नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन शिवसेना, नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस में फिर दरार के संकेत दिखने लगे हैं। कांग्रेस और उसकी सहयोगी एनसीपी जहां लगातार सीएए का विरोध करते हुए इसे संविधान विरोधी बता रही है। वहीं, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सीएए का समर्थन किया है। जिसे लेकर एक बार फिर शिवसेना और एनसीपी आमने आ गए हैं। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर उद्धव ठाकरे को समझाने की कोशिश करेंगे।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को कहा कि सीएए के लागू होने से किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, 'सीएए और एनआरसी दोनों अलग-अलग हैं, एनपीआर अलग है। किसी को भी सीएए लागू होने से चिंता करने की जरूरत नहीं है। इसमें एनआरसी नहीं है और इसे राज्य में लागू नहीं किया जाएगा।" उन्होंने कहा कि एनपीआर राज्य में लागू होगा क्योंकि इसमें कुछ भी विवादास्पद नहीं है।
जल्द ही चर्चा करेंगे महागठबंधन की पार्टियों सेः पवार
इस पर एनसीपी प्रमुख पवार ने कहा, 'यह उनका विचार है। वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं, उनके अपने विचार हैं। हां, महाराष्ट्र में हम एक गठबंधन सरकार में हैं और कुछ मुद्दों पर पार्टियों की राय और विचार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन जहां तक सीएए की बात है, हम इस पर बैठ कर चर्चा कर सकते हैं।' उन्होंने कहा, "महागठबंधन की तीनों पार्टियां जल्द ही इस पर विस्तृत चर्चा करेंगी और हम इसके बारे में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को समझाने का प्रयास करेंगे।"
पवार ने आगे कहा कि गठबंधन सरकार में मतभेद हो सकते हैं। उन्होंने कहा, "हमारे पास यूपीए शासन के दौरान केंद्र में एक गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में 29 पार्टियां थीं। असल में, हमारे साथ वामपंथी दल भी थे, जिनके पास हमेशा अलग-अलग विचार थे, लेकिन उनके साथ सरकार चलाने में हम कामयाब रहे।”
अन्य विपक्षी दलों ने भी एनपीआर को बताया है पहला कदम
अन्य विपक्षी दलों ने एनपीआर को एनआरसी के कार्यान्वयन के लिए पहला कदम बताया है और अधिकांश कांग्रेस शासित राज्यों ने इस पर रोक लगा दी है। हालांकि, शिवसेना ने एनपीआर को जनगणना की तरह ही करार दिया है। शुरू में शिवसेना ने लोकसभा में सीएए का समर्थन किया और उसके पक्ष में मतदान किया। लेकिन बाद में राज्यसभा में यह कहते हुए इसका विरोध किया कि उनकी चिंताओं को दूर नहीं किया गया और वोटिंग के दौरान वॉकआउट किया। इसके तुरंत बाद ठाकरे ने केंद्र को आड़े हाथों लेते हुए कहा, "मैं जानना चाहूंगा कि अन्य देशों के हिंदू कैसे और कहां बसने वाले हैं। मुझे नहीं लगता कि आपके पास (केंद्र) इसके लिए कोई योजना है।"
एल्गार परिषद मामले में भी असहमति दिखी
शिवसेना, जिसने हाल ही में कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ अपने 35 साल पुराने संबंधों को तोड़ दिया, एल्गर परिषद मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) में स्थानांतरित करने पर भी असहमति दिखाई। ठाकरे ने मंगलवार को ट्वीट कर कहा कि उनकी सरकार कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में केंद्र को जांच नहीं सौंपेगी और दलितों के साथ कोई अन्याय नहीं होगा।
उनकी टिप्पणी के बाद पवार ने एल्गर परिषद मामला केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंपने के सरकार के फैसले की खुलकर आलोचना की। इससे पहले पवार ने कहा था, "मामले को एनआईए को सौंपना केंद्र के लिए सही नहीं था। लेकिन राज्य सरकार के लिए इस मामले के हस्तांतरण का समर्थन करना और भी गलत था।"