आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट अभी कोई आदेश देने के पक्ष में नहीं है। कोर्ट इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजने संबंधी याचिकाओं पर अब 28 मार्च को सुनवाई करेगा।
संविधान में संशोधन करके सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण दिया है, जिसे अदालत में चुनौती दी गई है। कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है, 'सरकार ने बिना जरूरी आंकड़े जुटाए कानून बनाया, आर्थिक आधार पर आरक्षण असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को 50 फीसदी तक सीमित रखने का फैसला दिया था, उसका भी उल्लंघन किया गया।'
केंद्र और राज्य सरकारों से मांगा था जवाब
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांग चुका है। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने इस कानून पर रोक लगाने या मामला बड़ी बेंच को भेजने का आदेश देने से इनकार करते हुए कहा कि अगली तारीख को इस पर विचार किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ 'यूथ फॉर इक्वलिटी' की एक याचिका पर केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा था।
बिल में सशोधन कर लागू किया गया आरक्षण
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने को मंजूरी दी थी, जिसके बाद संविधान में संशोधन कर लोकसभा और राज्यसभा में बिल को पारित कर इसे कानून का रूप दिया गया था।
उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, असम, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र सहित कई राज्य दस फीसदी की आरक्षण व्यवस्था को लागू कर चुके हैं।