सेवा दे चुकी महिला अफसरों को स्थायी कमीशन का मौका दिया जाए।
महिलाओं को इस पोस्ट पर आने से रोकना समानता के खिलाफ
केंद्र ने इस दौरान तर्क दिया था कि महिलाओं को सेना में 'कमांड पोस्ट' की जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती। गौरतलब है कि कमांड पोस्ट का मतलब किसी सैन्य टुकड़ी की कमान संभालना और उसका नेतृत्व करना होता है। कोर्ट ने इसे लेकर कहा था कि महिलाओं को इस पोस्ट पर आने से रोकना समानता के खिलाफ है। कोर्ट ने आगे कहा कि यह तर्क अस्वीकार्य और परेशान करने जैसा है। इसस पहले मार्च 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट ने शार्ट सर्विस कमीशन के तहत महिलाओं सैन्य अधिकारियों की 14 साल की सर्विस पूरी होने पर पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था।