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भीमाकोरे गांव के संबंध में पुलिस के आरोपों को सुधा भारद्वाज ने बताया मनगढ़ंत

भीमाकोरे गांव में हुए हिंसा के संबंध में गिरफ्तार किए गए पांच लोगों में से एक सुधा भारद्वाज ने पुलिस...
भीमाकोरे गांव के संबंध में पुलिस के आरोपों को सुधा भारद्वाज ने बताया मनगढ़ंत

भीमाकोरे गांव में हुए हिंसा के संबंध में गिरफ्तार किए गए पांच लोगों में से एक सुधा भारद्वाज ने पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपों पर अपना पक्ष रखा है।

अपनी वकील वृंदा ग्रोवर के माध्यम से भेजे गए अपने पक्ष में सुधा भारद्वाज ने लिखा कि पुलिस के ये आरोप मनगढ़ंत हैं और पुलिस ऐसे पत्रों को पेश करके उनकी छवि आपराधिक बनाने की कोशिश कर रही है। सुधा ने लिखा कि जो पुलिस कह रही है वे बातें सार्वजनिक हैं, उनमें कुछ छिपा नहीं है। उनके अनुसार तमाम बैठकों या विरोध प्रदर्शनो को यह कहकर रोका गया है ये गतिविधियां माओवादियों के पैसों से चलाई जा रही हैं।

सुधा भारद्वाज ने पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब 9 बिंदुओं के एक पत्र में दिया है। सुधा भारद्वाज ने इन बिंदुओं के माध्यम से पुलिस के आरोपों का सिलसिलेवार जवाब दिया;  

-इसमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, संगठनों को जानबूझकर इस तरह से रखा गया है जिससे उन पर दबाव बनाया जा सके, उनके काम में बाधा उत्पन्न की जा सके और उनके खिलाफ नफरत भड़काई जा सके।

-रिटायर्ड जस्टिस होसपेट सुरेश के नेतृत्व में चलने वाले आइएपीएल को गैर-कानूनी घोषित करने का यह एक प्रयास है। यह संगठन वकीलों पर होने वाले हमलों के खिलाफ मुखर रहता है।

-मैं यह एकदम स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैंने मोगा में कभी भी किसी भी कार्यक्रम के लिए 50,000 रुपये नहीं दिए। ना ही मैं महाराष्ट्र के किसी अंकित या कॉमरेड अंकित को जानती हूं जो कश्मीरी अलगाववादियों के संपर्क में है।

-मैं गौतम नवलखा को जानती हूं। गौतम वरिष्ठ सम्मानित मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। उनको इस तरह दर्शाया गया है, जैसे वे आपराधी हों। ये सब उनके खिलाफ नफरत पैदा करने वाला है।

-मैं जगदलपुर लीगल एड ग्रुप को अच्छी तरह जानती हूं और मैंने उनके लिए कभी कोई फंड इकठ्ठा नहीं किया है। कम से कम किसी प्रतिबंधित संगठन से तो कतई नहीं। मैं बहुत साफ कह रही हूं कि उनका काम पूरी तरह वैध और कानूनी है।

-मैं एडवोकेट डिग्री प्रसाद चौहान को एक दलित एक्टिविस्ट के रूप में जानती हूं जो पीयूसीएल में सक्रीय हैं और ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के साथ काम करते हैं। उनके खिलाफ लगाए गए आरोप आधारहीन हैं।

-जिन वकीलों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में मानवाधिकार हनन को उजागर किया है, यह सब उनको अपराधी बताकर उनके खिलाफ नफरत फैलाने वाला है।

सुधा भारद्वाज ने 4 जुलाई को रिपब्लिक टीवी पर दिखाए गए पत्र को मनगढ़ंत करार दिया उनके अनुसार “जब यह टीवी पर आया था तो मैंने इसका खंडन कर दिया था। यह पत्र ना तो पुणे की अदालत के सामने लाया गया और ना ही फरीदाबाद के सीजेएम सामने प्रस्तुत किया गया जब वे मुझे पुणे ले जा रहे थे।“

एक दिन पहले ही महाराष्ट्र पुलिस ने कहा कि जांच से पता चला है कि माओवादी संगठन बड़ी साजिश कर रहे थे।

पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पेश किए थे कुछ पत्र

महाराष्ट्र पुलिस में लॉ एंड ऑर्डर के अतिरिक्त महानिदेशक पीबी सिंह ने मीडिया के सामने पत्रों के ज़रिए बताया था ये पांच लोग सीधे माओवादी सेंट्रल कमेटी के संपर्क में थे जिसमें सुधा भारद्वाज द्वारा कथित तौर पर सेंट्रल कमेटी को लिखा गया पत्र भी शामिल था।

महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले मंगलवार को अलग-अलग हिस्सों से पांच लोगों को गिरफ़्तार किया था। हालांकि बाद में उच्चतम न्यायालय ने इन लोगों को गिरफ्तारी से राहत देते हुए सिर्फ घर में नजरबंद करने का निर्देश पुलिस को दिया था। इस मामले में अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी।

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