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स्पेशल रिपोर्टः कोरोना की लड़ाई में नाकाफी दिखती है सरकार की तैयारी

“देश में 15 मई तक संक्रमण बढ़ने का बड़ा खतरा, चुनौती से निपटने की सरकारी तैयारियों पर कई सवाल” यकीनन...
स्पेशल रिपोर्टः कोरोना की लड़ाई में नाकाफी दिखती है सरकार की तैयारी

“देश में 15 मई तक संक्रमण बढ़ने का बड़ा खतरा, चुनौती से निपटने की सरकारी तैयारियों पर कई सवाल”

यकीनन कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की 27 मार्च को राज्यों को लिखी चिट्ठी बड़े संकट का इशारा करती है, “पिछले दो महीने में करीब 15 लाख यात्री विदेश से भारत में आए हैं। इस दौरान जिन लोगों की कोविड-19 की जांच हुई है, उसमें और आए लोगों में भारी अंतर है। इसलिए फिर से सभी की पहचान कर जांच कराई जाए, नहीं तो गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।” लेकिन आइसीएमआर का रुख इससे उलट लगता है, वह अभी बड़े पैमाने पर जांच के पक्ष  में नहीं है। सरकार में इस दुविधा और विरोधाभास के बावजूद यह अंदेशा बदस्तूर कायम है कि देश में कोरोना का संक्रमण मौजूदा आंकड़ों की तुलना में कहीं ज्यादा हो सकता है। ऐसा होने की बड़ी वजह भारत की कोविड-19 संदिग्धों की जांच प्रक्रिया ही है।  दुनिया की तुलना में अभी भी भारत में आबादी की तुलना में काफी कम लोगों की जांच हो पाई है। 29 मार्च तक देश में 38,442 लोगों की ही जांच की गई है जबकि अमेरिका ने 5.5 लाख, दक्षिण कोरिया ने 4.5 लाख लोगों की जांच कराई है।

बढ़ते खतरे का ही परिणाम है कि 30 जनवरी को पहले संक्रमण का मामला आने के 54 दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 24 फरवरी की आधी रात से पूरे देश में लॉकडाउन का ऐलान करना पड़ा। इस बीच सरकार ने विदेश से लोगों की घर वापसी से लेकर ट्रेनों, बसों, मेट्रो, हवाई सेवाओं पर प्रतिबंध लगाकर संक्रमण रोकने की कोशिश की। हालांकि बात बनती न देखकर सरकार को लॉकडाउन का सहारा लेना पड़ा। लेकिन इस ऐलान से देश में नया संकट खड़ा हो गया है।

संकट जान बचाने से लेकर रोजी-रोटी तक का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह रहे हैं कि लॉकडाउन ही हमको बचा सकता है। इसलिए जान जोखिम में मत डालिए। सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री किस खतरे को देख रहे हैं और उसकी वजह से हो रही परेशानियों पर माफी भी मांग रहे है लेकिन फिर भी सोशल डिस्टेंसिंग की अपील कर रहे हैं। असल में उनके डर का कारण कोविड-19 से अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन में होने वाली मौतें हैं। भारत की तुलना में कहीं ज्यादा साधन संपन्न होने के बावजूद ये देश कोरोना को मात नहीं दे पा रहे हैं। दुनिया में (1 अप्रैल सुबह 8 बजे तक) 8,60,696 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और 42,352 लोगों की मौत हो गई है। अकेले इटली में 12,482, स्पेन में 9,053 चीन में 3,312, ईरान में 3,036, फ्रांस में 3,523 और अमेरिका में 4,059 लोगों की मौत हो चुकी है। उसके मुकाबले भारत में इस अवधि तक 1,466लोग संक्रमित हो चुके हैं, और 38 लोगों की मौत हो चुकी है।

इस नजर से फौरी तौर पर भारत की स्थिति दूसरे देशों की तुलना में बेहतर नजर आती है। अमेरिका, चीन, इटली सहित देशों में जब 1,000 लोग संक्रमित हुए थे, उस वक्त वहां भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा मौतें हुई थीं। मसलन, अमेरिका में 36, चीन में 32, इटली में 28, कोरिया में 11 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन जैसे ही इन देशों में संक्रमण की संख्या बढ़ी वैसे ही मौतों का सिलसिला भी बढ़ता गया। आज इटली में प्रति 1,000 पर 110 लोगों की मौत हो रही है, चीन में यह 40 के करीब है। यही ट्रेंड भारत के लिए खतरनाक है। दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका भी इस स्टेज में बेबस हो गया है। खुद राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने कहा है, “अगर हमने सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन नहीं की तो अगले दो हफ्ते में एक से दो लाख लोगों की जान जा सकती है।” खतरा किस तरह भारत के ऊपर मंडरा रहा है, उसे इस कवायद से भी समझा जा सकता है कि देश भर में 16 ऐसे हॉटस्पॉट की पहचान हुई है, जहां वायरस के संक्रमण तेजी से हो रहा है। इसके तहत दिल्ली के दिलशाद गार्डन, निजामुद्दीन पश्चिम, महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे, गुजरात के अहमदाबाद, राजस्थान के भीलवाड़ा, जयपुर, उत्तर प्रदेश के नोएडा, मेरठ और केरल के पत्तनमिट्टा,कासरगोड़, कर्नाटक के बेंगलूरू, तमिलनाडु के इरोड, मध्य प्रदेश के इंदौर, अंडमान और िनकोबार द्वीप पर खास नजर रखी जा रही है। राजस्थान के भीलवाड़ा में तेजी से बढ़ते संक्रमण को देखते हुए 3 अप्रैल से 13 अप्रैल तक सबसे सख्त लॉकडाउन किया जा रहा है। इस दौरान वहां सब कुछ बंद रहेगा। जिले में 26 लोग संक्रमित पाए गए हैं। इंदौर में भी संक्रमितों की संख्या 69 तक पहुंच गई है। इन दोनों शहरों में कम्युनिटी संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है।

भारत पर ऐसे ही खतरे को मिशिगन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक की रिपोर्ट बयान करती है। रिपोर्ट के अनुसार, 15 मई तक भारत में 58,643 से लेकर 9.15 लाख तक लोग संक्रमित हो सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार 19 मार्च तक भारत, अमेरिका के संक्रमण दर को देखते हुए 13 दिन पीछे है। ऐसे में आने वाले दिनों में भारत में भी तेजी से संक्रमण बढ़ सकता है। भारत में अमेरिका और इटली की तुलना में संक्रमण दर कम होने की एक वजह लोगों की कोरोना टेस्टिंग कम होना है। मिशिगन यूनिवर्सिटी जैसी ही आशंका इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च इन वॉयरोलॉजी के पूर्व प्रमुख डॉ. टी.जैकब जॉन जताते हैं कि जैसे ही लॉकडाउन खत्म होगा भारत में तेजी से संक्रमण बढ़ने की आशंका है और दुनिया भर के ट्रेंड को देखते हुए मई में प्रकोप सबसे ज्यादा दिखेगा।

अगर मिशिगन यूनिवर्सिटी और डॉ. जैकब जॉन की आशंका सही साबित होती है तो क्या भारत उसके लिए तैयार है? मेदांता के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. नरेश त्रेहन कहते हैं, “नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक देश में केवल 23,582 सरकारी अस्पताल है जिसमें लगभग 7,10,761 बेड हैं। भारत की 70 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। लिहाजा, आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण फैलता है तो काबू पाना मुश्किल हो सकता है।” कोविड-19 के आगे लाचार हो चुके अमेरिका, चीन, यूरोप की स्थिति स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में हमसे कहीं बेहतर है। दक्षिण कोरिया में प्रति 1000 आबादी पर 11.5 बेड, फ्रांस में 6.5 बेड, चीन में 3.4, इटली में 2.9, अमेरिका में 2.8 बेड हैं। एक और आंकड़ा भारत की स्वास्थ्य सुविधाओं पर सवाल उठाता है। किसी भी महामारी से लड़ने की क्षमता का आकलन करने के लिए बनाए गए ग्लोबल स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2019 में भारत 46.5 अंकों के साथ 57वें नंबर पर है। इसकी वजह साफ है कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी खर्च जीडीपी के मुकाबले केवल 0.9 फीसदी है, जबकि अमेरिका में यह 14.6 फीसदी, जर्मनी का 9.5 फीसदी, इटली का 6.5 फीसदी और चीन का 2.9 फीसदी है।

इसी तरह अगर भारत में अमेरिका, इटली जैसा संक्रमण बढ़ता है तो बड़े पैमाने पर वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी। अभी भारत में एक अनुमान के अनुसार करीब 40 हजार वेंटिलेटर है, जो संक्रमण की आशंका को देखते हुए बेहद कम हैं। ग्लोबल डाटा फर्म की रिपोर्ट के अनुसार, “दुनिया में इस समय 8.80 लाख वेंटिलेटर की कमी है। इसमें से अमेरिका को 75 हजार (हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अगले 100 दिन में एक लाख वेंटिलेटर की जरूरत बताई है) जबकि फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन और ब्रिटेन को 74 हजार वेंटिलेटर की जरूरत है।” इसी खतरे को देखते हुए भारत सरकार ने करीब 14 हजार वेंटिलेटर कोविड-19 मरीज के लिए सुरक्षित किए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, एजीवीए हेल्थकेयर कंपनी को 10 हजार वेंटिलेटर और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को प्राइवेट कंपनियों के साथ साझेदारी कर अगले दो महीने में 30 हजार वेंटिलेटर की मैन्युफैक्चरिंग करने को कहा है। हालांकि एक अनुमान के अनुसार करीब एक लाख वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में साफ है कि हम विकट परिस्थितियों के लिए फिलहाल तैयार नहीं हैं। इसी से ऑटो कंपनियों को भी वेंटिलेटर बनाने की सलाह दी गई है।

मिशिगन यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट एक और खतरे की ओर इशारा करती है। उसका कहना है, “भारत में प्रति एक लाख लोगों पर 70 बेड हैं। ऐसे में अगर कोविड-19 का संक्रमण तेजी से फैलता है तो इसमें से 25 फीसदी बेड ही कोविड-19 के मरीजों को मिल पाएंगे। उसमें भी 5-10 फीसदी बेड आइसीयू के लिए चाहिए होंगे, जो भारत की मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर को देखते हुए बेहद कम है। उनका कहना है कि 15 मई तक अगर 22 लाख लोग संक्रमित होते हैं तो 70 की जगह 161 बेड की जरूरत होगी। हालांकि सरकार बड़े पैमाने पर लॉकडाउन और रोकथाम के दूसरे सख्त तरीके अपनाकर संक्रमण की संख्या 13,800 पर रोक सकती है। ऐसी स्थिति में प्रति एक लाख पर कोविड मरीजों के लिए बेड की मांग केवल एक रह जाएगी। ”

पल्मोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत गुप्ता कहते हैं कि हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर हमारी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में दुनिया भर से जो आंकड़े आ रहे हैं, उसे देखते हुए सबसे ज्यादा रिस्क में 60 साल से ज्यादा उम्र वाले हैं। इसके तहत हाई ब्लडप्रेशर, दिल, डायबिटीज और अस्थमा के मरीजों पर ज्यादा खतरा है। अमेरिकी नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन ब्रूकिंग्स के अनुसार चीन में कोविड-19 से मरने वालों में 50 फीसदी लोग 70 साल की उम्र से ज्यादा थे, इसी तरह इटली में कोविड-19 से मरने वालों की औसत उम्र 78 साल है। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि ज्यादा जोखिम वालों की संख्या कहीं ज्यादा है। मिशिगन यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट बताती है कि करीब 9.25 करोड़ आबादी की उम्र 65 साल से ज्यादा है। इसी तरह 29 करोड़ लोग ब्लडप्रेशर के शिकार हैं, करीब 8 करोड़ लोग हृदय रोग से पीड़ित हैं। और 12.8 करोड़ लोग डायबिटीज और 4.5 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। संक्रमण के लिए ये सबसे ज्यादा जोखिम में हैं।

इन खतरों के बीच भारत में कोरोनावायरस की टेस्टिंग की प्रक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि 30 मार्च को दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में 200 कोरोना के संदिग्ध मिले हैं। ये लोग तबलीगी जमात के मरकज में एक मार्च से 15 मार्च के बीच आए थे। मरकज में करीब 5,000 लोग शामिल हुए थे। इसमें से करीब 2,100 लोग इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड सहित दूसरे देशों से आए थे। साफ है कि करीब डेढ़ महीने बाद अब जानकारी मिली है कि कई लोग कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं। 31 मार्च तक करीब 500 से ज्यादा लोगों में कोरोना संक्रमण के लक्षण को देखते हुए उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है। इसके अलावा सरकार को इस बात की आशंका है कि 20 राज्यों में 1,000 से ज्यादा लोग चले गए हैं। ऐसे में इनके जरिए देश के दूसरे हिस्से में संक्रमण फैलने की आशंका बढ़ गई है। इस खुलासे से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि विदेश से आने वालों की जांच फुलप्रूफ नहीं रही है।  हालांकि अब प्रशासन हरकत में आया है। उसने लॉकडाउन में धार्मिक सम्मेलन करने पर आयोजकों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर ली है। हालांकि आयोजकों का कहना है कि जब लॉकडाउन से पहले काफी संख्या में लोगों को भेजा गया लेकिन जब लॉकडाउन हो गया तो लोगों को भेजना मुश्किल हो गया।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के आर.गंगाखेडकर के अनुसार, “29 मार्च तक देश में 38,442 लोगों की कोविड-19 की जांच की गई है।” यह दूसरे देशों की तुलना में बेहद कम है। अमेरिका में जहां  5.5 लाख लोगों की जांच की गई है, वहीं दक्षिण कोरिया में 4.5 लाख की जांच हुई है। भारत में अभी भी हर हफ्ते 60-70 हजार टेस्ट कराने की ही क्षमता है। इसकी एक बड़ी वजह टेस्टिंग किट की कमी होना है। मार्च में सरकार ने करीब 10 लाख टेस्टिंग किट लेने का फैसला किया है।  टेस्टिंग पर सवाल उठाते हुए डॉ.जॉन कहते हैं, “टेस्टिंग के दो चरण होते हैं, पहले चरण में आप पब्लिक हेल्थ टेस्टिंग करते हैं, जिसमें संक्रमित व्यक्ति की पहचान कर, दूसरे लोगों को बचाया जाता है। भारत ने यह समय कम लोगों की टेस्टिंग कर गंवा दिया है। अब एक ही चारा है कि हम हेल्थ केयर टेस्टिंग करें। यानी जिस भी व्यक्ति में संक्रमण की आशंका है, उसकी पहचान कर, तुरंत टेस्टिंग की जाए। तब हम बड़े पैमाने पर होने वाले संक्रमण को रोक सकते हैं।”

इस समय भारत के लिए चिंता का विषय है कि क्या हम कम्युनिटी संक्रमण के स्तर पर पहुंच गए हैं? स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा है, “अभी भारत में इसके कोई सबूत नहीं हैं। ”

हालांकि सरकार के इस रुख पर डॉ जॉन सवाल करते हुए कहते हैं, “आंख मूंद लेने से सच नहीं बदल सकता है। 15 लाख लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है तो फिर क्यों मामले बढ़ रहे हैं। जाहिर है, संक्रमण बढ़ रहा है। जॉन कहते है सरकार को घनी आबादी वाले इलाकों में सख्त निगरानी रखनी चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो संक्रमण को रोकना बहुत मुश्किल होगा। इसके अलावा सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को सेंट्रल कमांड सिस्टम के तहत लाना चाहिए। ऐसा होता है तो गंभीर परिस्थितियों में बेहतर समन्वय हो सकेगा।”

सीमित संसाधन और बढ़ते खतरे को देखते हुए 24 मार्च से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिनों के लॉकडाउन का ऐलान कर दिया है। इसकी वजह से जहां आर्थिक गतिविधियां रुक गई हैं, वहीं लाखों मजदूरों को भूखे-प्यासे अपने परिवार के साथ पलायन करना पड़ा है। अकेले उत्तर प्रदेश में 6-7 लाख लोग दूसरे राज्यों से पहुंचे हैं। इस पलायन से कम्युनिटी संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। सरकार के अचानक लॉकडाउन करने के फैसले पर भी सवाल उठ रहे हैं। टाटा ट्रस्ट के इंडिया हेल्थ फंड के प्रोग्राम मैनेजर हिमांशु शर्मा के अनुसार, “लॉकडाउन से न केवल अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि आबादी में वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित नहीं हो पा रही है।” केयर रेटिंग के अनुसार, अकेले 21 दिन के लॉकडाउन से 6.3 लाख करोड़ रुपये से लेकर 7.2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। जन स्वास्थ्य अभियान के नेशनल कन्वीनर डॉ. नरेंद्रनाथ गुप्ता कहते हैं। “सरकार को पूर्ण लॉकडाउन की जगह लक्षित लॉकडाउन करना चाहिए। उसके अलावा इस रणनीति से आबादी में प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित नहीं हो पा रही है। जबकि दक्षिण कोरिया, जापान जैसे देशों ने लॉकडाउन का बिना सहारा लिए काफी हद तक कोरोना के संक्रमण को नियंत्रित कर लिया है।” प्रतिरोधक क्षमता क्या है? इस पर डॉ. प्रशांत गुप्ता कहते हैं, “इसे हर्ड कम्युनिटी कहा जाता है। जब कोई वायरस फैलता है तो मानव शरीर में उसके खिलाफ लड़ने के लिए धीरे-धीरे अपने आप प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है। पूर्ण लॉकडाउन होने से यह क्षमता विकसित होने की दर कम हो जाती है। ऐसे में सरकार के सामने सामंजस्य बनाने की भी चुनौती है।” लॉकडाउन से लोगों में अवसाद के मामले बढ़ रहे हैं। दिल्ली के मनोचिकित्सक मनोज अग्रवाल का कहना है, “लोग कोरोना के डर और बढ़ते आर्थिक संकट की वजह से अवसाद में जा रहे हैं। पहले इस तरह के मामले मेरे पास हर रोज 5-10 आते थे, अब यह संख्या डबल हो गई है। "

अब सरकार के सामने दो तरफ से चुनौती खड़ी हो गई है। एक तो उसके सामने लाखों लोगों की जान बचाने की चुनौती है, दूसरे देश भर से पलायन कर चुके श्रमिकों को भरोसा वापस दिलाना है कि आप घबराए नहीं, आपकी रोजी-रोटी नहीं बिगड़ेगी। देखना यह है कि सरकार क्या करती है, क्योंकि अभी तक के उपाय नाकाफी नजर आ रहे हैं।

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लॉकडाउन में जिंदगी

बलबीर सिंह राजेवाल

किसान

समराला, पंजाब

पंजाब में कड़े कर्फ्यू के चलते खेतों में तड़के ही जाना पड़ता है। मेरी 77 साल की उम्र है, ऐसे में सुबह 5-6 बजे पहुंचना आसान नहीं है। लेकिन चारा ही क्या है। इस काम में मेरा बेटा और बहू सहायता कर रहे हैं क्योंकि सभी मजदूर यहां से चले गए हैं। अगर कोई है भी तो कर्फ्यू की वजह से नहीं आ सकता है। 28 एकड़ में खेती के सारे काम के लिए पूरी तरह से मजदूरों पर निर्भरता इन दिनों भारी पड़ रही है। इस कारण 10 एकड़ में आलू की खुदाई रुकी हुई है। अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक आलू नहीं निकाले गए तो दिनोदिन बढ़ती गर्मी की वजह से आलू के जमीन में ही खराब होने का डर है। इस देरी की वजह से पंजाब में करीब 80 हजार हेक्टेयर रकबे में 80 फीसदी आलू खराब होने का डर है। मंडियों में सब्जियां नहीं पहुंच पा रही हैं, इसलिए मुझे अपने खेत से आढ़तियों को बेचना पड़ रहा है। मटर के मुझे 15 रुपये किलो दाम मिल रहे हैं लेकिन कर्फ्यू में रिटेल में वह 80 रुपये तक बिक रहा है। इन सबके बीच राहत की बात यह है कि तापमान थोड़ा कम हुआ है। इस कारण गेहूं की कटाई अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक रोकी जा सकती है। उम्मीद है, तब तक लॉकडाउन खत्म हो जाएगा। और हम बड़े नुकसान से बच जाएंगे। ऐसा नहीं होता है तो काफी बड़े आर्थिक नुकसान होंगे, जिसकी भरपाई करना सभी के लिए बहुत मुश्किल होगी।

हरीश मानव

 

राकेश और पूनम श्रीवास्तव

 मिडिल क्लास प‌रिवार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

लखनऊ के गोमती नगर में राकेश श्रीवास्तव और उनकी पत्नी पूनम श्रीवास्तव तकरीबन दस दिन से भी अधिक समय घर की चहारदीवारी में गुजार चुके हैं। नेशनल लॉकआउट के बाद किसी भी स्थिति से निपटने के लिए वे मानसिक रूप से तैयारी कर चुके हैं। लेकिन हर बार नए तरह की परेशानी उनका इम्तहान ले रही है। इसी साल के आखिर में रिटायर होने वाले राकेश श्रीवास्तव ने अकेलेपन से लड़ने के लिए एक अपार्टमेंट में रहने वाले अपने बड़े भाई डॉ. लालजी श्रीवास्तव और उनकी पत्नी कामिनी श्रीवास्तव को भी बुला लिया है। राकेश कहते हैं, मुश्किल हालात में अगर परिवार साथ हो तो निश्चित ही एक सुकूनभरी बात होती है। उम्र के इस पड़ाव में स्वास्थ्य संबंधी थोड़ी समस्याएं होती ही हैं। दवाएं भी हमने जुटा ली हैं। लेकिन एक ही मकान में सीमित रहना कई बार बेचैनी पैदा करता है।” श्रीवास्तव दंपती की शादीशुदा बेटी चिंकी हैदराबाद में हैं। राकेश के मुताबिक उनकी बेटी और दामाद दोनों बेहद सावधानी से खुद को संभाल रहे हैं। श्रीवास्तव दंपती के मन में कहीं न कहीं इस स्थिति के बदतर होने को लेकर चिंता होती है। वे कहते हैं, टीवी पर चल रही खबरें भी निराश ही करती हैं। कहीं से कोई सकारात्मक खबर नहीं। ऐसी स्थिति में पत्रिकाएं पढ़कर वे खुद को रिचार्ज करने की कोशिश करते हैं। पूनम कहती हैं, “अचानक रुटीन बदलने का असर भी तो दिल दिमाग पर होता ही है। लेकिन बात सिर्फ हमारी नहीं, यह संकट तो पूरे देश के सामने है। कैसे भी इसका सामना तो करना ही पड़ेगा।” बड़े भाई और भाभी हमारे साथ आ तो गए हैं लेकिन उन्हें अपने फ्लैट की चिंता सताती रहती है।

कुमार भवेश चंद्र

 

वुहान लॉकडाउन में आपबीती

जिस तरह की परिस्थिति हमने चीन में कोरोनावायरस के फैलने के बाद हुए लॉकडाउन में झेली, वह काफी भयावह थी। कोई नहीं जानता था कि ऐसा भी कुछ होगा। यह कहना है, आशीष यादव का, जो वुहान टेक्सटाइल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर पिछले एक साल से कार्यरत हैं। उनकी पत्नी (नेहा) कंप्यूटर साइंस में पीएचडी कर रही हैं। वे कहते हैं, जब वायरस वुहान में फैला और इसकी जानकारी सबसे पहले 26 दिसंबर को मिली, तो उस वक्त हम लोगों को यह नहीं लगा कि ऐसी नौबत आएगी। हमने इसे बड़े हल्के में लिया। लेकिन जब 22 जनवरी की आधी रात को पता चला कि पूरे वुहान में लॉकडाउन लगा दिया गया है और सारे यातायात के साधन बंद कर दिए गए हैं। हमारे कई सारे चीनी मित्र हैं जिन्होंने बताया कि अब स्थिति विकराल हो रही है, लगातार संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है, लोगों की मौत हो रही है। हमने भारत के राजदूत से संपर्क कर अनुरोध किया कि हम लोगों को यहां से निकाला जाए। तकरीबन एक महीने मैंने वहां लॉकडाउन में अपनी जिंदगी गुजारी। हम लोगों को कई तरह के इंडियन फूड्स मिलने बंद हो गए। कभी बंद कमरे में समय व्यतीत करने के लिए मूवी, न्यूज और अपने घर वालों से बात करता था। वुहान से करीब 112 लोगों को रवाना किया गया था, जिसमें 76 भारतीय थे। तीसरे जत्थे में हमलोगों को, रेस्क्यू कर 27 फरवरी को दिल्ली के छावला आइटीबीपी कैंप लाया गया। फिर 13 मार्च तक सेल्फ आइसोलेशन में रखा गया। नियमित रूप से सभी की स्क्रीनिंग की जाती थी। बड़ी मुश्किल से एक-एक दिन काटना पड़ा। कभी-कभी डर भी लगता था। लेकिन मैं यहां और वुहान में काफी अंतर पाता हूं। वुहान में कोई भी घर से बाहर नहीं निकल सकता था। सभी सोसाइटी में दो लोग बदल-बदलकर हर दिन राशन या जरूरी सामान के लिए लगाए जाते थे, जिनका काम होता था, हर घर तक सामान पहुंचाना। जब सरकार की तरफ से सूचना जारी की गई की किसी भी विदेशी नागरिक को इस तरह से नहीं भेजना है। उसके बाद कोई भी जरूरत पड़ने पर एक ऐप पर लोकेशन के साथ जरूरी सामान लिखना पड़ता था। उसके बाद घर पर सुरक्षा बल सामान को डबल रैपर में लाते थे।

भारत आने के बाद आइटीबीपी कैंप में 14 दिनों तक क्वारेंटाइन में रखा गया। सुबह-शाम चेक-अप किया जाता था। जब समय पूरा हुआ तब फिर से एक बार सभी का टेस्ट हुआ, भगवान की कृपा से रिजल्ट निगेटिव आया। फिर मैं और मेरी पत्नी, दोनों उत्तर प्रदेश के एटा में अपने घर पर आए। हम लोगों को फिर से जिला प्रशासन की तरफ से अगले 14 दिनों के लिए होम क्वारेंटाइन पर रखा गया। सच कहूं तो, गांव में बड़ी घृणा की दृष्टि से लोग देखते हैं, जिससे मुझे शर्मिंदगी महसूस होती है। ऐसा लगता है, जैसे मैंने कोई अपराध किया है।

(आशीष ने जैसा नीरज झा को बताया )

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अयोध्या प्रसाद

श्रमिक

उन्नाव, उत्तर प्रदेश

मोहाली में हार्डवेयर मार्केट में रेहड़ी का काम करता हूं। रोज होने वाली कमाई से खर्चा चलता है। अब लॉकडाउन है तो कमाई भी बंद हो गई है। अभी 10 दिन पहले ही पत्नी को गांव छोड़कर वापस काम पर लौटा था। उस वक्त मेरे पास कुल 1,500 रुपये बचे थे। वह भी खत्म हो चुके हैं। ऐसे में बच्चों को लेकर गांव जाने के लिए पैदल निकल पड़ा। मेरा गांव यूपी के उन्नाव जिले में है। लेकिन चंडीगढ़ में पुलिस ने आगे जाने से रोक दिया। वापस हमें मोहाली भेज दिया। पुलिस ने कहा कि अपने ठिकाने पर रहो, एक हफ्ते का राशन पहुंच जाएगा। समझ में नहीं आ रहा था क‌ि क्या करूं। उस वक्त पुलिस की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। इसल‌िए वापस लौट गए। वहां पहुंचने पर बिस्किट का पैकेट और राशन दे दिया। उससे थोड़ी राहत मिल गई। जिस बिल्डिंग में रहता हूं, उसमें 17 कमरे हैं। सभी में प्रवासी मजदूर रहते हैं। मकान मालिक बहुत अच्छे हैं, उन्होंने कहा है कि कर्फ्यू खुलने तक किसी को किराया नहीं देना होगा। इसके अलावा उन्होंने हम लोगों के लिए राशन का भी इंतजाम कर दिया है। ऐसे में बड़ी राहत मिल गई है। लेकिन ऐसे कब तक चलेगा। अगर कमाएंगे नहीं तो कोई कब तक घर बैठे खिलाएगा। यही चिंता सताती जा रही है। पत्नी भी गांव में है। बच्चे बार-बार उसके पास जाने को कह रहे हैं। इस वक्त मोबाइल फोन ही सहारा है। सरकार के दावे तो बहुत कुछ सुन रहे हैं कि बैंक खाते में पैसा आएगा, लेकिन अभी तक कुछ नहीं मिला है। केवल राशन ही सहायता के नाम पर मिला है। आगे भगवान भरोसे है। देखें क्या होता है?

हरीश मानव

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महेश चंद्र और संध्या माहेश्वरी

व‌रिष्ठ नाग‌रिक

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

मार्च 24 को लॉकडाउन लागू होने से चार दिन पहले मुझे और मेरी पत्नी को ले जाने के लिए मेरा बेटा आने वाला था। लेकिन किसी जरूरी काम की वजह से नहीं आ सका। मेरी 73 साल उम्र हो चुकी है और पत्नी की 70 साल है। इस उम्र में हम 21 दिनों के लिए फंस गए हैं। मेरी बाई-पास सर्जरी हो चुकी है। ऐसे में खाने से ज्यादा दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन दवाओं की किल्लत हो रही है। इस उम्र में कहीं आना-जाना भी आसान नहीं है। शुगर की दवा भी खत्म हो रही है। दिक्कत है कि किसी से मंगवा भी नहीं पा रहा हूं। घर में कैद होकर रह गया हूं क्योंकि अधिक उम्र के लोगों के कोरोनावायरस से संक्रमित होने का ज्यादा खतरा बताया जा रहा है। इसलिए रोजाना दू्ध, सब्जी और दूसरी दैनिक उपयोग की वस्तुओं की खरीद करने में दिक्कत आ रही है। हालांकि पड़ोसी काफी मदद कर रहे हैं। मेरा एक बेटा दिल्ली के रोहिणी में रहता है, जबकि दूसरा बेटा हैदराबाद में रहता है। लेकिन विडंबना यह है कि दिल्ली में रहकर भी मेरा बेटा मुझसे नहीं मिल पा रहा है। पिछले तीन-चार साल से इस सोसायटी में रह रहा हूं लेकिन इतना अकेला कभी महसूस नहीं किया। अगर लॉकडाउन जल्द खत्म नहीं हुआ तो मुझे और मेरी पत्नी को काफी दिक्कतें आने वाली हैं।

के.के.कुलश्रेष्ठ

 

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