सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन की 1994 के कथित जासूसी मामले में गिरफ्तारी को गैर जरूरी, उत्पीड़क और मानसिक क्रूरता करार दिया है तथा मामले में केरल के पुलिस अफसरों की भूमिका के जांच के आदेश दिए हैं।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी वाई चंदचूड़ और जस्टिस ए एम खानविलकर की तीन सदस्यीय पीठ ने मानसिक क्रूरता के लिए 76 वर्षीय नारयणन को 50 लाख रूपये का मुआवजा देने को कहा है। कोर्ट ने जासूसी मामले में नारायणन को आरोपित किए जाने की जांच के लिए पूर्व जज डी के जैन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पैनल गठित किया है।
केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ की थी अपील
नारायणन ने केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। केरल हाई कोर्ट ने एसआईटी टीम के सीबी मैथ्यु और दो रिटायर्ड पुलिस अधीक्षक के के जोसू और एस विजयन के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत से इंकार कर दिया था। इन अफसरों को सीबीआई ने नंबी नारायण की गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार बताया था। मैथ्यु बाद में केरल के डीजीपी बन गए थे।
क्या है इसरो जासूसी कांड
इसरो जासूसी कांड साल 1994 का वह मामला है। इसरो उस समय क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन पर काम कर रहा था और वह उसे बनाने के बिल्कुल करीब था। तभी उसकी तकनीक के लीक होने की चर्चा उड़ गई और उसकी केरल पुलिस ने एसआइटी जांच शुरू करा दी। इसी जांच में के दौरान क्रायोजेनिक इंजन विभाग के प्रमुख नंबी नारायणन गिरफ्तार कर लिए गए और अनुसंधान का कार्य पटरी से उतर गया।